लखनऊ में आरएलडी के साथ सपा-बसपा का गठबंधन हुआ।
राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) की एसपी-बीएसपी गठबंधन में एंट्री हो गई है। लखनऊ में आरएलडी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इसकी घोषणा की।
बता दें कि अखिलेश यादव ने बाग़पत, मथुरा के अलावा अपने कोटे से मुज़फ़्फ़रनगर की सीट भी रालोद का देते हुए गठबंधन में आ रही दिक्कतों का मसला सुलझा लिया है। पहले आरएलडी चार सीटों की माँग कर रही थी। अब आरएलडी तीन सीटों पर लड़ेगी जबकि सपा 37 और मायावती की पार्टी बीएसपी 38 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। अमेठी व रायबरेली सीट पर गठबंधन कांग्रेस का समर्थन करेगा।
आरएलडी के एसपी-बीएसपी गठबंधन में शामिल होने के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश में यह गठबंधन बीजेपी को कितनी टक्कर दे पाएगा, यह देखने वाली बात होगी। बागपत, मुज़फ़्फ़रनगर और मथुरा के अलावा मेरठ, हापुड़, आगरा, सहारनपुर, अमरोहा, बिजनौर, नगीना, हाथरस और कैराना में भी आरएलडी का जनाधार है।
पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई इलाक़ों में मुसलमानों की आबादी 25 से 35 फ़ीसदी तक है। कैराना सीट पर हुए उपचुनाव में एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन की उम्मीदवार तबस्सुम हसन को जीत मिली थी। उसके बाद से यही माना जा रहा था कि तीनों दल लोकसभा चुनाव में भी साथ आ सकते हैं। तीनों पार्टियों के साथ आने से यह माना जा रहा है कि मुसलमानों के वोट नहीं बंटेंगे और इसका गठबंधन को फ़ायदा होगा।
पहले कांग्रेस को भी इस गठबंधन का हिस्सा बनाने की कोशिश की जा रही थी लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर बात अटक जाने के कारण कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है।
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले हुए मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति के पूरे समीकरण बदल गए थे। बीजेपी को इस सियासी ध्रुवीकरण का फ़ायदा मिला था। लेकिन इस बार वैसी स्थिति नहीं है। ख़ासतौर पर जाट समुदाय ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट दिया था लेकिन इस बार उनका झुकाव फिर से आरएलडी की ओर हो गया है।
सर्वे का जिक़्र करना ज़रूरी