पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी अपने औचक पैसलों के लिए अक्सर सुर्खियाँ बटोरती रही हैं। लेकिन पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों और पश्चिम बंगाल में एक उपचुनाव का नतीजा सामने आने के बाद उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ने की बात कह कर विपक्षी एकता की तमाम कवायद को करारा झटका दिया है। राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि इन चुनावों में तृणमूल के प्रदर्शन से नाराज होकर ही ममता ने यह फैसला किया है। लेकिन इसके नतीजे दूरगामी हो सकते हैं। यहां इस बात का ज़िक्र प्रासंगिक होगा कि बीते दो साल के दौरान अकेली ममता ही 2024 के चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता की सबसे बड़ी पैरोकार के तौर पर उभरी थीं।
ममता ने दिया विपक्षी एकता की कोशिशों को करारा झटका
- पश्चिम बंगाल
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- 3 Mar, 2023

ममता बनर्जी 2024 में आख़िर अकेले चुनाव क्यों लड़ना चाहती हैं? खुद विपक्षी एकता की वकालत करती रहीं ममता अब वह इसके पक्ष में क्यों नहीं हैं?
राज्य में वर्ष 2021 के चुनावी नतीजों के ठीक बाद और अब उनकी स्थिति की तुलना करें तो दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। उस चुनाव में भाजपा को करारी पटखनी देने के बाद ममता ने एक ओर जहां 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की कवायद शुरू कर दी थी, वहीं पूर्वोत्तर में खासकर त्रिपुरा में बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया था। बाद में कांग्रेस के साथ मतभेद बढ़ने पर उन्होंने उससे भी दूरी बना कर चलने का फ़ैसला किया और मेघालय में उसके ज़्यादातर विधायकों को तोड़ कर रातोंरात प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई थी। लेकिन तमाम कवायद के बाद त्रिपुरा में पार्टी का खाता नहीं खुलना, मेघालय में महज पांच सीटें मिलना और वर्ष 2011 में सत्ता में आने के बाद पहली बार किसी उपचुनाव में पराजय जैसी वजहों ने ही शायद ममता को बैकफुट पर आने पर मजबूर कर दिया है।