प्रियंका गाँधी को कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत में सुधार होता नज़र नहीं आ रहा है। ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस इस लोकसभा चुनाव में अपने इतिहास का सबसे ख़राब प्रदर्शन कर सकती है। बीते तीन दिनों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तमाम जगहों पर लोगों से मिलने और प्रदेश भर में सैकड़ों लोगों से बातचीत करने के बाद मेरी यह राय बनी है। गठबंधन ने अब ख़ुद को सफलतापूर्वक बीजेपी के मुक़ाबले में आमने-सामने खड़ा कर लिया है और कांग्रेस उन मतदाताओं में औचित्यहीन हो गई है जो बीजेपी के ख़िलाफ़ मत देना चाहते हैं!
मतदाताओं के बदलते रुझान के चलते पहले राउंड की आठ सीटों में से सिर्फ़ एक सहारनपुर की सीट पर अब तक लड़ाई में माने जा रहे कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान मसूद आख़िरी दो-तीन दिनों में बड़ी मुश्किल में फँस गये हैं। रविवार को हुई गठबंधन की देवबंद रैली ने उनके लिए ख़तरा पैदा कर दिया है जिसमें उनके समाज के क़रीब एक लाख लोगों ने शिरकत की।
देवबंद से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके तोमर ने माना कि गठबंधन की रैली के बाद उनके उम्मीदवार के पक्ष में अगले दो दिनों में सामाजिक ध्रुवीकरण संभव है। हालाँकि उन्हें राहुल गाँधी के सहारनपुर में हो रहे रोडशो पर भी भरोसा था लेकिन ख़राब मौसम के कारण यह भी रद्द हो गया।
मैंने इस बीच उत्तर प्रदेश में कांग्रेस प्रत्याशियों द्वारा लड़ी जा रही कुछ उन सीटों को कवर कर रहे तमाम पत्रकारों और राजनेताओं से बातचीत की जिन्हें अमेठी, रायबरेली के अलावा कांग्रेस की मज़बूत सीट माना जा रहा था।
कांग्रेस के अत्यंत प्रभावशाली घोषणापत्र की मौजूदगी के बावजूद यह पार्टी उत्तर प्रदेश के किसी समाज में इस चुनाव में अपनी प्रासंगिकता का ऐसा तर्क पेश नहीं कर पा रही है, जिससे मतदाताओं का कोई हिस्सा प्रभावित हुआ दिखता हो।
कांग्रेस ने अपने ब्रह्मस्त्र प्रियंका गाँधी को भी इस चुनाव में उतार दिया जो वाटरलू बन रहा है। ख़ुद पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी के गढ़ अमेठी में पार्टी बेहद कड़े मुक़ाबले में जा फँसी है। कोई उल्टा-पुल्टा नतीजा दीर्घकालिक नुक़सान पहुँचा सकता है। बीजेपी को यह बात पता है और उसने यहाँ बेशुमार ताक़त झोंक रखी है।
यूपी के फतेहपुर में रोड शो करतीं प्रियंका गाँधी।
उन्नाव में भी कांग्रेस मुश्किल में
गठबंधन ने इलाहाबाद से लाकर एसपी की पूजा पाल को यहाँ से उम्मीदवार बनाया था जिन्हें डमी माना जा रहा था लेकिन कुछ ही दिनों में पूजापाल को हटाकर 2014 में रनर अप रहे अरुणाशंकर शुक्ल 'अन्ना' को मैदान में उतार दिया है। पिछली बार भी एसपी-बीएसपी ने इस सीट पर चार लाख से ज़्यादा वोट झटके थे जबकि अन्नू टंडन दो लाख से भी नीचे जा पहुँची थीं। इस उलटफेर के बाद वह एकाएक अर्श से फ़र्श पर आ गईं हैं!
कुशीनगर में कांग्रेस पहले आरपीएन सिंह पर दाँव लनाना चाहती थी। आरपीएन सिंह 2009 में यहाँ से जीते थे और 2014 में रनर अप रहे थे। यहाँ एसपी-बीएसपी हमेशा ढाई लाख के क़रीब वोट पाते रहे हैं। 2009 में सिंह बीएसपी से बड़ी मुश्किल से बीस हज़ार वोट से जीते थे। इस बार उनका चुनाव प्रचार बहुत बढ़िया चल रहा था पर एकाएक गठबंधन में उभार नज़र आया क्योंकि अड़ोस-पड़ोस की सभी सीटों में बीजेपी विरोधी मतदाताओं में चर्चा में गठबंधन है न कि कांग्रेस!धौरहरा, फ़र्रुख़ाबाद में हालत कमज़ोर
एक बार को ऐसा लगा कि कांग्रेस को साथ न लेकर मायावती-अखिलेश ने ग़लती की पर चुनाव के आगे बढ़ते ही ज्यों-ज्यों ज़मीन की गर्मी और सामाजिक ध्रुवीकरण सामने आये तो पता चला कि ज़्यादा से ज़्यादा 5 सीटों के सिवा कांग्रेस इस बार तो यूपी में ढंग की वोटकटवा पार्टी भी नहीं है।
अब जब मायावती, अखिलेश और अजित सिंह लश्कर लेकर जनसभाएँ शुरू कर चुके हैं और इन्हें बीजेपी को हराने के ख़्वाहिशमंद मतदाताओं का बड़े पैमाने पर समर्थन मिल रहा है, तब कांग्रेस से पैर टिकाये रखने की उम्मीद बेमानी है।
अजित सिंह के जरिये गठबंधन जाटों में सेंध लगा रहा है तो बीजेपी को कांग्रेस और शिवपाल यादव पर भरोसा है कि वे दर्जन भर सीटों पर उसके लिये शहीद हो सकते हैं।
ऐसी परिस्थितियों में अब जब मायावती, अखिलेश और अजित सिंह ने अपने लश्कर की पहली ज़बरदस्त रैली देवबंद में करके चुनाव प्रचार का ज़मीनी आग़ाज़ कर दिया है तो कांग्रेस की रही-सही संभावना भी साफ़ हो गई है। जब मतदाताओं के सामने साफ़ विकल्प है कि यूपी में कौन बीजेपी को हरा सकता है तो वे प्रयोगधर्मिता क्यों करेंगे?