आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और क्लाउड कंप्यूटिंग की चर्चा अभी दुनिया में सबसे ज़्यादा बिजली खाने वाली तकनीकों की तरह हो रही है। सन 2022 में लगाए गए हिसाब के मुताबिक़ ये दोनों उस समय दुनिया की दो फ़ीसदी बिजली हजम कर रही थीं। उसी प्रक्रिया में अनुमान लगाया गया था कि सन 2026 तक इनकी बिजली ख़पत संसार की कुल ख़पत का साढ़े तीन प्रतिशत हो जाएगी। लेकिन जिस समय यह सारा हिसाब लगाया गया था, तबतक हर हाथ में पहुंच जाने वाले चैटजीपीटी, जेमिनी, ग्रॉक और मेटाएआई जैसे कृत्रिम बुद्धि बवंडरों का युग शुरू ही नहीं हुआ था। अभी तो इस हल्ले में चीन भी पूरी ताक़त से कूद पड़ा है और बिजली खपत का सटीक हिसाब लगना अभी बाकी है।
क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का क़िस्सा एक मामले में समान लगता है कि दोनों में बड़े-बड़े डेटा सेंटरों की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन क्लाउड कंप्यूटिंग में तुलनात्मक रूप से ज्यादा बिजली डेटा स्टोरेज के काम में लगती है, जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में ऑपरेशंस के लिए अधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। आगे हम अपना ध्यान एआई पर ही केंद्रित करेंगे क्योंकि इस क्षेत्र का फैलाव अनपेक्षित तेजी से हो रहा है। ज्यादातर बड़ी एआई कंपनियों का केंद्र फिलहाल अमेरिका में ही है और अमेरिकियों का मानना है कि अगले पांच साल बीतते न बीतते, यानी सन 2030 तक ही उनकी कुल बिजली खपत का 9 फीसदी अकेले एआई के हिस्से जा रहा होगा।