अखिलेश यादव ने अपने बयान में यह भी आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में कई मीडिया समूह खुलकर हिंदुत्व का प्रचार कर रहे हैं, जिसके चलते मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा, "ये मीडिया समूह सत्ताधारी पार्टी के एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं और मुसलमानों के खिलाफ नफरत भड़काने में लगे हैं। यह पत्रकारिता नहीं, बल्कि प्रोपेगेंडा है।" सपा और कांग्रेस, जो उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन का हिस्सा हैं, लंबे समय से यह आरोप लगाते रहे हैं कि कुछ मीडिया समूह उनकी छवि को धूमिल करने के लिए सत्ताधारी पार्टी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
रामनवमी जुलूस के दौरान यूपी के कई शहरों में उत्पात मचाया गया। मस्जिदों के आगे भड़काने वाले गानों पर डांस हुआ लेकिन यूपी में प्रमुख मीडिया समूहों ने इन घटनाओं की सही और ईमानदार रिपोर्टिंग नहीं की। कुछ स्थानों की ऐसी खबरों को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया।
अखिलेश यादव का यह कदम 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की तैयारियों का हिस्सा माना जा रहा है। सपा पहले से ही अपने पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) गठबंधन को मजबूत करने में जुटी है, और इस अभियान को उसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कांग्रेस के साथ गठबंधन के तहत सपा यह संदेश देना चाहती है कि वह अल्पसंख्यक समुदायों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। एक सवाल यह भी है कि क्या अन्य विपक्षी दल भी इस मुहिम में सपा का साथ देंगे।
उत्तर प्रदेश में कई मीडिया समूहों पर यह आरोप लगता रहा है कि वे सांप्रदायिक एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं। विपक्षी दलों, खासकर सपा और कांग्रेस, का दावा है कि कुछ प्रमुख समाचार पत्र और चैनल खुलकर हिंदुत्व का प्रचार कर रहे हैं और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाली खबरें दिखा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, हाल के वर्षों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की कवरेज में कुछ मीडिया समूहों पर एकतरफा रिपोर्टिंग का आरोप लगा है। 2023 में कासगंज और बरेली में हुई सांप्रदायिक घटनाओं की कवरेज में कई समाचार पत्रों ने ऐसी सुर्खियां दीं, जिन्हें मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काऊ माना गया।
उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ कुछ मीडिया समूहों की कथित नजदीकी भी इस बहस का एक बड़ा कारण है। विपक्षी दलों का आरोप है कि कई मीडिया हाउस सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर काम कर रहे हैं और उनकी नीतियों का प्रचार कर रहे हैं। बीजेपी की हिंदुत्व-केंद्रित राजनीति को बढ़ावा देने के लिए कुछ समाचार पत्र और चैनल खुलकर सरकार की तारीफ करते नजर आते हैं, जबकि विपक्षी दलों की आलोचना में आक्रामक रुख अपनाते हैं। उदाहरण के लिए, 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान कई मीडिया समूहों पर यह आरोप लगा कि उन्होंने सपा और कांग्रेस के खिलाफ नकारात्मक कवरेज की, जबकि बीजेपी की रैलियों और नेताओं को ज्यादा सकारात्मक कवरेज दी।