‘संघर्ष’ शब्द ही ऐसा है जिसमें आने वाली ध्वनि यह इंगित करती है कि इसमें सीमाओं का निर्धारण नहीं किया गया है। यह पल दो पल के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द नहीं है। इसका विस्तार वर्षों से दशकों और कभी कभी तो ताउम्र हो सकता है। चाहे ‘भारत जोड़ो यात्रा’ हो या फिर उसके बाद शुरू की गई ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ या फिर उससे भी पहले लगातार सरकार की शोषणकारी नीतियों और मनमाने रवैये के खिलाफ राहुल गाँधी की स्पष्ट प्रतिक्रिया, सभी इस बात का प्रमाण है कि ‘आइडिया ऑफ़ इंडिया’ के लिए राहुल गाँधी का संघर्ष अब वर्षों की सीमाओं से आगे बढ़ चुका है। 2024 के चुनाव सामने खड़े हैं, नरेंद्र मोदी 400 से अधिक सीटों की घोषणा कर चुके हैं, एक एक करके विपक्षी दलों के नेताओं को भयादोहन की नीति से ‘इंडिया गठबंधन’ से अलग किया जा रहा है। ऐतिहासिक रूप से कभी न घटित होने वाली घटनाओं में विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी जेल भेजा जा रहा है, मीडिया मृत है और न्यायालय के पास अपनी ‘प्रक्रियाएं’ हैं। ऐसे में लगातार बीजेपी खुद को मजबूत करती जा रही है।
चुनावी अभियान छोड़ ‘न्याय यात्रा’ में क्यों जुटे हैं राहुल?
- विचार
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- 14 Feb, 2024

लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन टूटता रहा है, कांग्रेस नेता बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, नरेंद्र मोदी 400 से अधिक सीटों का लक्ष्य तय कर चुके हैं तो राहुल गाँधी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में क्यों जुटे हुए हैं?
इंडिया गठबंधन में गिरावट का दौर जारी है। अब लोगों को लगता है कि राहुल गाँधी को ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को छोड़कर दिल्ली आना चाहिए और गठबंधन की गतिविधियों को देखना चाहिए था। अंततः बीजेपी का उद्देश्य ही यही है कि राहुल यात्रा छोड़कर वापस आ जाएं। तमाम पोल सर्वे मोदी जी को विजयी मान चुके हैं। 2024 के चुनाव में काँग्रेस या इंडिया गठबंधन को कितनी सीटें मिलती हैं संभवतया यह मुद्दा ही नहीं है। मुद्दा यह है कि सेल पर बिल्कुल कौड़ी के दाम बिक चुकी मीडिया और ‘विचारधारा के जनाज़ों’ के इस दौर में जनता के साथ हो रहे अन्याय को कौन सुनेगा? मुझे नहीं लगता कि जिस नेता या दल की विचारधारा का जनाज़ा निकल चुका हो उसे कभी भी उस ओर बिठाकर रखा जा सकता है जिस तरफ सत्ता न हो! राहुल गाँधी दिल्ली में बने भी रहते तब भी यही हाल होना था, नीतीश तब भी छोड़कर जाते और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक विशिष्ट राजनैतिक किला तब भी यूं ही ढहता! आज राहुल गाँधी और काँग्रेस के पास विपक्षी दलों को देने के लिए सिर्फ संघर्ष है, वो सत्ता का उपहार उन्हें नहीं दे सकते। ऐसे में सिर्फ वही दल साथ रहेगा जिसकी विचारधारा उसकी सत्ता की भूख के सामने डटकर खड़ी हो। लेकिन जो विचार के पहले सीटें बचाने की चाहत रखता हो, जेल जाने से डर रहा हो और ‘अभी किसी तरह बचो बाद में देख लेंगे’ वाला दृष्टिकोण रखता हो उसे इंडिया गठबंधन के साथ रोका ही नहीं जा सकता। परिणाम कुछ भी निकले लेकिन ऐसे में एक मात्र रास्ता है जनता के समक्ष स्वयं पहुंचकर उनसे सुनना और उनकी सुनना! यही काम राहुल गाँधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में कर रहे हैं।