युवा रंगकर्मी दिव्यांशु कुमार ने दिल्ली की `क्षितिज’ रंगमंडली के लिए पिछले दिनों श्रीराम सेंटर में `हैमलेट’ नाटक को रूपांतरित करके `दार्जिलिंग वेनम’ नाम से मंचन किया। पढ़िए, रवींद्र त्रिपाठी की समीक्षा।
आधुनिक भारतीय रंगमंच के चार व्यक्तित्वों- हबीब तनवीर, इब्राहीम अल्काजी, बादल सरकार और तापस सेन की आजकल जन्मशती चल रही है।
श्रीराम सेंटर में `चौथी सिगरेट’ नाटक खेला गया। इसके लेखक योगेश त्रिपाठी हैं और इसका निर्देशन दानिश इकबाल ने किया। पढ़िए, नाटक के मंचन की समीक्षा।
आज इंडोनेशिया में जिस छाया- पुतली नाटकों की काफी लोकप्रियता है वो ओडिशा से ही गया है। तो आज़ादी के बाद देश के कुछ हिस्सों में जो आधुनिक रंग-आंदोलन शुरू हुआ वो ओडिशा को उस तरह प्रभावित क्यों नहीं कर सका?
रूस की लेखिका जरीना कनुकोवा के चार नाटकों का संग्रह `दास्तान ए दिल’ नाम से हिंदी में अनुदित होकर आया है। इसी संग्रह के एक नाटक `बात पुराने जमाने की है और हमेशा’ का मंचन पिछले हफ्ते दिल्ली के रूसी सांस्कृतिक केंद्र में हुआ।
अमृतसर के रंगकर्मी राजिंदर सिंह के निर्देशन में पिछले हफ्ते दिल्ली के लिटल थिएटर ग्रूप सभागार में `पाताल लोक का देव’ नाटक खेला गया जो मंटो के समानांतर संसार को दिखाता है।
इतना तो कहा ही जा सकता है कि नुक्कड़ नाटक की प्रकृति बदल गई है और ये एक तरह का लघु उद्योग भी बन गया है। बेरोजगारों की कमाई का माध्यम भी। या ये कहें कि अस्थायी रोजगार बन गया है।
राजेश तिवारी द्वारा लिखित और उनके निर्देशन में श्रीराम सेंटर में हुए नाटक `नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है’ में लैंगिक विमर्श के ऐसे कई मसले उभरते हैं।
रामलीला की जो कम से कम पांच सौ साल से अधिक की जो परंपरा है वो भी यही दिखाती है कि हिंदी नाटकों का इतिहास भी इतना ही पुराना है।
महाराष्ट्र के चंद्रपुर की लोकजागृति संस्था ने पिछले दिनों दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में अनिरुद्ध वनकर ने `गांधी कभी मरते नहीं’ नाटक खेला। जानिए, इस नाटक में गांधी के ख़िलाफ़ दुष्प्रचारों पर कैसी चोट की गई है।
पढ़िए, मानव कौल द्वारा निर्देशित, अभिनीत और लिखित `त्रासदी’ और सपन सरन द्वारा लिखित और श्रीनिवास बिसेट्टी द्वारा निर्देशित `वेटिंग फॉर नसीर’ नाटक का मंचन कैसा रहा।
एक ऐसा नाटक है जो लंबे समय से खेला जा रहा है और कई साल पहले लिखे जाने के बावजूद उनकी प्रस्तुतियां लगातार हो रही हैं।
पंचानन पाठक उन लोगों में हैं जिन्होंने आधुनिक रंगकर्म को, खासकर इलाहाबाद और दिल्ली में, प्रगतिशील चेतना से लैस किया। पढ़िए, उनकी याद में होने वाले समारोह के बारे में।
वीरेंद्र नारायण का आधुनिक हिंदी और भारतीय रंगमंच के क्षेत्र में उनका एक बड़ा योगदान था। जानिए, उनकी जन्मशती पर रवींद्र त्रिपाठी उनको कैसे याद करते हैं।
रंगमंडल साठ साल पहले यानी 1964 में अस्तित्व में आया। रंगमंडल ने अपने साठ साल पूरे किए हैं। जानिए, कैसे इसने अपनी कैसे पहचान बनाई।
पिछले हफ्ते राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रथम वर्ष के छात्रों ने अभिमंच सभागार में असम की `अंकिया भावना’ रंग परंपरा का प्रशिक्षण पाने के बाद `राम विजय’ नाटक का मंचन किया।
रंगमंच, संगीत, नृत्य या दूसरे सांस्कृतिक आयोजनों के लिए इस पोर्टल पर आवेदन देना होगा और हर प्रस्तुति के लिए एक हजार रुपए का शुल्क देना होगा। क्या इस नियम के बाद पहले से ही तंग रंगमंच कैसे भार सह पाएगा?
छत्रपति शिवाजी का कहानी अब रंगमंच पर भी आ गई है। हाल ही में दिल्ली में हुए एक नाटक के बारे में रवीन्द्र त्रिपाठी बता रहे हैं।
अल्काज़ी की एक जीवनी – `इब्राहीम अल्काज़ी : होल्डिंग टाइम कैप्टिव’ आई है जिसे उनकी पुत्री और शिष्या अमाल अल्लाना ने लिखा है। जानिए अलकाज़ी का कैसा चित्रण किया गया है पुस्तक में।
रूसी नाटककार एंटन चेखव के नाटक `थ्री सिस्टर्स’ का एनएसडी के छात्रों ने मंचन किया। पढ़िए, इसकी समीक्षा।
क्रोएशियाई नाटककार मिरो गावरान के नाटक भारत में भी धीरे-धीरे चर्चित हो रहे हैं। यहां पर द डॉल (गुड़िया) नाटक के बहाने मिरो गावरान के काम पर बात हो रही है। जानिएः
मामला धीरे-धीरे पूरे हिमालय क्षेत्र को बचाने का होता जा रहा है। इसलिए रंगमंच और नाटक जैसे सांस्कृतिक कर्म की जिम्मेदारी भी बनती है। पढ़िए, `जंगल में बाघ नाचा’ के नाट्य मंचन में प्रकृति को कैसे दिखाया गया।
पिछले दिनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल ने देवेंद्र राज अंकुर के निर्दशन में धर्मवीर भारती की कहानी `बंद गली का आखिरी मकान’ का मंचन किया। पढ़िए इस नाट्य मंचन की समीक्षा।
पिछले हफ्ते इंडिया हैबिटेट सेंटर में खेला गया नाटक `चाय कहानी’ एक अभिनव प्रयोग था। अटेलियर नाट्य मंडली के कुलजीत सिंह और मानसी ग्रोवर के निर्देशन में नाटक का मंचन हुआ। पढ़िए समीक्षा।
युवा निर्देशक फहद खान के निर्देशन में `ह्वाट इज इन ए सरनेम’ का मंचन किया गया। पढ़िए, इस नाटक के मंचन की समीक्षा।
इरशाद खान सिकंदर का एक नया नाटक भी रंगमंच पर आ चुका है जिसका नाम है `ठेके पर मुशायरा।‘ इसे युवा रंगकर्मी दिलीप गुप्ता ने निर्देशित किया है। पढ़िए, इसकी समीक्षा।