हम किसी विकास के मारे जाने पर ख़ुश तो होते हैं लेकिन यह नहीं सोचते कि विकास पैदा कैसे होते हैं और कैसे देश के गली–कूचों में ‘विकासों’ की पौध पुष्पित–पल्लवित होती हैं। उन्हें खाद-पानी देने वाला तंत्र क्यों नहीं एनकाउंटर में मारा जाता?
हैदराबाद में चिकित्सिक के बलात्कार और हत्या के बाद पुलिस द्वारा चार गिरफ्तार आरोपियों को ‘मुठभेड़’ में मारा गया तब भी देश ऐसे ही खुश हुआ था।