पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा पर हमला तेज़ कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल के भाजपा सांसदों को विधानसभा चुनावों से पहले आक्रामक बयानों से बचने की सलाह दी है।
पश्चिम बंगाल में विशेष गहन संशोधन (SIR) अभियान को लेकर राजनीतिक तनाव चरम पर पहुंच गया है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने बीजेपी पर राज्य के मतदाताओं को भ्रमित करने और 'छल से बंगाल पर कब्जा करने' का आरोप लगाया है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को बीजेपी सांसदों को निर्देश दिया कि इस मुद्दे पर आक्रामक बयानबाजी से बचें और इसे 'सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया' के रूप में पेश करें।
इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि संसद में अपने कार्यालय में पश्चिम बंगाल के बीजेपी सांसदों के साथ 45 मिनट की बैठक में पीएम मोदी ने कहा कि SIR मतदाता सूची को सुधारने का एक साधारण कदम है। जिसमें पात्र मतदाताओं को शामिल किया जाएगा और अयोग्य नाम हटाए जाएंगे। उन्होंने सांसदों को चेतावनी दी कि हटाए गए या हटने वाले नामों की संख्या का जिक्र न करें, क्योंकि इससे विवाद बढ़ सकता है। एक सांसद ने बताया, "पीएम ने कहा कि सही संवाद से SIR को लेकर किसी भी आशंका को दूर किया जा सकता है। हमें TMC सरकार के इन दावों का जवाब देना है कि यह मतदाताओं को बाहर करने की साजिश नहीं है।"
मोदी ने सांसदों को प्रेरित करते हुए कहा कि TMC सरकार को लोकतंत्र बचाने के लिए चुनौती दें। केंद्रीय मंत्री और पूर्व राज्य बीजेपी अध्यक्ष सुकांता मजुमदार ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, "पीएम ने हमें आश्वस्त किया कि हम इन चुनावों में जीतेंगे और इस सरकार को हटाएंगे।" यह बयान बंगाल विधानसभा चुनावों से कुछ महीनों पहले आया है, जहां SIR मुद्दा बड़ा विवाद बन चुका है।
TMC ने SIR को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से जोड़ते हुए आरोप लगाया है कि इसका असली मकसद असली मतदाताओं को बाहर करना है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को कहा कि उनकी सरकार राज्य में कोई 'नजरबंदी कैंप' (डिटेंशन सेंटर) नहीं बनाएगी। इससे पहले, केंद्रीय राज्य मंत्री और बांगांव सांसद शांतनु ठाकुर ने हंगामा मचा दिया था जब उन्होंने दावा किया कि SIR के बाद "गिरफ्तारियां होंगी और लोगों को सीधे डिटेंशन कैंपों में भेजा जाएगा।"
बीजेपी ने TMC पर 'अवैध घुसपैठियों' को संरक्षण देने का आरोप लगाया है। हाल ही में भारतीय सीमा सुरक्षा बल (BSF) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि SIR की आशंकाओं से बंगाल से बांग्लादेश की ओर 'उल्टा पलायन' बढ़ गया है।
मतुआ समुदाय की चिंता बनी राजनीतिक हथियार
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती SC मतुआ समुदाय की चिंताओं का TMC द्वारा राजनीतिक फायदा उठाना है। दशकों से बांग्लादेश से बंगाल प्रवासित मतुआ समुदाय के हजारों सदस्यों के पास उचित दस्तावेज नहीं हैं। 2019 लोकसभा चुनावों में CAA के तहत नागरिकता का वादा कर बीजेपी ने इस समुदाय का समर्थन हासिल किया था, जिससे राज्य की 42 में से 18 सीटें जीतीं। मतुआ समुदाय का 294 विधानसभा सीटों में से कम से कम 30 पर मजबूत प्रभाव है।
शांतनु ठाकुर के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मतुआ महासंघ SIR की आशंकाओं को दूर करने के लिए पहचान दस्तावेज वितरण कैंप चला रही है। बीजेपी का लक्ष्य मतुआ को केंद्र में रखकर पैन-हिंदू वोट बैंक तैयार करना है, ताकि TMC की पहचान राजनीति और कल्याण योजनाओं का मुकाबला किया जा सके।
पीएम मोदी के साथ बैठक में अन्य मुद्दे भी उठे
बुधवार की बैठक में मालदा उत्तर सांसद खगेन मुर्मू भी शामिल थे, जिन पर अक्टूबर में भीड़ ने हमला किया था। पीएम ने सांसदों से बूथ स्तर पर गतिविधियों, केंद्र की कल्याण योजनाओं के लाभार्थियों से संपर्क और स्थानीय मुद्दों पर फीडबैक मांगा। दार्जिलिंग सांसद राजू बिस्टा ने सोशल मीडिया पर लिखा, "पीएम की बैठक हमेशा प्रेरणादायक होती है। उन्होंने हमें राज्य के हर व्यक्ति तक पहुंचने के लिए नई ऊर्जा दी।"
बैठक में दार्जिलिंग हिल्स, तराई और दोआर्स क्षेत्र में हाल की भूस्खलन और बाढ़ की चर्चा हुई। बिस्टा ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार ने इसे 'आपदा' घोषित करने से इनकार कर दिया है, जिससे आपदा राहत के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) का आवंटन नहीं हो सका। साथ ही, चाय बागान और सिनकोना बागान मजदूरों की समस्याओं पर भी विचार-विमर्श हुआ।
बिहार में भारी जीत के बाद बीजेपी की नज़र अब 2026 के बंगाल विधानसभा चुनाव पर है। बीजेपी में बंगाल को सबसे कठिन चुनौती माना जा रहा है। पांच साल पहले मुख्य विपक्षी दल बने रहने के बावजूद, संगठनात्मक कमजोरियों से जूझ रही बीजेपी को TMC की मजबूत पकड़ का सामना करना पड़ रहा है, जो हिंदुत्व और विकास के बीजेपी के संदेश का जवाब पहचान राजनीति और सामाजिक कल्याण से दे रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि SIR विवाद चुनावी समर को और गरमा सकता है, जहां दोनों दल वोटर आधार को मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।