प्रधानमंत्री के साथ मिलकर अपने घर में गणपति की आरती करने वाले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ ने रिटायर होने के बाद देश को बताया कि राम जन्मभूमि केस का फैसला ईश्वरीय आशीर्वाद का परिणाम था। मौजूदा चीफ जस्टिस बी.आर. गवई को जूता मारने वाले वकील ने भी कहा कि भगवान की प्रेरणा से उसने ऐसा किया।
चोर और पुलिस, अपराधी और न्यायधीश, भगवान की कृपा सब पर एक बराबर बरस रही है। एकात्म मानवतावाद की तरह इसे आध्यात्मिक समाजवाद के नये राजनीतिक दर्शन के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए और सिर्फ एंटायर पॉटिकिल साइंस ही नहीं स्कूली सिलेबस में भी इसे अनिवार्य पाठ के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। 
जब देश में सबकुछ हरि इच्छा से चल रहा हो तो फिर हमें रामराज के आने पर शक क्यों होना चाहिए?

लोकतंत्र में जनता भगवान होती है। नेता ज्यादा बड़े भगवान होते हैं क्योंकि उन्हें स्वयं भगवान ने चुना होता है। ऐसे में देश को भगवान भरोसे तो होना ही है। 
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भारत की उच्च न्यायपालिका ने पिछले 10 साल में जो कहा है और जो किया है, उससे साफ होता है कि पूरे तंत्र पर संघी टोले का नियंत्रण है। किसी बड़े फैसले से पहले अगर किसी विद्वान न्यायधीश के श्रीमुख से न्यायिक नैतिकता वगैरह पर आशीर्वचन फूटते हैं तो देश आश्वस्त हो जाता है कि अंतिम निर्णय प्रवचन का ठीक उल्टा होगा।
अब आते हैं, ताजा जूता कांड पर। जूता उतारने से लेकर जूता फेंकने तक सबकुछ ईश्वरीय विधान से हुआ है। इसे एक परिवार के भीतर का मामला ही माना जाता लेकिन गलती से मिश्टेक हो गया। जूता उतारने वाला वकील ये भूल गया कि बिहार में विधानसभा का चुनाव है और चीफ जस्टिस साहब दलित हैं। नॉन बायोलॉजिकल महामानव चुनाव जीतने के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा कर रहे हैं और इस मामले की लीपा-पोती करने के लिए उन्हें अपने कीमती वक्त में से थोड़ा समय निकालकर बयान देना होगा। दलित जस्टिस गवई की जगह कोई और न्यायधीश होता तो उतना करने की भी जरूरत नहीं पड़ती।

भारत की उच्च न्यायपालिका ने पिछले 10 साल में जो कहा है और जो किया है, उससे साफ होता है कि पूरे तंत्र पर संघी टोले का नियंत्रण है। किसी बड़े फैसले से पहले अगर किसी विद्वान न्यायधीश के श्रीमुख से न्यायिक नैतिकता वगैरह पर आशीर्वचन फूटते हैं तो देश आश्वस्त हो जाता है कि अंतिम निर्णय प्रवचन का ठीक उल्टा होगा।

न्याय की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे न्यायधीश फिल्म `जाने भी दो यारों’ के सुपरहिट आखिरी सीन के धृतराष्ट्र की तरह नज़र आते हैं, जिसके सामने मार-कुटाई चलती रहती है और वो हर दो मिनट पर सिर्फ इतना ही कहता है “ ये क्या हो रहा है “
यूपी के बुलडोजर कानून पर चीफ जस्टिस समेत अलग-अलग न्यायधीशों ने दर्जनों पर कड़े तेवर अपनाये हैं लेकिन नतीजा क्या निकला? क्या सुप्रीम कोर्ट की इतनी हैसियत बची है कि अपने आदेशों को सख्ती से लागू करवा सके? इलाहबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव ने इस देश के एक समुदाय के खिलाफ दंगाइयों वाली भाषा का इस्तेमाल किया। सुप्रीम कोर्ट ने जब सफाई मांगी तो जस्टिस यादव ने सभ्य भाषा में जो कहा उसका  यही मतलब था कि आपको जो उखाड़ना है, उखाड़ लीजिये, मैं तो ऐसी ही भाषा बोलूंगा।
नरेंद्र मोदी के टैलेंट हंट से उपराष्ट्रपति बने लठैत जगदीप धनकड़ को जब अचानक कान पकड़कर हटाया गया तो अंदर की कहानी ये निकलकर आई कि विपक्ष जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग लाने वाला था और धनखड़ उसे मंजूरी देनेवाले थे। जस्टिस यादव ठहरे संघ के पुराने काडर ऐसे ईश्वरीय न्याय यही था कि उनकी जगह उप-राष्ट्रपि को बाहर रास्ता दिखा दिया जाये।
दिलचस्प बात ये है कि ऐतिहासिक रूप से बीजेपी और संघ परिवार की न्यायपालिका में आस्था कभी नहीं रही है। भारत रत्न लालकृष्ण आडवाणी के दर्जनों बयान आपको मिल जाएंगे जब वो सुप्रीम कोर्ट को लगभग धमकाते हुए कह रहे हैं कि राम-जन्मभूमि का मामला आस्था का प्रश्न है और इसपर कोई अदालती निर्णय मान्य नहीं होगा, इसलिए आप बीच में मत आइये।
संघ का दुलारा यू ट्यूबर पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ घूम-घूमकर बड़े गर्व से दावा कर रहा है कि जस्टिस गोगोई को एक कागज दिखाकर प्रधानमंत्री ने खुद ब्लैकमेल किया और तब जाकर राम मंदिर का ऐतिहासिक निर्णय सामने आया। सबको पता है कि इस फैसले के बाद रामजी की इच्छा से जस्टिस रंजन गोगोई ना सिर्फ मी-टू के मामले से बच गये बल्कि राज्यसभा सांसद भी हो गये।
न्यापालिका और सरकार के रिश्तों के बारे में जो बातें ढंकी छुपी थीं, वो सार्वजनिक हो चुकी हैं। प्रशांत भूषण जैसे लोगों ने खुलकर कहना शुरू कर दिया है कि जजों की ब्लैकमेलिंग के लिए बीजेपी ने पूरा तंत्र बना रखा है, इसलिए किसी भी ऐसे फैसले आ पाना लगभग नामुमकिन है, जो सरकार ना चाहे।
ये ठीक है, कि जूताबाज वकील के दिमाग पर जस्टिस गवई पर हमला बोलते वक्त जातीय घृणा रही होगी। लेकिन अगर इसमें एक दलित न्यायधीश का एंगिल ना होता तो प्रधानमंत्री अपना मुंह खोलते? सब यही मानते कि इसमें नया कुछ नहीं है और ये एक परिवार के भीतर का मामला है। 
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बीजेपी के हेट कैंपेन को आगे बढ़ाने वाले जिस गालीबाज यू ट्यूबर ने इस घटना के बाद चीफ जस्टिस की शान में सद्वचनों का प्रयोग किया उसे पकड़ा गया और कुछ घंटों की हिरासत के बाद छोड़ दिया गया। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर ये आदमी बीजेपी के इको-सिस्टम से बाहर का होता, उसके साथ वैसा ही सलूक होता?
दंगाइयों को मात करने वाले जस्टिस शेखर यादव एक दिन सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेंगे और हो सकता है हरि इच्छा से आगे चलकर चीफ जस्टिस भी बन जायें। रामराज की ये सिर्फ झांकी है, असली पिक्चर अभी बाकी है।