उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अवैध घुसपैठियों के खिलाफ सख्ती बरतने के निर्देश जारी करते हुए सभी जिलाधिकारियों को तत्काल कार्रवाई करने का आदेश दिया है। उन्होंने हर जिले में अस्थायी हिरासत केंद्र (डिटेंशन सेंटर) स्थापित करने की बात कही है, जहां पहचाने गए घुसपैठियों को रखा जाएगा। राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हुए सीएम ने स्पष्ट किया कि किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधि बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

एक सरकारी बयान के अनुसार, मुख्यमंत्री ने जारी निर्देशों में कहा कि कानून-व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक सद्भाव राज्य सरकार की प्रमुख प्राथमिकताएं हैं। जिला प्रशासन को अपने क्षेत्रों में अवैध प्रवासियों की पहचान करने और कानून के अनुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है। योगी सरकार ने जोर दिया कि अवैध घुसपैठ पर कोई ढील नहीं दी जाएगी और दोषियों के खिलाफ कठोर कदम उठाए जाएंगे।

इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के सात जिले नेपाल के साथ खुली सीमा साझा करते हैं, जहां दोनों देशों के नागरिकों का आवागमन स्वतंत्र रूप से होता है। हालांकि, अन्य देशों के निवासियों पर सख्त जांच का प्रावधान है। सीएम के इस निर्देश से सीमावर्ती जिलों में सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने की उम्मीद है।

हालांकि घुसपैठियों का मुद्दा पीएम मोदी, अमित शाह और बीजेपी के अन्य नेताओं ने जोरशोर से उठाया था। अब पश्चिम बंगाल और 2027 में यूपी विधानसभा का चुनाव है तो तो अभी से इस मुद्दे को गरमाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।
हालांकि यूपी सरकार के अधिकारियों का दावा है कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है, जो अवैध प्रवासियों के खिलाफ राज्य स्तर पर व्यापक अभियान चला सकता है। जिला मजिस्ट्रेटों को इन निर्देशों का शीघ्र पालन सुनिश्चित करने को कहा गया है।

घुसपैठियों पर अब तक कितनी सफलता

बिहार में अवैध घुसपैठियों (इनफिल्ट्रेटर्स) का मुद्दा हाल के विधानसभा चुनावों (2025) के दौरान जोर-शोर से उठाया गया, खासकर बीजेपी और एनडीए के नेताओं द्वारा। चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) अभियान के तहत वोटर लिस्ट की जांच की गई, जिसमें मृत, स्थानांतरित या अनट्रेस्ड वोटर्स को हटाया गया। कुल 47 लाख से अधिक नाम हटाए गए, लेकिन विदेशी घुसपैठियों की सटीक संख्या पर आयोग ने कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं दिया।

लगभग 9,500 लोग (कुल 7.42 करोड़ वोटर्स का मात्र 0.012%) को 'अयोग्य' घोषित किया गया, जिसमें विदेशी नागरिक संभावित रूप से शामिल हो सकते हैं।

SIR के दौरान 11,000 से अधिक 'अनट्रेस्ड' वोटर्स मिले, जिनके पास भारतीय आईडी (जैसे आधार, राशन कार्ड) थे। इनमें बांग्लादेशी, रोहिंग्या या म्यांमार/नेपाल के नागरिकों का संदेह जताया गया।

ये आंकड़े सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, कटिहार आदि) पर केंद्रित हैं, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है। हालांकि, अधिकांश हटाए गए नाम मौत, स्थानांतरण या डुप्लिकेट के कारण थे, न कि घुसपैठ के। इस तरह घुसपैठियों की बात बिहार में झूठी साबित हुई लेकिन इसे उछालने की वजह से वो धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण कराने में कामयाब हुई। बिहार में चूंकि यह मुद्दा चला, इसलिए उस प्रयोग को अब बाकी राज्यों में दोहराने की तैयारी है। जिसमें यूपी ने जोरशोर से पहल की है और डिटेंशन सेंटर इसीलिए बनाए जा रहे हैं। 
  • आने वाले दिनों में यूपी में बड़े पैमाने पर समुदाय विशेष के लोगों की धरपकड़ शुरू हो सकती है। सरकार का आदेश इसी तरह इशारा भी कर रहा है।

बुलडोज़र राजनीति के बाद अब घुसपैठियों पर पॉलिटिक्स

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने घुसपैठियों के खिलाफ सख्ती (जैसे प्रत्येक जिले में अस्थायी हिरासत केंद्र) और 'बुलडोजर पॉलिटिक्स' को कथित कानून-व्यवस्था सुधारने का हथियार बनाया है। लेकिन नतीजा शून्य है। यूपी में बदतर कानून व्यवस्था है।
योगी 2017 में सत्ता में आए थे। उसके बाद से यूपी में धार्मिक ध्रुवीकरण, लिचिंग की घटनाएं तेज हुई हैं। हाल ही में आई लव मुहम्मद के दौरान भी यही सब देखने को मिला था।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में बुलडोजर कार्रवाई पर चेतावनी दी, कहा कि यह 'डेमोलिशन बिना ड्यू प्रोसेस' है। उसने बुलडोज़र एक्शन पर रोक लगा दी। लेकिन आदेश में कमी की वजह से यूपी और अन्य बीजेपी शासित राज्य किसी न किसी बहाने खासतौर पर मुस्लिमों की संपत्तियों पर बुल़डोज़र चला रहे हैं। इस वजह से सहारनपुर, कानपुर में हिंसा की घटनाएं भी हुईं। आंकड़ों से पता चलता है कि 70% से अधिक तोड़फोड़ मुस्लिम संपत्तियों पर हुई।

घुसपैठियों का मुद्दा 'लैंड जिहाद' से जोड़कर धार्मिक पूर्वाग्रह दिखाता है। बुलडोजर को 'राष्ट्रवाद' का प्रतीक बना दिया गया है, जो अल्पसंख्यकों में भय पैदा करता है। कांग्रेस ने इसे 'दलित-आदिवासी अल्पसंख्यकों के खिलाफ' बताया। योगी ने बिहार-झारखंड रैलियों में बुलडोजर को 'माफिया-घुसपैठिए' के खिलाफ हथियार बताया, लेकिन आलोचक कहते हैं कि यह विकास से ध्यान भटकाता है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी (2024) इसका इस्तेमाल जारी है, जो न्यायपालिका की अवहेलना जैसा लगता है।


बुलडोजर पॉलिटिक्स ने UP में 'मजबूत सरकार' की छवि बनाई, लेकिन यह संवैधानिक मूल्यों (समानता, निष्पक्षता) को खतरे में डालती है। सख्ती जरूरी है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के बिना यह 'राजनीतिक हथियार' बन जाती है। मानवाधिकार संगठनों (जैसे एमनेस्टी) ने इसे 'सामुदायिक सजा' कहा है।