सईद के साथ मंच पर पाकिस्तानी मंत्री
जब इमरान ख़ान सरकार के एक मंत्री हाफ़िज़ सईद के साथ बेधड़क उनकी सभा में जाते हों, तो पाकिस्तान से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह आतंकवादियों के ख़िलाफ़ कभी कोई कार्रवाई करेगा? हाफ़िज़ सईद लश्कर-ए-तय्यबा और जमात-उद-दावा जैसे आतंकवादी संगठनों का संस्थापक है।
ताज़ा मामला 30 सितम्बर का है। पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्री नूरुल हक़ क़ादरी उस दिन हाफ़िज़ सईद के साथ एक सभा में मौजूद थे। सभा का आयोजन किया था पाकिस्तान के क़रीब 40 धार्मिक समूहों की संस्था 'दिफ़ा-ए-पाकिस्तान काउंसिल' (दिफ़ा का अर्थ होता है रक्षा करना) ने। यह संस्था भी ख़ुद हाफ़िज़ सईद ने 2011 में बनायी थी। और सभा में अपने भाषण में क़ादरी साहब ने साफ़-साफ़ बताया कि वह प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के निर्देश पर ही ही वहाँ आये हैं।
हाफ़िज़ सईद के साथ पाकिस्तानी मंत्री नर-उल-क़ादरी
'दिफ़ा-ए-पाकिस्तान काउंसिल' है क्या?
अब बताइए, क्या पाकिस्तान में हाफ़िज़ सईद के ख़िलाफ़ कभी कोई कार्रवाई हो सकती है? अमेरिका ने सईद की गिरफ़्तारी पर एक करोड़ डालकर का इनाम घोषित कर रखा है। लेकिन ज़ाहिर है कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेन्सियों को, पुलिस को कभी हाफ़िज़ सईद नहीं मिल पायेगा। कारण अब आपको पता चल गया होगा!
अब ज़रा यह जान लीजिए कि यह 'दिफ़ा-ए-पाकिस्तान काउंसिल' है क्या? और यह संस्था क्यों बनी? पाकिस्तान के तमाम धार्मिक चरमपंथी गुटों को एकजुट करने के लिए ही यह संस्था बनवायी गयी थी। और इसका मुख्य मक़सद था कि भारत के साथ पाकिस्तान के रिश्ते न सुधरें। इसका दूसरा बड़ा मक़सद था अमेरिका का विरोध। यह तब की बात है, जब पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार भारत-पाकिस्तान के बीच वीसा को उदार बनाने और भारत को 'मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन' (MFN) का दर्जा देने की सोच रही थी। लेकिन अन्तत: इन संगठनों के दबाव में पाकिस्तान सरकार ने अपने हाथ खींच लिये।
शिया, अहमदिया मुसलमानों के नरसंह के लिए ज़िम्मेदार
अब जान लीजिए कि इस 'दिफ़ा-ए-पाकिस्तान काउंसिल' में कौन-कौन हैं? इसके अध्यक्ष हैं जमायते उलेमा इसलामी के समी-उल-हक़, जो दारुल उलेमा हक़्क़ानिया नाम का मदरसा चलाते हैं। यह मदरसा 'तालिबान फ़ैक्ट्री' के नाम से भी मशहूर है। यहाँ से मुल्ला उमर जैसे तालिबानी निकले हैं। इसके अलावा कुख्यात हक़्क़ानी नेटवर्क के जलालुद्दीन हक़्क़ानी भी यहीं के प्रोडक्ट हैं।
इस काउंसिल में एक और संगठन शामिल है, अहले सुन्नत वल जमात। पहले इसका नाम सिपह-ए-सहाबा पाकिस्तान था। लश्कर-ए-झाँगवी इसी संगठन की देन है, जो शिया और अहमदिया मुसलमानों के नरसंहार के लिए कुख्यात है।
अब जान लीजिए कि इस 'दिफ़ा-ए-पाकिस्तान काउंसिल' में कौन-कौन हैं? इसके अध्यक्ष हैं जमायते उलेमा इसलामी के समी-उल-हक़, जो दारुल उलेमा हक़्क़ानिया नाम का मदरसा चलाते हैं। यह मदरसा 'तालिबान फ़ैक्ट्री' के नाम से भी मशहूर है। यहाँ से मुल्ला उमर जैसे तालिबानी निकले हैं। इसके अलावा कुख्यात हक़्क़ानी नेटवर्क के जलालुद्दीन हक़्क़ानी भी यहीं के प्रोडक्ट हैं। इस काउंसिल में एक और संगठन शामिल है, अहले सुन्नत वल जमात। पहले इसका नाम सिपह-ए-सहाबा पाकिस्तान था। लश्कर-ए-झाँगवी इसी संगठन की देन है, जो शिया और अहमदिया मुसलमानों के नरसंहार के लिए कुख्यात है।
अभी पाकिस्तान में हुए चुनावों के पहले पेशावर में हुई 'दिफ़ा-ए-पाकिस्तान काउंसिल' की रैली में ख़ैबर पख़्तूनख़वा प्रान्त के मुख्यमंत्री और इमरान की तहरीक-ए-इनसाफ़ पार्टी के नेता परवेज़ खटक शामिल हुए थे।मक़्की के साथ मंच पर थे ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के मंत्री
इस रैली में हाफ़िज़ सईद ने तो फ़ोन के ज़रिये भाषण किया था, लेकिन जमात-उद-दावा में दूसरे नम्बर के नेता और हाफ़िज़ सईद के साले अब्दुल रहमान मक्की रैली में मौजूद थे। मक्की पर भी अमेरिका ने बीस लाख डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है।