गुरुग्राम के 'रंग परिवर्तन' नाट्य गृह में इस्मत चुगताई की दो रचनाओं पर आधारित नाटकों का मंचन हुआ। इस्मत की विद्रोही लेखनी और उनकी कहानियों की रंगमंचीय व्याख्या। रवीन्द्र त्रिपाठी की क़लम से।
भारतीय कला जगत के एक प्रतिष्ठित नाम इरशाद खान सिकंदर का असमय निधन हो गया। जानिए, उनके जीवन, उपलब्धियों के बारे में।
भारत की पारंपरिक कठपुतली कला आज एक परिवर्तनशील दौर में है — पारंपरिक प्रस्तुतियों से लेकर अंतरराष्ट्रीय प्रयोगों और कार्यशालाओं तक। जानिए इस लोककला की तीन धाराओं और इसके भविष्य की कहानी।
जां अनुई की ‘एंटीगनी’ आधुनिक फ्रांसीसी रंगमंच की एक विद्रोही व्याख्या है, जो सोफोक्लीज के मूल ग्रीक नाटक पर आधारित होते हुए भी आज कहीं अधिक चर्चित और प्रासंगिक बन चुकी है। जानिए इस नाटक की विशेषताओं और इसके हिंदी रंगमंच में योगदान को।
प्रख्यात नाट्य चिंतक देवेंद्र राज अंकुर के योगदान को समर्पित एक भव्य नाट्य समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें उनके रंगमंचीय विचारों और कार्यों को जीवंत किया गया। जानिए इस समारोह की खास बातें।
श्रीराम सेंटर में मंचित नाटक 'अंतराल' की प्रस्तुति ने दर्शकों को रिश्तों, असमंजस और जीवन की गहराइयों से जोड़ दिया। जानें, अभिनय, निर्देशन और भावनात्मक प्रभाव की समीक्षा।
आद्यम थिएटर फेस्टिवल 2025 में शुभ्र ज्योति बाराट द्वारा निर्देशित ‘सांप सीढ़ी’ नाटक ने दर्शकों को थ्रिलर और रहस्य की दुनिया में डुबो दिया। यह नाटक एंथनी शेफर के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी नाटक 'Sleuth' का हिंदी रूपांतर था, जिसमें लेखक के रूप में आकर्ष खुराना का नाम सामने आया।
सूफ़ी कवि रूमी, पारंपरिक रूमियाना और पुतली कला के बीच क्या है संबंध? जानें इनकी सांस्कृतिक गहराई और ऐतिहासिक महत्व।
त्रिवेणी नाट्य समारोह में बहुचर्चित नाटक ‘बुड्ढा मर गया’ का मंचन हुआ। शानदार प्रस्तुति, गहरे सामाजिक संदेश और सशक्त अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
नाटक ‘द अदर पर्सन’ का प्रभावशाली मंचन किया गया। जानिए इस नाटक के विचारोत्तेजक संदेश और दर्शकों की प्रतिक्रियाएं।
हबीब तनवीर का प्रसिद्ध नाटक ‘आगरा बाज़ार’ मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी की ज़िंदगी और उनकी शायरी पर आधारित था। जानें इस नाटक की खासियत और इसके ऐतिहासिक महत्व के बारे में।
दोस्तोवस्की की कालजयी रचना 'ह्वाइट नाइट्स' के मंचन ने दर्शकों को उजली स्वप्निल रातों की दुनिया में ले जाकर प्रेम, अकेलेपन और आशा की गहरी अनुभूति कराई। पढ़िए, रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।
'मंकी एंड द क्रोकोडाइल' पुतली खेल केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि लोककला, परंपरा और रचनात्मकता का संगम है। जानें इस अनूठे नाटक के पीछे की कला, संदेश और इसकी बच्चों व बड़ों के लिए अहमियत।
नुपूर चिताले के नाटक 'जलेबी' में आधुनिक महिला की आकांक्षाओं और समाज में उसकी भूमिका को कबीर के विचारों से जोड़ा गया है। पढ़िए, रवींद्र त्रिपाठी की टिप्पणी।
मोहन राकेश के नाटक 'आधे अधूरे' का भारतीय रंगमंच में महत्वपूर्ण योगदान है। यह नाटक पारिवारिक संघर्ष, सामाजिक असंतोष और यथार्थवाद को गहराई से उजागर करता है। जानिए इसकी अद्वितीयता।
भारंगम 2025 में प्रसिद्ध नाटककार हबीब तनवीर के नाटक ‘आगरा बाज़ार’ का मंचन हुआ। जानिए इस क्लासिक नाटक की प्रस्तुति और दर्शकों की प्रतिक्रिया।
भारंगम 2025 में नाटक ‘स्मॉल टाइम ज़िंदगी’ का मंचन हुआ। पढ़िए इस नाट्य प्रस्तुति की कहानी, संदेश और मंचन की समीक्षा।
भारंगम 2025 में ‘कर्ण’ नाटक का मंचन किया गया। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की गाथा को प्रस्तुत किया गया है। पढ़िए, इस नाट्य प्रस्तुति की समीक्षा, रवींद्र त्रिपाठी की क़लम से...
भारंगम 2025 में नाटक ‘अजातशत्रु’ का मंचन हुआ। जानिए, हेनरिक इब्सन, इस नाटक और कुंभ हादसे की त्रासदी के बीच क्या संबंध है।
भारंगम 2025 में भूमि नाटक का शानदार मंचन हुआ। जानें इस नाटक की विशेषताएं और सांस्कृतिक महत्व। पढ़िए, नाटक की समीक्षा, रवींद्र त्रिपाठी की क़लम से…
भारंगम 2025 में छात्रों की शानदार प्रस्तुतियों ने सभी का मन मोह लिया। जानें इस सांस्कृतिक उत्सव की खास बातें और छात्रों की प्रतिभा।
`बिदेसिया’ लोकनाटक नहीं है, एक आधुनिक नाटक है। रूसी लेखक अंतोन चेखव का लिखा `अंकल वान्या’ सर्वसम्मत रूप से आधुनिक नाटक है। पढ़िए, इनके मंचन की समीक्षा, रवींद्र त्रिपाठी की क़लम से...।
एलटीजी ऑडिटोरियम में जो नाटक मंचित हुआ वो हैमिल्टन के नाटक का हिंदी रूपांतर है। नाम वही है लेकिन रूपांतर बिल्कुल भारतीय परिवेश में किया गया। चार्ल्स शोभराज का मिथक बरकरार है!
शैलेश लोढ़ा वैसे तो छोटे पर्दे पर मनोरंजन के लिए मशहूर हैं, लेकिन उन्होंने दिल्ली के श्री राम सेंटर में `डैड्स गर्लफ्रेंड’ नाम के नाटक में काम किया। जानिए, कैसा है रहा उनका प्रदर्शन।
दिल्ली के कमानी सभागार में आद्यम थिएटर फेस्टिवल के दौरान अतुल कुमार द्वारा निर्देशित नाटक `द क्यूरियस इंसीडेंट ऑफ़ द डॉग इन द नाइट- टाइम’ का मंचन किया गया। पढ़िए, रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।
निर्देशक राजेश तिवारी के निर्देशन में पिछले शनिवार दिल्ली के श्रीराम सेंटर में `नन्ही जान के दो हाथ’ एक ऐसा प्रयोग था जिसमें दो कहानियों को इस तरह मिलाया गया कि वे अलग-अलग लगी ही नहीं। पढ़िए रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।