मुंबई में मज़दूरी करने वाले लोग अपने-अपने राज्यों में जाने की कोशिश में।
चिंता का मुद्दा भी अब यही बन गया है कि क्या ये लाखों लोग जिनका कि ज़िक्र प्रधानमंत्री ने किया है ‘लगभग’ तीन या एक सप्ताह की भी तकलीफ़ें और बर्दाश्त करने की हालात में बचे हैं या कि उनके सब्र के बांधों में जगह-जगह से दरारें पड़ने लगी हैं? कहा जा रहा है कि ‘लॉकडाउन’ के कारण कोई छह लाख प्रवासी मज़दूर इस समय बीच रास्तों में बने इक्कीस हज़ार अस्थायी शिविरों में फँसे हुए हैं। ये सभी अपने घरों को वापस लौटना चाहते हैं।
ईमानदारी की बात तो यही है कि ‘इस समय’ असली देश वह नहीं है जो ‘अपने घरों’ में बैठकर प्रधानमंत्री को सुन रहा था बल्कि वह है जो उसके ठीक बाद हज़ारों-लाखों की तादाद में मुंबई के बांद्रा इलाक़े में ‘अपने’ घरों को वापस भेजे जाने की माँग करता हुआ जमा हो गया था।