संसद में ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम आतंकी हमले पर बहस के लिए कांग्रेस ने अपने वक्ताओं की सूची में दो प्रमुख सांसदों शशि थरूर और मनीष तिवारी को शामिल नहीं किया है। दोनों सांसद उन सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा थे, जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की स्थिति को वैश्विक मंच पर रखने के लिए विभिन्न देशों में भेजा गया था।

लोकसभा में सुबह बहस शुरू होने से पहले जब शशि थरूर संसद पहुंचे तो पत्रकारों के सवालों के जवाब में उन्होंने केवल इतना कहा, 'मौनव्रत, मौनव्रत।' थरूर ने हाल के दिनों में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार के रुख का समर्थन किया था, जो कांग्रेस की आधिकारिक लाइन से अलग था। उन्होंने इसे 'राष्ट्र प्रथम' की भावना के तहत एक सोचा-समझा कदम बताया था।
इसी तरह, मनीष तिवारी को भी बहस में बोलने के लिए नहीं चुना गया। तिवारी ने भी ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की कूटनीतिक पहल का समर्थन किया था, जिसके चलते पार्टी के भीतर उनकी स्थिति को लेकर सवाल उठ रहे हैं। एक कांग्रेसी सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'ये नेता सरकार के साथ विदेशों में भारत का पक्ष रख चुके हैं। अब विपक्ष और जनता की चिंताओं को उठाने का समय है, इसलिए पार्टी ने नए चेहरों को मौका दिया है।'

ऑपरेशन सिंदूर और संसद में बहस

ऑपरेशन सिंदूर 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत द्वारा पाकिस्तान के आतंकी ढाँचों पर की गई सैन्य कार्रवाई थी। इस हमले में 26 नागरिकों की मौत हो गई थी, जिसके बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई की थी। यह अब संसद में चर्चा का केंद्र बन चुका है। 

संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे पर 16-16 घंटे की बहस निर्धारित की गई है, जिसमें पहलगाम हमले, ऑपरेशन सिंदूर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के दावों पर चर्चा होगी।

कांग्रेस ने इस बहस में अपने उपनेता गौरव गोगोई को विपक्ष की ओर से चर्चा शुरू करने की जिम्मेदारी दी है, जबकि राहुल गांधी मंगलवार को बोलेंगे। अन्य विपक्षी दलों जैसे समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, तृणमूल कांग्रेस के अभिषेक बनर्जी, डीएमके की कनिमोझी, एनसीपी (एसपी) की सुप्रिया सुले और शिवसेना यूबीटी के अरविंद सावंत भी बहस में हिस्सा लेंगे।

थरूर, तिवारी का रुख पार्टी लाइन से अलग

शशि थरूर और मनीष तिवारी ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार के पक्ष में अपनी राय रखी थी, जो कांग्रेस की आधिकारिक रणनीति से मेल नहीं खाती। कांग्रेस ने सरकार पर ट्रंप के मध्यस्थता दावों को लेकर सवाल उठाए हैं और ऑपरेशन सिंदूर की कूटनीतिक हैंडलिंग की रणनीति की आलोचना की है। दूसरी ओर, थरूर ने अमेरिका में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था, जिसमें उन्होंने भारत की आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों को रेखांकित किया था। तिवारी ने भी एक सेमिनार में ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन करते हुए कहा था कि भारत का जवाब नपा-तुला और सोचा-समझा था।
थरूर ने हाल ही में एक बयान में कहा था, 'मैंने एक भारतीय के रूप में बोला, न कि पार्टी या सरकार के प्रवक्ता के रूप में। मेरे विचारों से कोई सहमत हो या असहमत, यह मेरी व्यक्तिगत राय है।' तिवारी ने भी इसी तरह का रुख अपनाते हुए कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर देश को एकजुट होना चाहिए।

कांग्रेस के भीतर वैचारिक टकराव

ऑपरेशन सिंदूर पर थरूर और तिवारी का रुख कांग्रेस के भीतर चल रही वैचारिक खींचतान को दिखाता है। कुछ जानकारों का मानना है कि यह 2020 में शुरू हुए जी-23 समूह के विद्रोह का विस्तार है, जिसमें थरूर, तिवारी और आनंद शर्मा जैसे नेता पार्टी नेतृत्व के खिलाफ अधिक लोकतांत्रिक और सामूहिक निर्णय प्रक्रिया की मांग कर रहे थे। थरूर और तिवारी की सरकार समर्थक टिप्पणियों ने पार्टी के भीतर असहजता पैदा की है, खासकर तब जब राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे सरकार की नीतियों पर आक्रामक रुख अपना रहे हैं।
शशि थरूर और मनीष तिवारी का ऑपरेशन सिंदूर पर बहस से दूरी बनाना न केवल उनके और कांग्रेस नेतृत्व के बीच तनाव को दिखाता है, बल्कि यह भी कि पार्टी के भीतर वैचारिक और रणनीतिक मतभेद अब खुलकर सामने आ रहे हैं। थरूर ने भले ही 'मौनव्रत' का सहारा लिया हो, लेकिन उनकी चुप्पी और तिवारी की अनुपस्थिति संसद के बाहर और भीतर चर्चा का विषय बनी रहेगी।

जैसा कि संसद में यह बहस तीन दिनों तक चलेगी, सभी की निगाहें इस बात पर टिकी होंगी कि कांग्रेस अपने रुख को कैसे पेश करती है और क्या वह सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति के मुद्दों पर घेर पाती है।