दुर्भाग्य है कि तालिबान से सीधा संवाद टालकर भारत सरकार ने एक सुनहरा मौक़ा खो दिया। वह अमेरिका का पिछलग्गू बना रहा। अब भी हमारे विदेश मंत्री वगैरह अमेरिका और रूस के सुरक्षा अफ़सरों से मार्गदर्शन ले रहे हैं। उन्हें समझ नहीं पड़ रहा है कि वे क्या करें।
जाहिर है कि तालिबान की यह सरकार उनकी 25 साल पुरानी सरकार-जैसी ही है। इसका लंबे समय तक टिके रहना मुश्किल है।