क्या बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बाद भी पार्टी के शीर्ष नेताओं में अभी भी कोई कसक या गाँठ रह गयी है? एक दिन पहले ‘सामना’ में छपे संपादकीय को पढ़कर तो ऐसा ही लगता है।
शिवसेना इस दल-बदल की तुलना पालनाघर से कर रही है। शिवसेना का मुखपत्र इस दल-बदल को लेकर कह रहा है कि बीजेपी या शिवसेना को कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बच्चों के पालनाघर नहीं बनना चाहिए।
शिवसेना की बीजेपी के ख़िलाफ़ यह प्रतिक्रिया का कारण अभी की किसी घटना मात्र से नहीं है। इसकी जड़ें साल 2014 के विधानसभा चुनावों के समय से जुड़ी हुई दिखाई देती हैं।