बिरजा एक महिला चरित्र है। धर्मवीर भारती की कहानी `बंद गली का आखिरी मकान’ की। वो कोई हिंदी साहित्य के कहानी जगत की बड़ी या यादगार चरित्र नहीं है। परित्यक्ता है। दो बेटों की मां है जिसे उसे पति ने घर से निकाल दिया है। पति के घर से निकाले जाने के बाद उसे अपने घर में पनाह देते हैं मुंशी जी, जो कचहरी में ताईदी करते हैं। मुंशी जी कायस्थ और बिरजा ब्राह्मण। मुंशी जी अविवाहित और उम्र प्रौढ़ता प्राप्त। स्वाभाविक है पारंपरिक भारतीय समाज में बिरजा और मुंशी के बारे में कई सवाल उठते हैं। फिर भी मुंशी जी का बड़प्पन कि बिरजा और उसके दोनों बेटों की अच्छी परवरिश करने की कोशिश करते हैं। पर बीमारी ग्रस्त बुढ़ापा धीरे धीरे घेरता जाता हैं। रिश्तेदारों के लांछन भी बढ़ते जाते हैं। और जब मुंशी जी के भीतर का पंछी उड़ता है तो उस आखिरी वक्त में बिरजा भी उनके पास नहीं होती।
`बंद गली का आखिरी मकान’: तो बिरजा कौन है?
- विविध
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- 23 Jun, 2024

पिछले दिनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल ने देवेंद्र राज अंकुर के निर्दशन में धर्मवीर भारती की कहानी `बंद गली का आखिरी मकान’ का मंचन किया। पढ़िए इस नाट्य मंचन की समीक्षा।
ये एक जटिल कहानी का अति संक्षिप्त संस्करण है और फिलहाल इस बात को समझने के लिए पेश किया गया है कि पिछले दिनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल ने देवेंद्र राज अंकुर के निर्दशन में इसका मंचन हुआ। अंकुर, जो कहानियों के मंचन के लिए जाने जाते हैं, ने इस बार एक नया प्रयोग किया। उन्होंने इस कहानी के आधार पर दो नाट्य प्रस्तुतियां तैयार कीं। दो ढांचों में एक ही कहानी। पहले ढांचे में विस्तृत मंचसज्जा थी, प्रोसेनियम रंगमंच का पूरा व्याकरण था और दूसरे ढांचे में नुक्कड़ नाटक जैसी (हालांकि पूरी तरह वैसा नहीं) संरचना थी। कुछ ब्लॉक थे जो मंचन के दौरान अभिनेताओं द्वारा सुविधानुसार अलग अलग जगहों पर रखे जाते हैं। पहले वाले ढांचे में एक ठहराव था और दूसरे में क्षिप्रता। दोनों के अलग अलग प्रभाव। एक ही कहानी की अलग अलग भंगिमाएं। दोनों ढांचों के दृश्य विधानों में भी भिन्नता। पर एक स्तर पर एक दूसरे के पूरक भी। इस अर्थ में कि जो एक में छूट गया था वो दूसरे में उभरा। वो क्या था?