लोकसभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 सीटों से काफ़ी हद तक यह अंदाजा लग जाएगा कि यूपी में गठबंधन को जीत मिलेगी या बीजेपी को।
प्रधानमंत्री मोदी पर कांग्रेस नेता अहमद पटेल की ओर से लगाए गए आरोपों के बाद उनसे जुड़े एक कर्मचारी के घर आयकर विभाग का छापा पड़ने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही अहमद पटेल उनके और अमित शाह के निशाने पर रहे हैं। पिछले पाँच साल में अहमद पटेल पर इन हमलों के क्या हैं कारण?
प्रियंका गाँधी ने कांग्रेस की ‘न्याय योजना’ को घर-घर तक पहुँचाने का बीड़ा उठा लिया है। कांग्रेस इस योजना को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाकर पेश कर रही है।
'राष्ट्रवाद', और देश की आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर घेरने वाली बीजेपी को कांग्रेस ने अब मोदी के पुराने भाषणों से जवाब दिया है। कांग्रेस ने ऐसे पुराने भाषणों वाले वीडियो दिखाकर चार सवाल पूछे हैं।
प्रियंका गाँधी देशभर के हज़ारों कार्यकर्ताओं से फ़ोन पर बात करके उन्हें ज़रूरी हिदायतें देंगी और कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए कोशिश करने की नसीहत भी देंगी।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के दो सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ने पर एक अहम सवाल यह है कि अगर राहुल गाँधी दोनों सीटों से जीत जाते हैं तो अगली लोकसभा में वह किस सीट का प्रतिनिधित्व करेंगे और किस सीट से इस्तीफ़ा देंगे?
कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी करते हुए राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से बेरोजगारी, ग़रीबी और किसानों के मुद्दे पर चुनावी मैच खेलने पर मजबूर किया है।
राहुल गाँधी अमेठी के साथ केरल की वायनाड लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ेंगे। बीजेपी के तमाम नेता कह रहे हैं कि राहुल अमेठी में स्मृति ईरानी के मुक़ाबले अपनी हार से डर गए हैं। तो क्या सच में राहुल डर गये हैं?
पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा को डर है कि इस बार अमेठी में उनकी ग़ैर-मौजूदगी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की मुश्किलें बढ़ सकती है।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ़ से ज़्यादातर सीटों पर उम्मीदवार उतारे जा चुके हैं। उसके उम्मीदवारों की लिस्ट को देखते हुए लगता है कि इस लोकसभा में बीजेपी पूरी तरह मुसलिम मुक्त होगी।
कांग्रेस अध्यक्ष ने सही समय पर हस्तक्षेप कर बीजेपी के सर्जिकल स्ट्राइक से पार्टी को बचा लिया और जितिन प्रसाद ने पार्टी नहीं छोड़ी, पर जितिन अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर दुविधा में हैं।
कांग्रेस अब उन सीटों पर मुसलिम उम्मीदवार उतार रही है, जहाँ गठबंधन का उम्मीदवार मुसलिम नहीं है और जहाँ मुसलिम मतदाताओं की संख्या 20% से ज़्यादा है।
मायावती का राजनीतिक संघर्ष सचमुच चमत्कारिक रहा है, लेकिन क्या वह इस लोकसभा चुनाव में सीटें जीतने और प्रधानमंत्री की दावेदारी पर कुछ वैसा ही चमत्कार दिखा पाएँगी?
मुसलिम संगठनों को समुदाय के बीच इस बात का प्रचार करना चाहिए कि जैसे रमज़ान में रोज़े रखना फर्ज़ है ठीक उसी तरह लोकतंत्र में मतदान करना भी फ़र्ज है।