मंगलेश डबराल के यहाँ स्मृति की केंद्रीय उपस्थिति है। उनका पहला काव्य संकलन ‘पहाड़ पर लालटेन’ भी उस कवि और व्यक्ति का अपनी स्मृति को बचाए और बनाए रखने की जद्दोजहद है जो पहाड़ से उतर कर मैदान में आया है।
भाषा के मामले में मंगलेशजी का जोड़ नहीं था। चूँकि वे मूल रूप से कवि थे इसलिए उनका गद्य इतना ललित और प्रवाहमान होता कि उसे समझने में कभी किसी को कोई दिक़्क़त नहीं होती।
मंगलेश डबराल हमारे समय के बहुत महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित कवि, लेखक, पत्रकार तो थे ही, मौजूदा निज़ाम के ख़िलाफ़ लगातार बुलंद रहने वाली एक प्रमुख आवाज़ थे।
मंगलेश डबराल गए, पर उनकी पहाड़ सी भव्य कविता हमारे-आपके बीच रहेगी।
साल 1948 में टिहरी के काफलपानी गांव में जन्मे मंगलेश जी की शिक्षा देहरादून में हुई। वै दैनिक जनसत्ता से लेकर भोपाल भारत भवन की पत्रिका पूर्वग्रह तक अनेक प्रतिष्ठित हिंदी प्रकाशनों से जुड़े रहे।
हिंदी के प्रख्यात कवि मंगलेश डबराल का बुधवार को निधन हो गया। वह 72 साल के थे। उन्होंने दिल्ली के एम्स में आख़िरी साँसें लीं। कुछ हफ़्ते पहले ही वह कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे
कला विदुषी कपिला वात्स्यायन का निधन हो गया। 25 दिसंबर, 1928 को पंजाबी पारंपरिक परिवार में जन्मी वात्स्यायन ने भारतीय कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
हमारे देश की जटिल, सामाजिक और कई परतों वाली संस्कृति और उससे जुड़ी भाषाओं के बारे में बीजेपी के लगभग सभी नेताओं की समझ कमोबेश कमज़ोर रही है।
‘सबसे ख़तरनाक होता है’ एक ऐसी कविता है जिसे शायद पिछले तीन दशक में जागरूक पाठकों द्वारा सबसे अधिक पढ़ा गया। उसके रचनाकार पाश अगर आज होते तो जीवन के सत्तरवें वर्ष में प्रवेश कर रहे होते।
ऐसा संयोग कम ही होता है कि किसी रचनाकार की हर रचना हमेशा आला दर्जे की, अनोखी और लाजवाब हो और कुछ भी फालतू और कामचलाऊ न लगे। खय्याम ऐसे ही दुर्लभ संयोगों से बने थे।