इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस अध्यादेश पर सवाल उठाए हैं जिसमें वृंदावन के मशहूर बांके बिहारी मंदिर को चलाने के लिए एक सरकारी ट्रस्ट बनाने की बात कही गई है। जज रोहित रंजन अग्रवाल ने सुनवाई के दौरान साफ कहा, 'हम सरकार को धर्म के मामलों में दखल देने की इजाजत नहीं देंगे। सरकार को मंदिर के बाहर की भीड़ और सुरक्षा जैसी व्यवस्था देखनी चाहिए, न कि मंदिर के अंदर के कामों में हस्तक्षेप करना चाहिए।' कोर्ट ने यह भी पूछा, 'संविधान और सरकार का कोई धर्म नहीं है, फिर आप मंदिर के काम में क्यों घुस रहे हैं?'

यह मामला भगवान राधा-कृष्ण को समर्पित वृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर से जुड़ा है। यह मंदिर बहुत पुराना और प्रसिद्ध है। इसे स्वामी हरिदास जी के वंशज और उनके अनुयायी निजी तौर पर चलाते हैं। मंदिर में क़रीब 360 पुजारी (सेवायत) पूजा और अन्य धार्मिक काम करते हैं। लेकिन मंदिर के प्रबंधन को लेकर दो पुजारी समूहों में लंबे समय से झगड़ा चल रहा है, जिसके कारण यह मामला कोर्ट तक पहुँचा।
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इस साल मार्च में हाई कोर्ट ने इस झगड़े को सुलझाने के लिए वकील संजय गोस्वामी को ‘न्याय मित्र’ बनाया। लेकिन मई 2025 में यूपी सरकार ने एक अध्यादेश लाने की घोषणा की, जिसमें ‘श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास’ नाम का ट्रस्ट बनाने की बात कही गई। इस ट्रस्ट में 11 लोग होंगे, जिनमें से 7 मथुरा का डीएम, एसएसपी, नगर आयुक्त जैसे सरकारी अधिकारी होंगे। नियम के मुताबिक, सभी ट्रस्टी को सनातन धर्म मानने वाला होना ज़रूरी है।

कोर्ट में क्या हुआ?

21 जुलाई को कोर्ट में सुनवाई के दौरान संजय गोस्वामी ने कहा था कि बांके बिहारी मंदिर एक निजी मंदिर है, जिसे स्वामी हरिदास के परिवार वाले चलाते हैं। उन्होंने सरकार के अध्यादेश को गलत बताया और कहा कि यह मंदिर के काम में दखल देने की कोशिश है। गोस्वामी ने पूछा कि सरकार को मंदिर के बाहर की व्यवस्था संभालनी चाहिए, लेकिन मंदिर के धार्मिक कामों में क्यों हस्तक्षेप कर रही है? उन्होंने कहा कि यह अध्यादेश संविधान के खिलाफ है, क्योंकि यह हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों का हनन करता है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने धार्मिक क्षेत्र में प्रवेश के प्रयास के लिए राज्य सरकार की संवैधानिक औचित्य पर सवाल उठाया।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार को अदालत ने मौखिक रूप से कहा, 'ये हम अनुमति नहीं देंगे कि राज्य को धर्म में प्रवेश करने दें। मैं सरकार से पूछूंगा कि सरकार धर्म में कैसे प्रवेश कर रही है... आप बाहर की व्यवस्था देखिये, अंदर मत घुसिये... आप मंदिर प्रशासन की योजना बनाइये, लेकिन आपका आदमी अंदर नहीं होगा... संविधान का कोई धर्म नहीं है, सरकार का कोई धर्म नहीं है तो क्यों घुस रहे हैं?'

सुप्रीम कोर्ट में भी मामला

इसके साथ ही मंदिर के प्रबंधन और पुजारियों ने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की है। उन्होंने अध्यादेश को गलत बताया और कहा कि यह संविधान के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट में जज सूर्यकांत और जॉयमल्या बागची ने 28 जुलाई को इस पर सुनवाई की। वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि बांके बिहारी मंदिर निजी है और सरकार को इसके धार्मिक कामों में दखल नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने मामले को स्थगित कर दिया और याचिकाकर्ताओं को इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपनी बात रखने को कहा।
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कॉरिडोर का विवाद

इस मामले में एक और मुद्दा है मंदिर के आसपास कॉरिडोर बनाने का। सरकार का कहना है कि मंदिर में हर दिन 50,000 से ज्यादा भक्त आते हैं और त्योहारों पर यह संख्या 5 लाख तक पहुंच जाती है। कॉरिडोर बनाने से भक्तों को पार्किंग और शौचालय जैसी सुविधा होगी। लेकिन मंदिर के पुजारी और भक्त इस योजना के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि सरकार मंदिर की 300 करोड़ रुपये की संपत्ति का इस्तेमाल कॉरिडोर के लिए कर रही है, जो गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2025 में सरकार को मंदिर के पैसे से जमीन खरीदने की इजाजत दी थी, लेकिन इसका रजिस्ट्रेशन मंदिर के देवता के नाम पर होना चाहिए।

यह मामला सोशल मीडिया पर भी छाया हुआ है। कई लोग हाई कोर्ट की टिप्पणियों का समर्थन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि सरकार को मंदिर के धार्मिक कामों में दखल नहीं देना चाहिए। कुछ लोग कॉरिडोर प्रोजेक्ट का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे भक्तों को फायदा होगा।
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यह मामला न केवल बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन से जुड़ा है, बल्कि यह भी तय करेगा कि क्या सरकार को निजी धार्मिक स्थानों के काम में दखल देने का अधिकार है। यह विवाद संविधान के उन नियमों को भी प्रभावित कर सकता है, जो धर्म की स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन की बात करते हैं।

बांके बिहारी मंदिर का यह मामला धार्मिक आज़ादी और सरकारी हस्तक्षेप के बीच के टकराव को सामने लाता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई से यह तय होगा कि मंदिर का प्रबंधन किसके पास रहेगा और क्या सरकार को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार है। भक्तों और मंदिर से जुड़े लोगों की नजरें अब कोर्ट के अगले फैसले पर टिकी हैं।