दरअसल, ये सारी बातें बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने 1997 में तमिल साप्ताहिक कुमुदम में धारावाहिक रूप में प्रकाशित अपनी राजनीतिक जीवनी में लिखी हैं। यह तब की बात है जब वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष पर थे और 1996 में वह एक बार प्रधानमंत्री भी बन चुके थे। वाजपेयी से उनकी पुरानी खुन्नस रही थी और इस जीवनी में उन्होंने वाजपेयी के ख़िलाफ़ काफ़ी ज़हर उगला था।
स्वामी द्वारा लिखी ये सारी बातें तमिल में थीं जिसके कुछ चुनिंदा हिस्सों का अंग्रेज़ी अनुवाद आउटलुक पत्रिका ने 23 मार्च 1998 के अपने अंक में छापा। नीचे उसी का हिंदी अनुवाद मैं पाठकों के लाभार्थ पेश कर रहा हूँ। इसमें मैं वाजपेयी के लिए सम्मानजनक सर्वनाम (उन्हें, उन्होंने आदि) और क्रियाओं (रहे, आए आदि) का इस्तेमाल कर रहा हूँ लेकिन इस मक़सद से कि आप स्वामी की ज़हरबुझी भाषा का स्वाद ले सकें, मैंने वाजपेयी के लिए हर जगह वैसे ही सर्वनाम और विशेषण इस्तेमाल किए हैं जो स्वामी विरोधियों के बारे में बोलते समय करते हैं।
तो जानिए, बीजेपी के सांसद सुब्रमण्यन स्वामी के मन में बीजेपी के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी के बारे में क्या धारणा थी या अब भी है। ध्यान रहे, स्वामी ने आज तक इन बातों के लिए न तो माफ़ी माँगी है, न ही अपने शब्द वापस लिए हैं। इसके बावजूद बीजेपी ने क्यों उनको सांसद बनाया, इसके बारे में मैं अपना आकलन इस पोस्ट के अंत में दूँगा।

स्वामी ने क्या कहा था-

वाजपेयी और मोरारजी देसाई (बिलकुल दाएँ) जो भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।

वाजपेयी और चौधरी चरण सिंह (दाएँ)। चरण सिंह मोरारजी सरकार को गिराने के बाद कुछ समय के लिए कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे।

जगजीवन राम (बिलकुल बाएँ) वाजपेयी और कुछ अन्य लोगों के साथ। जगजीवन राम प्रधानमंत्री नही बन पाए क्योंकि स्वामी के अनुसार वाजपेयी आख़िरी क्षणों में अपने वादे से पलट गए।

वाजपेयी से खुन्नस खानेवाले स्वामी 1997 में किए गए अपने इन ‘भंडाफोड़ों’ के बावजूद वाजपेयी को 1998 में दुबारा प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक सके। जब केंद्र में नई मिलीजुली सरकार आई तो उन्होंने अपना स्वर बदला और वाजपेयी के बजाय RSS को दोष देने लगे। 
(1998 का यह इंटरव्यू इस लिंक पर पढ़ें।)

स्वामी उन दिनों जयललिता के गुड बुक्स में थे और उन्हें उम्मीद थी कि वाजपेयी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया जाएगा।

लेकिन जब केंद्र सरकार में जयललिता के दबाव डालने पर भी उनको मंत्री नहीं बनाया गया तो वह सरकार गिराने के मक़सद में लग गए और 1999 में सोनिया गाँधी व जयललिता से मिलकर NDA सरकार गिराने में कामयाब रहे। लेकिन वाजपेयी कुछ महीनों बाद हुए चुनावों में फिर सत्ता में आ गए। इसके बाद स्वामी ने पक्के सेक्युलर को चोला पहन लिया था और उन्होंने 2000 में फ्रंटलाइन में लिखे एक लेख में RSS के बारे में कई नेगेटिव बातें कीं। इसमें उन्होंने और भी कई बातों के अलावा कहा - 


स्वामी के लेख आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।

अब आपके भी दिमाग़ में यह सवाल उठ रहा होगा कि वाजपेयी और RSS के बारे में ऐसी विषैली बातें कहनेवाले ये बड़े नेता आज भी बीजेपी में क्यों हैं? इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं, इसके बारे में चर्चा कल के पोस्ट में।