‘संघर्ष’ शब्द ही ऐसा है जिसमें आने वाली ध्वनि यह इंगित करती है कि इसमें सीमाओं का निर्धारण नहीं किया गया है। यह पल दो पल के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द नहीं है। इसका विस्तार वर्षों से दशकों और कभी कभी तो ताउम्र हो सकता है। चाहे ‘भारत जोड़ो यात्रा’ हो या फिर उसके बाद शुरू की गई ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ या फिर उससे भी पहले लगातार सरकार की शोषणकारी नीतियों और मनमाने रवैये के खिलाफ राहुल गाँधी की स्पष्ट प्रतिक्रिया, सभी इस बात का प्रमाण है कि ‘आइडिया ऑफ़ इंडिया’ के लिए राहुल गाँधी का संघर्ष अब वर्षों की सीमाओं से आगे बढ़ चुका है। 2024 के चुनाव सामने खड़े हैं, नरेंद्र मोदी 400 से अधिक सीटों की घोषणा कर चुके हैं, एक एक करके विपक्षी दलों के नेताओं को भयादोहन की नीति से ‘इंडिया गठबंधन’ से अलग किया जा रहा है। ऐतिहासिक रूप से कभी न घटित होने वाली घटनाओं में विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी जेल भेजा जा रहा है, मीडिया मृत है और न्यायालय के पास अपनी ‘प्रक्रियाएं’ हैं। ऐसे में लगातार बीजेपी खुद को मजबूत करती जा रही है।