उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सीमा पर झाँसी ज़िले में दो दिनों में हज़ारों की तादाद में बाहर से लौट रहे मज़दूर फँसे हुए हैं। अचानक पहुँचे उन मज़दूरों को झाँसी में रोक लिया गया और आगे नहीं जाने दिया गया।
अपने घरों से दूर दूसरे राज्यों और शहरों में फँसे मज़दूरों और दूसरे आप्रावासियों के लिए अच्छी ख़बर है। केंद्र सरकार ने कहा है कि ऐसे जिन लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण के लक्षण नहीं होंगे वे लॉकडाउन के दौरान भी अपने घर जा सकते हैं।
मुंबई से चलकर 1500 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती ज़िले में अपने घर पहुँचे 35 वर्षीय सख़्स की कुछ घंटों में ही मौत हो गई। वह मुंबई में थे तो बस किसी तरह घर पहुँचना चाहते थे।
ये कुछ ऐसी कहानियाँ हैं जिनका कि रिकॉर्ड और याददाश्त दोनों ही में बने रहना ज़रूरी है। कोरोना को एक-न-एक दिन ख़त्म होना ही है, ज़िंदा तो अंततः इसी तरह की लाखों-करोड़ों कहानियाँ ही रहने वाली हैं।
25 मार्च से कोरोना वायरस के डर के कारण भारत एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में है, और अब स्थिति का एक बार फिर से आकलन करने का समय आ गया है।
लॉकडाउन से ग़रीबों की बिगड़ती स्थिति के बीच कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने चावल से हैंड सैनिटाइजर बनाने के सरकार के फ़ैसले पर निशाना साधा है और कहा है कि ग़रीब भूखे मर रहे हैं और उनके हिस्से के चावल से सैनिटाइजर बनाए जा रहे हैं।
इस कठिन समय में सरकार के समक्ष भी विकल्प चुनने का संकट है कि लोगों की ‘ज़िंदगी’ और ‘रोज़ी-रोटी’ में से पहले किसे बचाए? मौजूदा संकट को भी एक युद्ध ही बताया गया है।
जो कम्पनी आज 5000 लोगों को खाना बाँट रही है, वह जब 1000 कामगारों की छँटनी करेगी तो हम जो उससे यह अनुदान लेकर लोगों को ज़िंदा रखने का संतोष लाभ कर रहे हैं, क्या उन कामगारों की तरफ़ से कुछ बोल पाएँगे?
मुंबई या देश के दूसरे स्थानों पर जो कुछ भी हुआ वह क्या नोटबंदी को लेकर अचानक की गई घोषणा और उसके बाद चली अफ़वाहों के कारण मची अफ़रा-तफ़री से अलग है?
लॉकडाउन के बाद बेरोज़गार हुए और भूखे रहने के संकट का सामना कर रहे मज़दूरों और अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए कुछ उद्योगों को शुरू किया जा सकता है।
आज ज़रूरत इस बात की है कि लॉकडाउन की वजह से देश के कोने-कोने में फँसे सभी लोगों को उनके गाँव-घर पहुँचाने की व्यवस्था की जाए।