बीजेपी, शिवसेना विधायक दल का नेता तो चुन रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा, सरकार किसकी और कैसे बनेगी, यह सवाल अभी भी कायम है।
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर बीजेपी-शिवसेना के बीच घमासान जारी है। अब इस विवाद को सुलझाने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मुंबई आयेंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या वह इस विवाद को सुलझा पायेंगे।
बीजेपी-शिवसेना में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रहे घमासान को क्या बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ख़त्म कर पायेंगे।
शिवसेना ने मंगलवार शाम को दोनों पक्षों के दो-दो नेताओं के बीच होने वाली बैठक को इसी बयान के आधार पर रद्द कर दिया।
मुख्यमंत्री की कुर्सी के मुद्दे पर बीजेपी और शिवसेना में से कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं है। दोनों दलों के नेताओं के बीच तीख़े शब्दबाण भी चल रहे हैं।
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर बीजेपी-शिवसेना आमने-सामने आ गए हैं और दोनों ही दलों में से कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं है।
बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने कह दिया है कि 50-50 फ़ॉर्मूले के तहत मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर कोई वादा नहीं किया गया है। इसे लेकर सवाल यह खड़े हो गये हैं कि आख़िर कौन झूठ बोल रहा है।
महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी और शिवसेना आमने-सामने हैं। दोनों ही दल झुकने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि राज्य में सरकार कैसे बनेगी?
हरियाणा में तो बीजेपी ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ समझौता कर अपनी सरकार बना ली लेकिन महाराष्ट्र में उसकी पुरानी सहयोगी शिवसेना झुकने के लिए तैयार नहीं है।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के आवास मातोश्री में शनिवार को पार्टी के विधायकों की बैठक में बीजेपी से लिखित आश्वासन लेने की बात कही गई है।
शिवसेना को यह दुख हमेशा सालता रहा है कि जिस बीजेपी ने राज्य में शिवसेना का हाथ थाम कर अपनी ज़मीन मज़बूत की, अब वही शर्तों की राजनीति कर रही है। क्या फिर दोनों के बीच कड़वाहट आएगी?
कांग्रेस में इस्तीफ़े और असमंजस का दौर चल रहा है, जबकि 5 महीने बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। देवेंद्र फडणवीस के 220 सीटों पर जीत के दावे के बाद कहाँ टिकेगी कांग्रेस?
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 23 अप्रैल को महाराष्ट्र में जिन 14 लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होने जा रहे हैं वे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए अग्नि परीक्षा साबित होने वाले हैं।
2014 के चुनाव में मतदाताओं ने एकतरफ़ा वोट डाले थे, लेकिन इस बार चुनाव में वह मोदी लहर दिखाई नहीं दे रही है। हालाँकि सर्वेक्षण बीजेपी-शिवसेना के पक्ष में आते दिख रहे हैं, परिस्थितियाँ बदली हैं। तो किस करवट बैठेगा ऊँट?
क्या बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बाद भी पार्टी के शीर्ष नेताओं में अभी भी कोई कसक या गाँठ रह गयी है? एक दिन पहले ‘सामना’ में छपे संपादकीय को पढ़कर तो ऐसा ही लगता है।
भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के लोकसभा चुनाव से पूर्व शीर्ष स्तर पर किये गए गठबंधन का ज़मीनी स्तर पर विरोध अब सामने आने लगा है।
महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी-शिवसेना गठजोड़ को हराने के लिए कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस आघाडी यानी गठबंधन की नज़र प्रकाश आम्बेडकर-असदउद्दीन ओवैसी की वंचित आघाडी पर है।