पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के ख़िलाफ़ यौन शोषण का मामला अब राष्ट्रव्यापी होता जा रहा है। राज्यपाल बोस के विरुद्ध राजभवन में संविदा पर कार्यरत एक महिला कर्मचारी ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। आरोप यह भी है कि राजभवन के OSD-2 (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) ने इस महिला कर्मचारी पर राज्यपाल के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत दर्ज न करने का दबाव भी बनाया था। जब इस OSD के खिलाफ FIR दर्ज की गई तो कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अधिकारी के खिलाफ किसी भी कार्यवाही पर रोक लगा दी। अब यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पहुँच गया है। 19 जुलाई, शुक्रवार को भारत के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई करने का निर्णय लिया। CJI ने कहा कि एक संवैधानिक पीठ राज्यपाल को संरक्षण देने वाले अनुच्छेद-362(2) की सीमाओं का परीक्षण करेगी।
कोई संवैधानिक पद, महिलाओं के यौनशोषण का लाइसेंस नहीं!
- विमर्श
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- 21 Jul, 2024

राज्यपाल सीवी आनंद बोस के ख़िलाफ़ कथित यौन शोषण के आरोपों का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। अदालत राज्यपाल को संरक्षण देने वाले अनुच्छेद-362(2) की समीक्षा करेगी। लेकिन सवाल है कि महिला के साथ न्याय का क्या होगा?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-361(1), राज्यपालों के संरक्षण के संबंध में कहता है कि राज्यपाल “अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्त्तव्यों के पालन के लिए” या ऐसे “किसी कार्य के लिए” किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा। अनुच्छेद-362(2) एक कदम आगे बढ़कर राज्यपाल को और भी सुरक्षा प्रदान करते हुए कहता है कि उसके “विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दांडिक कार्यवाही” नहीं की जाएगी।