समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कुछ मीडिया समूहों के खिलाफ एक बड़ा अभियान शुरू किया है। उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों से समाचार पत्र दैनिक जागरण और न्यूज 24 का पूर्ण बहिष्कार करने की अपील की है। अखिलेश ने इन मीडिया समूहों पर खुलकर हिंदुत्व का प्रचार करने और मुसलमानों के साथ-साथ समाजवादी पार्टी और उनकी स्वयं की छवि को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है।

अखिलेश यादव ने सोमवार को एक बयान में कहा, "दैनिक जागरण और न्यूज 24 जैसे मीडिया समूह पत्रकारिता के मूल्यों को ताक पर रखकर सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर काम कर रहे हैं। ये लोग न केवल हिंदुत्व का प्रचार कर रहे हैं, बल्कि मुसलमानों, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के खिलाफ एक सुनियोजित अभियान चला रहे हैं। मैं अपने सभी कार्यकर्ताओं और समर्थकों से अपील करता हूं कि दैनिक जागरण समूह से जुड़ी हर चीज का बहिष्कार करें और इसे न पढ़ें।" इससे पहले, अखिलेश ने न्यूज 24 के बहिष्कार की घोषणा की थी, और अब दैनिक जागरण को भी इस सूची में शामिल कर लिया गया है।

अखिलेश यादव की इस अपील का असर तुरंत देखने को मिला। मंगलवार सुबह से ही उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में सपा समर्थकों ने दैनिक जागरण अखबार लेने से इनकार कर दिया। लखनऊ में एक सपा कार्यकर्ता ने बताया कि उसने अपने स्थानीय अखबार विक्रेता को सूचित कर दिया है कि वह अब दैनिक जागरण नहीं लेगा और इसके बजाय अन्य समाचार पत्रों को प्राथमिकता देगा। सोशल मीडिया पर भी सपा समर्थकों ने इस अभियान को समर्थन देते हुए दैनिक जागरण और न्यूज 24 के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की है।

कई सपा नेताओं का कहना है कि यह अभियान न केवल मीडिया की कथित पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग के खिलाफ है, बल्कि यह एक बड़े सामाजिक संदेश का हिस्सा भी है। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "अखिलेश जी का यह कदम उन ताकतों को जवाब है जो समाज को बांटने का काम कर रही हैं। हमारी पार्टी हमेशा से समावेशी राजनीति की पक्षधर रही है, और हम ऐसे मीडिया समूहों को बर्दाश्त नहीं करेंगे जो नफरत फैलाने का काम करते हैं।"

अखिलेश यादव ने अपने बयान में यह भी आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में कई मीडिया समूह खुलकर हिंदुत्व का प्रचार कर रहे हैं, जिसके चलते मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा, "ये मीडिया समूह सत्ताधारी पार्टी के एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं और मुसलमानों के खिलाफ नफरत भड़काने में लगे हैं। यह पत्रकारिता नहीं, बल्कि प्रोपेगेंडा है।" सपा और कांग्रेस, जो उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन का हिस्सा हैं, लंबे समय से यह आरोप लगाते रहे हैं कि कुछ मीडिया समूह उनकी छवि को धूमिल करने के लिए सत्ताधारी पार्टी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

हाल के दिनों में, उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें कुछ मीडिया समूहों की भूमिका पर सवाल उठे हैं। सपा नेताओं का दावा है कि दैनिक जागरण और न्यूज 24 जैसे समूहों ने ऐसी खबरें प्रकाशित की या दिखाई हैं, जिन्होंने मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया। अखिलेश यादव ने इस मुद्दे को लेकर केंद्र और राज्य सरकार पर भी निशाना साधा और कहा कि सरकार की चुप्पी इस बात का सबूत है कि वह इस तरह के प्रचार को समर्थन दे रही है।

रामनवमी जुलूस के दौरान यूपी के कई शहरों में उत्पात मचाया गया। मस्जिदों के आगे भड़काने वाले गानों पर डांस हुआ लेकिन यूपी में प्रमुख मीडिया समूहों ने इन घटनाओं की सही और ईमानदार रिपोर्टिंग नहीं की। कुछ स्थानों की ऐसी खबरों को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया।

हालांकि यह अभियान मुख्य रूप से मीडिया और राजनीतिक रणनीति से जुड़ा है, लेकिन कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इसका असर व्यापक सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी देखने को मिल सकता है। मीडिया समूहों के बहिष्कार से जहां एक ओर इन समूहों की विश्वसनीयता और आमदनी पर असर पड़ सकता है, वहीं दूसरी ओर इससे उत्तर प्रदेश में सामाजिक ध्रुवीकरण और गहरा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के कदमों से समाज में पहले से मौजूद तनाव और बढ़ सकता है, जिसका असर लंबे समय तक देखने को मिलेगा।

अखिलेश यादव का यह कदम 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की तैयारियों का हिस्सा माना जा रहा है। सपा पहले से ही अपने पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) गठबंधन को मजबूत करने में जुटी है, और इस अभियान को उसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कांग्रेस के साथ गठबंधन के तहत सपा यह संदेश देना चाहती है कि वह अल्पसंख्यक समुदायों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। एक सवाल यह भी है कि क्या अन्य विपक्षी दल भी इस मुहिम में सपा का साथ देंगे।

उत्तर प्रदेश में हाल के वर्षों में मीडिया की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं, खासकर सांप्रदायिकता और पक्षपात के मुद्दों पर। अखिलेश यादव जैसे नेताओं के हालिया बयानों और उनके द्वारा दक्षिणपंथी मीडिया समूहों जैसे दैनिक जागरण और न्यूज 24 के बहिष्कार की अपील ने इस बहस को और हवा दी है। यह सवाल कि क्या यूपी में मीडिया सांप्रदायिक हो गया है, जटिल है और इसके कई पहलुओं पर विचार करना जरूरी है।

उत्तर प्रदेश में कई मीडिया समूहों पर यह आरोप लगता रहा है कि वे सांप्रदायिक एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं। विपक्षी दलों, खासकर सपा और कांग्रेस, का दावा है कि कुछ प्रमुख समाचार पत्र और चैनल खुलकर हिंदुत्व का प्रचार कर रहे हैं और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाली खबरें दिखा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, हाल के वर्षों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की कवरेज में कुछ मीडिया समूहों पर एकतरफा रिपोर्टिंग का आरोप लगा है। 2023 में कासगंज और बरेली में हुई सांप्रदायिक घटनाओं की कवरेज में कई समाचार पत्रों ने ऐसी सुर्खियां दीं, जिन्हें मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काऊ माना गया।

साथ ही, सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली खबरों और वीडियो में भी यह देखा गया है कि कुछ स्थानीय चैनल और अखबार सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हैं। "लव जिहाद" और "घर वापसी" जैसे मुद्दों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना, और इनके जरिए एक खास समुदाय को निशाना बनाना, इन आरोपों को बल देता है। अखिलेश यादव ने अपने बयान में कहा कि दैनिक जागरण और न्यूज 24 जैसे समूह "प्रोपेगेंडा" फैला रहे हैं, जो न केवल मुसलमानों को निशाना बनाता है, बल्कि विपक्षी दलों की छवि को भी धूमिल करता है।

उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ कुछ मीडिया समूहों की कथित नजदीकी भी इस बहस का एक बड़ा कारण है। विपक्षी दलों का आरोप है कि कई मीडिया हाउस सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर काम कर रहे हैं और उनकी नीतियों का प्रचार कर रहे हैं। बीजेपी की हिंदुत्व-केंद्रित राजनीति को बढ़ावा देने के लिए कुछ समाचार पत्र और चैनल खुलकर सरकार की तारीफ करते नजर आते हैं, जबकि विपक्षी दलों की आलोचना में आक्रामक रुख अपनाते हैं। उदाहरण के लिए, 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान कई मीडिया समूहों पर यह आरोप लगा कि उन्होंने सपा और कांग्रेस के खिलाफ नकारात्मक कवरेज की, जबकि बीजेपी की रैलियों और नेताओं को ज्यादा सकारात्मक कवरेज दी।

इसके अलावा, कुछ पत्रकारों और मीडिया हाउसों ने स्वीकार किया है कि उन पर सरकार या सत्ताधारी नेताओं का दबाव रहता है। 2024 में एक स्वतंत्र पत्रकार ने खुलासा किया कि स्थानीय प्रशासन ने उन्हें धमकी दी थी जब उन्होंने एक सांप्रदायिक घटना की निष्पक्ष रिपोर्टिंग की कोशिश की। इस तरह के दबाव के चलते कई मीडिया समूह सत्ताधारी पार्टी के अनुकूल खबरें चलाने को मजबूर हो जाते हैं, जिससे उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।

बहरहाल, यूपी में अभी भी कई स्वतंत्र पत्रकार और छोटे मीडिया समूह हैं जो निष्पक्ष और संतुलित रिपोर्टिंग की कोशिश कर रहे हैं। कुछ डिजिटल प्लेटफॉर्म और स्थानीय समाचार चैनल सांप्रदायिक मुद्दों पर संवेदनशीलता के साथ कवरेज करते हैं और दोनों पक्षों को सामने लाने की कोशिश करते हैं। 

मीडिया की कथित सांप्रदायिकता का सबसे बड़ा प्रभाव समाज पर पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश में पहले से ही सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं आम हैं, और अगर मीडिया इस तनाव को बढ़ाने का काम करता है, तो यह सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक हो सकता है। 2023 में मुजफ्फरनगर में एक छोटी घटना को कुछ स्थानीय अखबारों ने इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया कि इलाके में कई दिनों तक तनाव बना रहा। इस तरह की घटनाएं न केवल समुदायों के बीच अविश्वास को बढ़ाती हैं, बल्कि राजनीतिक ध्रुवीकरण को भी गहरा करती हैं।