2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। एक हिस्सा जश्न मना रहा है और एक ग़म और फ़िक्र में डूब गया है। यह स्वाभाविक ही है। हर चुनाव में कोई राजनीतिक पार्टी जीतती है और किसी की हार होती है। लेकिन इस बार की बात अलग है। इस बार जश्न और ग़म का यह बँटवारा पार्टियों के आधार पर नहीं है। यह आबादियों का विभाजन है। इसीलिए इस चुनाव परिणाम की जो व्याख्या की जा रही है, उसमें छिपे धोखे को पहचानना आवश्यक है।