नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के बाद जातीय समीकरण और मंत्रियों की जाति बताए जाने का प्रचार जोर शोर से चल रहा है। किसी भी मंत्रिमंडल विस्तार में जाति की चर्चा संभवतः उतनी तेज़ी से नहीं हुई, जितनी कि इस विस्तार में हुई है। ख़ासकर उत्तर प्रदेश के मंत्रियों की चर्चा ख़ूब हुई, जहाँ से 7 मंत्रियों को मंत्रिपरिषद में जगह मिली है।
इन मंत्रियों में से 3 अन्य पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। बीजेपी के सहयोगी अपना दल की नेता और मिर्जापुर सांसद अनुप्रिया पटेल कुर्मी जाति से हैं, जिन्हें वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया है। वहीं महराजगंज से कुर्मी बिरादरी के सांसद पंकज चौधरी को वित्त राज्य मंत्री बनाया गया है। उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड इलाक़े के राज्यसभा सांसद बीएल वर्मा लोधी जाति के हैं, जिन्हें पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास और सहकारिता राज्य मंत्री बनाया गया है।
लोध और कुर्मी जाति के लोग अमूमन उत्तर प्रदेश में बीजेपी के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। इस विस्तार में बरेली के सांसद और श्रम एवं रोज़गार मंत्री रहे संतोष गंगवार को मंत्रिमंडल से हटा दिया गया है। गंगवार वरिष्ठ नेता हैं और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी राज्यमंत्री रहे थे। उसके बावजूद उन्हें मोदी-1 सरकार में राज्यमंत्री पद तक समेट दिया गया था और मोदी-2 सरकार में भी किसी तरह राज्यमंत्री का पद ही उन्हें नसीब हो सका। उनके रिप्लेसमेंट में पंकज चौधरी को लाया गया है, जिनका लंबे समय का संसदीय अनुभव है। यह भी माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पूर्वी उत्तर प्रदेश में काट तैयार करने के लिए पंकज चौधरी को जगह दी गई है। लंबे समय से गोरखपुर के पड़ोसी ज़िले महराजगंज का प्रतिनिधित्व कर रहे उस क्षेत्र के उद्योगपति और तेल राहतरूह कंपनी के मालिक चौधरी के ताल्लुकात मंदिर से बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। कुल मिलाकर गंगवार की जगह चौधरी को शामिल कर बीजेपी ने रणनीतिक रिप्लेसमेंट किया है।
अपना दल को लेकर हाल के महीनों में तरह-तरह की चर्चाएँ चलीं, जिनमें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) से तालमेल करना भी शामिल था। पार्टी के नेता उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में पहले से ही मंत्री हैं।
अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल को उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राज्यमंत्री पद का झुनझुना थमाया गया था और 2022 के चुनाव के पहले भी बीजेपी ने वही टोटका आजमाया है।
लोध नेता बीएल वर्मा की मोदी सरकार में नई प्रविष्टि है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट आंदोलनों के बाद हाशिये पर आई बीजेपी ने बीएल वर्मा के माध्यम से लोध मतदाताओं को थामने की एक छोटी सी कवायद की है। उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुके बीजेपी के दिग्गज लोध नेता कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह योगी सरकार में राज्यमंत्री हैं, ऐसे में उनके बेटे राजवीर सिंह को मंत्री न बनाकर बदायूँ के बीएल वर्मा को चुनना पड़ा, जिससे रुहेलखंड के कुछ ज़िलों में प्रभावशाली लोध जाति के लोगों को बीजेपी में रोका जा सके।
आवास एवं शहरी विकास राज्य मंत्री बने पासी जाति के कौशल किशोर लखनऊ से सटे मोहनलाल गंज सुरक्षित सीट से दूसरी बार बीजेपी के सांसद हैं। उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से राजनीतिक सफर शुरू किया, समाजवादी पार्टी की सरकार में श्रम राज्यमंत्री बने। 2014 में बीजेपी का दामन थामकर संसद पहुँच गए। 2019 के चुनावी जनसभा में अमित शाह ने उन्हें मंत्री बनाने का वादा किया था और अब उन्हें राज्यमंत्री बना दिया गया है, जो बीजेपी के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं।
जालौन की गरौठा भोगिनीपुर सुरक्षित सीट से चुनाव जीते 5 बार के सांसद भानु प्रताप सिंह वर्मा को सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है। भानु कोरी जाति से ताल्लुक रखते हैं और माना जाता है कि इनका अपने समाज के मतदाताओं में अच्छी पकड़ है। संभवतः यही वजह है कि वह 1996 में जालौन-गरौठा से पहली बार, और 1998 में दूसरी बार सांसद बने। 2004 के लोकसभा में भी वह जीतने में कामयाब रहे, जब बीजेपी चौतरफ़ा हारी थी। वहीं 2014 और 2019 की मोदी लहर में भी उन्हें सफलता मिली। भानु दलबदलू नहीं हैं, संभवतः उन्हें निष्ठा का पुरस्कार मिला है। लेकिन इस पुरस्कार के पीछे इलाक़े के कोरी जाति को साधना भी अहम है, क्योंकि राष्ट्रपति कोविंद प्रत्यक्ष रूप से बीजेपी का प्रचार नहीं कर सकते।
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आगरा सुरक्षित सीट से सांसद सत्यपाल सिंह बघेल का विवादों से गहरा नाता रहा है। उनकी धनगर जाति ही विवादों के घेरे में रही है। उन्हें क़ानून और न्याय राज्य मंत्री बनाया गया है। उत्तर प्रदेश पुलिस में इंस्पेक्टर के रूप में तैनात बघेल को 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सुरक्षा का मौक़ा मिला। वह मुख्यमंत्री के पीएसओ रहे। मुलायम सिंह ने उन्हें 1998 में जलेसर सीट से चुनाव में उतारा और वह लोकसभा में पहुँच गए। जब बघेल बसपा में शामिल हुए तो 2010 में वह राज्यसभा पहुँचे और पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव भी बन गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में वह अक्षय यादव के ख़िलाफ़ फ़िरोज़ाबाद से चुनाव लड़े और हार गए। उसके बाद राज्यसभा से इस्तीफ़ा देकर वह बीजेपी में शामिल हो गए और बीजेपी पिछड़ा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। 2017 के विधानसभा चुनाव में वह टुंडला सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और योगी आदित्यनाथ सरकार में कई विभागों के प्रभारी के साथ कैबिनेट मंत्री बने।
2013 में तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर धनगर जाति को पिछड़े वर्ग से हटाकर अनुसूचित जाति में कर दिया था। 2016 में इसी तरह की एक और अधिसूचना जारी की गई।
बघेल के टुंडला सीट से चुनाव जीतने के बाद बसपा के राकेश बाबू ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर धनगर को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने को चुनौती दी। योगी सरकार ने भी जनवरी, 2019 में धनगर जाति को एससी का जाति प्रमाणपत्र जारी करने को लेकर नई अधिसूचना जारी की। इसके अलावा भी धनगर को अनुसूचित जाति में डाले जाने के ख़िलाफ़ कई अर्जियाँ न्यायालय में दाखिल की गईं। बहरहाल, बघेल अब तक सुरक्षित हैं।
ब्राह्मण नेता अजय कुमार मिश्र टोनी को गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया है। लखीमपुर-खीरी लोकसभा सीट से सांसद ग़ैर राजनीतिक पृष्ठभूमि के हैं और आरएसएस से जुड़े रहे हैं। लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, सीतापुर, बहराइच में ब्राह्मण मतदाताओं पर उनकी मज़बूत पकड़ मानी जाती है। मोदी के इस क़दम को कांग्रेस से बीजेपी में आए जितिन प्रसाद के समानांतर टोनी को ब्राह्मण नेता बनाए जाने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि, इन जातियों के पहले से ही यूपी की खटिक जाति बीजेपी की कट्टर समर्थक रही है। इसके बावजूद कौशांबी से सांसद विनोद सोनकर शात्री को मंत्रिपरिषद में जगह नहीं मिल सकी। संभवतः पार्टी ने पहले से बीजेपी से जुड़े खटिक के बजाय कोरी, पासी और धनगर जैसी जातियों को तरजीह देना बेहतर समझा है।
कुल मिलाकर बीजेपी का निशाना उत्तर प्रदेश के ग़ैर जाटव दलित मतदाताओं पर ही नज़र आता है, जहाँ दो आयातित दलित नेताओं सहित 3 सांसदों को राज्यमंत्री बना दिया गया है। कोरी, पासी और धनगर जैसी जातियाँ तेज़ी से बीजेपी की ओर बढ़ रही हैं, जिसे इस मंत्रिमंडल विस्तार में गति दे दी गई है।
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