महाराष्ट्र के पुणे में एक पुल ढहने की दर्दनाक घटना में 4 लोगों की मौत हो गई, जबकि 38 को सुरक्षित बचा लिया गया। सवाल उठता है कि इस हादसे का जिम्मेदार कौन है? निर्माण की लापरवाही या प्रशासन की चूक?
महाराष्ट्र के पुणे में इंद्रायणी नदी पर बने एक पुराने लोहे के पुल के रविवार दोपहर ढह जाने से चार लोगों की मौत हो गई और 32 घायल हो गए। इनमें छह की हालत गंभीर है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसकी पुष्टि की है। रिपोर्टों के अनुसार पुल ढहने से 10-15 लोग पानी में बह गए। इनकी तलाश की जा रही है। कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कम से कम 38 लोगों को बचाया गया है। इस हादसे ने एक बार फिर राज्य सरकार की बुनियादी ढांचे के रखरखाव और सुरक्षा मानकों के प्रति लापरवाही को उजागर किया है।
घटना दोपहर लगभग 3:30 से 4:30 बजे के बीच हुई। मावल तहसील में एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल कुंदमाला गांव में भारी भीड़ थी। बारिश के मौसम में इस क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है और रविवार होने के कारण पुल पर 50 से 100 लोग मौजूद थे। स्थानीय लोगों और अधिकारियों के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से मावल क्षेत्र में भारी बारिश के कारण इंद्रायणी नदी का जलस्तर काफी बढ़ गया था। इस पुराने लोहे के पुल ने भारी भीड़ और नदी के तेज बहाव का दबाव नहीं झेल पाया और अचानक ढह गया। बताया जा रहा है कि इस पुल को 30 साल पहले किसानों के लिए बनाया गया था।
रिपोर्टों के मुताबिक़, पुल के ढहने से कई पर्यटक और स्थानीय लोग नदी के तेज बहाव में बह गए। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि कुछ लोग तैरकर किनारे तक पहुंचे, लेकिन कई लोग नदी के बहाव में फँस गए। हादसे के तुरंत बाद स्थानीय लोगों ने बचाव कार्य शुरू किया और बाद में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल यानी एनडीआरएफ़, पुणे ग्रामीण पुलिस, अग्निशमन विभाग और अन्य आपातकालीन सेवाएँ मौक़े पर पहुंची।
रिपोर्टों के अनुसार 32 घायल हुए हैं। छह लोग गंभीर रूप से घायल हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हादसे पर दुख जताते हुए मृतकों के परिवारों के लिए 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की घोषणा की है। उन्होंने दावा किया कि बचाव कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है और वे जिला प्रशासन के साथ लगातार संपर्क में हैं। उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा कि पुल जंग खा चुका था और भीड़ के दबाव के कारण ढह गया। रिपोर्टों के अनुसार विदेश यात्रा पर साइप्रस पहुँचे पीएम मोदी ने सीएम फडणवीस से इस घटना को लेकर बात की है।
हालाँकि, सरकार की यह प्रतिक्रिया जनता के गुस्से को शांत करने में नाकाम रही है। स्थानीय लोगों और सोशल मीडिया यूज़रों ने सरकार पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया है।
सोशल मीडिया पर लोगों ने इस हादसे को 2025 का भयावह हादसा करार दिया है। कई यूजरों ने सरकार की लचर व्यवस्था और पुराने ढांचों की अनदेखी पर गुस्सा जाहिर किया। राकांपा सांसद सुप्रिया सुले ने घटनास्थल का दौरा किया और स्थिति का जायजा लिया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी हादसे पर दुख जताया और कहा कि एनडीआरएफ़ की टीमें तेजी से बचाव कार्य में जुटी हैं।
राकांपा विधायक सुनील शेलके ने कहा है कि यह पुल मूल रूप से किसानों के लिए बनाया गया था, लेकिन पर्यटकों की भारी भीड़ के लिए इसका उपयोग किया जा रहा था। फिर भी यह सवाल उठता है कि सरकार ने इतने अहम पर्यटन स्थल पर एक जर्जर और पुराने पुल को क्यों नहीं बदला?
कहा जा रहा है कि भारी बारिश के कारण नदी का जलस्तर बढ़ने की चेतावनी पहले से दी गई थी, फिर भी प्रशासन ने इस पुल की स्थिति की जांच नहीं की। उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सभी पुराने पुलों की संरचनात्मक जांच का आदेश दिया है, लेकिन यह कदम हादसे के बाद उठाया गया, जो बहुत देर से लिया गया निर्णय लगता है।
स्थानीय निवासियों ने बताया कि कुंदमाला जैसे पर्यटन स्थलों पर हर साल मानसून के दौरान भारी भीड़ होती है, लेकिन प्रशासन ने न तो भीड़ प्रबंधन के लिए कोई व्यवस्था की और न ही पुल की मरम्मत या बदलने के लिए कोई योजना बनाई।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस महीने की शुरुआत में पुणे जिला कलेक्टर जितेंद्र दूदी ने मानसून के तेज होने के कारण सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए पर्यटकों को जलाशयों और कुछ प्राकृतिक स्थलों पर जाने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा जारी की थी। यह पूछा जाना चाहिए कि जब सरकार को भारी बारिश और नदी के बढ़ते जलस्तर की जानकारी थी, तो क्यों नहीं समय रहते इस पुल की जांच की गई? क्या सरकार केवल हादसों के बाद जागती है?
यह हादसा एक बार फिर यह सवाल उठाता है कि महाराष्ट्र सरकार और स्थानीय प्रशासन बुनियादी ढांचे की सुरक्षा और रखरखाव को लेकर कितना गंभीर है। इंद्रायणी नदी पर हुए इस हादसे ने न केवल चार परिवारों को अपूरणीय क्षति पहुंचाई, बल्कि सरकार की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।