इस समय मुझे तो एक ही विकल्प दिखता है। वह यह कि सभी अफ़ग़ान कबीलों की एक वृहद संसद (लोया जिरगा) बुलाई जाए और वह कोई कामचलाऊ सरकार बना दे और फिर लोकतांत्रिक चुनावों के ज़रिए काबुल में एक लोकतांत्रिक सरकार बने। इस बीच बाइडन-प्रशासन थोड़ा धैर्य रखे और काबुल से पिंड छुड़ाने की जल्दबाज़ी न करे। ट्रंप की तरह वह आनन-फानन घोषणाओं से बचे...
तालिबान सत्तारूढ़ होने पर इस्लामी राज कायम करना चाहते हैं लेकिन आज उनके कई गुट सक्रिय हैं। इन गुटों में आपसी प्रतिस्पर्धा जोरों पर है। हर गुट दूसरे गुट को नकारता चलता है। इसीलिए काबुल और वाशिंगटन के बीच कोई समझौता हो जाए, उसे लागू करना कठिन है।