रमेश जोशी ने व्यंग्य में निर्जला एकादशी और बकरीद के बहाने धार्मिक कट्टरता, राजनीतिक अवसरवाद और सामाजिक पाखंड पर करारा प्रहार किया है। हास्य और तर्क के बीच समाज की परतें उधेड़ता यह व्यंग्य पढ़ें।
पीएम मोदी ने हाल ही में बीकानेर में भाषण दिया कि सिंदूर उनके खून में दौड़ता है। उसके बाद देश में सिंदूर और इसके सेवन पर चर्चा हो रही है। वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन बता रहे हैं कि उनके गांव में किसी ने सिंदूर घोलकर पी लिया तो क्या हुआः
2014 के बाद कैसा-कैसा 'विकास' हुआ है? पहले अयोध्या में राम पथ था? नहीं था। अब है और बनते ही पहली बरसात में उसमें बड़े -बड़े गड्ढे पड़ गए। राम पथ न बनता तो गड्ढे कहां पड़ते, गड्ढों को 'विकास' का अवसर इस सरकार ने भरपूर दिया है। 'विकास' हुआ या नहीं?
भारतीय राजनीति में इस समय धृतराष्ट्र और उसका संजय कौन है। व्यंग्यकार राकेश कायस्थ की नजर से इस धृतराष्ट्र और संजय को पहचानिए और उनके जुमलों को पढ़िएः
उस शख्स ने कभी चौराहे पर जूते लगाए जाने की पेशकश की थी। लेकिन आज वो इतना गिर चुका है कि उसके बाद उसके गिरावट को मापने का कोई तरीका ही नहीं बचा है। वरिष्ठ पत्रकार-लेखक विष्णु नागर ने उसके गिरने की सीमा नापने की कोशिश की, लेकिन वो नाप नहीं पाए और अंत में उन्हें भी कहना पड़ा- कायर कहीं के। जरा आप भी गिरने की सीमा नापने की कोशिश करेंः
हराम के खाने की कोई बाकायदा दुकान नहीं होती, कोई साइन बोर्ड नहीं होता, कोई रेट कार्ड नहीं होता, दिखाने लायक कोई पदार्थ नहीं होता। जो भी होता है, निराकार होता है। पढ़िए, विष्णु नागर का व्यंग्य...।
किसी देश का महाबली अपने मतदाताओं को संबोधित कर रहा है। वो अपने संबोधन में क्या-क्या कहता है, जानिए। देश के मौजूदा हालात पर देश के जाने-माने पत्रकार मुकेश कुमार का यह व्यंग्य बहुत सामयिक है। पढ़िए और पढ़ाइएः