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पवार, उद्धव को इनकम टैक्स का नोटिस क्या ठाकरे सरकार को अस्थिर करने की कोशिश है?

सवाल तो यहां खड़ा होता ही है कि शरद पवार, उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और सुप्रिया सुले जैसे दिग्गज नेताओं को धड़ाधड़ नोटिस पकड़ाए जाने का क्या मतलब है। क्या चारों के मामलों को इनकम टैक्स ने एक ही साथ देख लिया है। फिर सत्तापक्ष के ही चार नेताओं के पुराने हलफ़नामों की जांच क्यों हुई, यह बीजेपी के लोगों की भी हो सकती थी, इसलिए शक पैदा होता है। 

पवन उप्रेती

पिछले साल महाराष्ट्र में जब शिव सेना ने बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ जाकर सरकार बनाई थी, तब यह सवाल उठा था कि क्या यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के विधान परिषद सदस्य चुने जाने का मसला हो या फिर सुशांत सिंह प्रकरण, हर जगह ऐसा लगा कि बीजेपी की पूरी कोशिश राज्य की महा विकास अघाडी सरकार को अस्थिर करने की है और वह इस सरकार की विदाई चाहती है और ऐसे आरोप खुलकर शिव सेना ने भी लगाए। 

इन आरोपों को बल तब मिला जब महाराष्ट्र बीजेपी के बड़े नेता नारायण राणे इस साल मई में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिले और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की। 

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सुशांत सिंह प्रकरण मामले की जांच मुंबई पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप देने का मसला रहा हो या शिव सेना प्रमुख और मुख्यमंत्री ठाकरे के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी करने वालीं फ़िल्म अभिनेत्री कंगना रनौत को वाई श्रेणी की सुरक्षा देने का मसला हो, बीजेपी पर आरोप लगा कि उसने ठाकरे सरकार की बुनियाद हिलाने की पूरी कोशिश की। 
अब इस तरह के आरोप फिर से लग रहे हैं कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार महा विकास अघाडी सरकार के दिग्गजों मुख्यमंत्री ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर शिकंजा कसने की कोशिश कर उन्हें दबाव में लेना चाहती है।

इस बार यह आरोप इसलिए लग रहे हैं क्योंकि एनसीपी प्रमुख पवार को इनकम टैक्स विभाग का नोटिस मिला है। पवार ने कहा है कि उन्हें यह नोटिस उनकी सांसद बेटी सुप्रिया सुले, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उनके बेटे और राज्य सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे के बाद मिला है। पवार ने इस पर अपने शांत अंदाज में प्रतिक्रिया दी और कहा, ‘वे कुछ लोगों को प्यार करते हैं।’ 

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निश्चित रूप से उनका इशारा केंद्र की सरकार की ओर था और केंद्र की सरकार पर सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स के दुरुपयोग का आरोप विपक्षी दल लगाते रहते हैं। पवार को यह नोटिस 2015 में दाखिल किए गए चुनावी हलफनामे को लेकर मिला है। पवार ने कहा कि वे नोटिस का जवाब देंगे। 
सवाल तो यहां खड़ा होता ही है कि शरद पवार, उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और सुप्रिया सुले जैसे दिग्गज नेताओं को धड़ाधड़ नोटिस पकड़ाए जाने का क्या मतलब है।

क्या चारों के मामलों को इनकम टैक्स ने एक ही साथ देख लिया है। फिर सत्तापक्ष के ही चार नेताओं के पुराने हलफ़नामों की जांच क्यों हुई, यह बीजेपी के लोगों की भी हो सकती थी, इसलिए शक पैदा होता है। 

गृह मंत्रालय पर साधा था निशाना 

शिव सेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने सुशांत प्रकरण को लेकर जिस तरह मुंबई पुलिस से जांच ली गई, कंगना ने मुंबई को पीओके और महाराष्ट्र को पाकिस्तान कहा, उससे इशारा किया था कि ऐसे लोगों को किनकी शह हासिल है। राउत ने ‘सामना’ के संपादकीय में लिखा था कि मुंबई शहर का अपमान देशद्रोह के तुल्य है और ऐसा करने वाले के पीछे केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय मजबूती के साथ खड़ा है।

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शिव सेना की ओर से उद्धव ठाकरे को लगातार निशाने पर ले रहे रिपब्लिक चैनल के प्रमुख अर्णब गोस्वामी को बीजेपी प्रायोजित बताया गया था। इसके अलावा महाराष्ट्र की विधानसभा में अर्णब गोस्वामी तथा विधान परिषद में फ़िल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के ख़िलाफ़ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाया गया था। 

शिव सेना ने साफ कर दिया था कि यह ठाकरे सरकार को गिराने की साज़िश है। ऐसे में अब प्रमुख नेताओं को नोटिस मिलने के बाद राज्य की सियासत में उथल-पुथल मच सकती है। 

सरकार बनाना चाहती है बीजेपी

लेकिन महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी बुरी तरह अधीर है। वह जानती है कि अगर महा विकास अघाडी की सरकार 5 साल तक चल गई तो बृहन्मुंबई महानगर पालिका का चुनाव हो या जिला परिषदों का या फिर विधानसभा या लोकसभा का, उसके लिए अपने अस्तित्व को जिंदा रखना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए, जब भी उसके नेता राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करते हैं या सरकार चला रहे नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियां दबाव बनाती हैं, तो यह आरोप फिर से जिंदा होता है कि क्या बीजेपी पर ठाकरे सरकार को अस्थिर करने के लग रहे आरोप सही हैं?

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