loader

लोकसभा में 'मुसलिम मुक्त' होती बीजेपी

लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ़ से ज़्यादातर सीटों पर उम्मीदवार उतारे जा चुके हैं। उसके उम्मीदवारों की लिस्ट को देखते हुए लगता है कि बीजेपी पिछली बार की तरह आगामी लोकसभा में पूरी तरह मुसलिम मुक्त होगी। हालाँकि बीजेपी ने चार सीटों पर मुसलिम उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें से तीन सीट कश्मीर घाटी की और एक पश्चिम बंगाल की जंगीपुरा सीट है। इन चारों सीटों में से किसी पर भी बीजेपी के जीतने की दूर-दूर तक कोई संभावना नज़र नहीं आती है। बीजेपी के टिकट पर जो उम्मीदवार जीत सकता था वह है बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज़ हुसैन। बिहार के भागलपुर सीट पर पिछला लोकसभा चुनाव बहुत कम अंतर से हारने वाले शाहनवाज़ हुसैन की यह सीट बीजेपी ने अपने सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के लिए छोड़ दी है या यूं कहें कि इस सीट को अपने पास रखने के लिए बीजेपी ने कोई ख़ास संघर्ष नहीं किया।

ताज़ा ख़बरें

सवाल उठ रहे हैं कि क्या शाहनवाज़ को बीजेपी ने जानबूझकर चुनाव से बाहर रखा है? सवाल तो यह भी है कि क्या यह शाहनवाज़ हुसैन को पार्टी में पूरी तरह अप्रासंगिक बनाने की साज़िश है? 

शाहनवाज़ हुसैन बीजेपी के अकेले ऐसे मुसलिम नेता हैं जो एक से ज़्यादा बार लोकसभा चुनाव जीते हैं और एक से ज़्यादा सीट भी। ऐसे में उनको चुनाव नहीं लड़ाने से यह संदेश जाता है कि शायद बीजेपी ख़ुद को लोकसभा में मुसलिम मुक्त रखना चाहती है।

हालाँकि पिछली लोकसभा में बीजेपी का कोई मुसलिम उम्मीदवार नहीं जीता था। लेकिन तब शाहनवाज़ हुसैन के रूप में कम से कम एक मुसलिम सांसद के जीतने की संभावना ज़रूर थी। इस बार उनके चुनावी मैदान से बाहर होने की वजह से यह संभावना भी पूरी तरह ख़त्म हो गई है। लिहाज़ा चुनाव से पहले ही बीजेपी का लोकसभा में मुसलिम मुक्त होना तय लग रहा है।

मज़बूत दावे वाली सीट क्यों छोड़ी बीजेपी ने?

बीजेपी का बिहार के भागलपुर सीट अपने सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के लिए छोड़ना हैरान करने वाला फ़ैसला है।

इस सीट पर 1998 से बीजेपी काफ़ी मज़बूत रही है। साल 1998 में पहली बार बीजेपी के प्रभास चंद्र तिवारी यहाँ से जीते थे। 2004 तक इस सीट पर बीजेपी के सुशील कुमार मोदी चुनाव जीते। साल 2005 में नीतीश कुमार सरकार में उनके उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई इस सीट पर 2006 में उप-चुनाव हुए। इसमें बीजेपी ने शाहनवाज़ हुसैन को चुनाव लड़ाया था, क्योंकि शाहनवाज़ हुसैन 1999 में जीती हुई अपनी सीट किशनगंज से 2004 में चुनाव हार गए थे। उप-चुनाव में शाहनवाज़ हुसैन यहाँ से चुनाव जीते और बाद में 2009 में भी इसी सीट से जीत कर वह लोकसभा पहुँचे।

साल 2014 में देशभर में चली मोदी लहर के बावजूद इस सीट से शाहनवाज़ हुसैन 10000 से कम के अंतर से चुनाव हारे थे। ग़ौरतलब है कि 1998 के बाद से समता पार्टी और 1999 के बाद जनता दल यूनाइटेड के साथ गठबंधन के दौर में 2014 तक यह सीट बीजेपी के पास ही रही है। लेकिन बीजेपी ने शायद जनता दल यूनाइटेड के लिए यह सीट इसीलिए छोड़ दी कि अगर यह सीट वह अपने पास रखती तो उसे शाहनवाज़ हुसैन को यहाँ से टिकट देने की मज़बूरी होती।

चुनाव 2019 से और ख़बरें

क्या चाहते हैं अमित शाह?

बीजेपी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह यूपी और बिहार से किसी भी मुसलिम को चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। इसीलिए भागलपुर सीट पर बीजेपी का दावा बेहद मज़बूत होने के बावजूद यह सीट जनता दल यूनाइटेड के लिए छोड़ दी गई। वहीं, लोक जनशक्ति पार्टी और जनता दल यूनाइटेड में रह चुके साबिर अली 2014 में पार्टी में आए थे। तब भी वह लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया था। इस बार टिकट देने का वादा किया गया था। लेकिन उन्हें भी टिकट देने से साफ़ मना कर दिया गया। हाँ, राज्यसभा में ज़रूर एक-दो मुसलिम सांसद दिखावे के तौर पर रखे जा सकते हैं। ग़ौरतलब है कि इस वक़्त राज्यसभा में मुख़्तार अब्बास नक़वी और एम.जे. अकबर बीजेपी के सांसद हैं।

सम्बंधित खबरें

मुख़्तार अब्बास नक़वी भी दरकिनार

पार्टी सूत्रों के मुताबिक़ मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी रामपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें भी पार्टी ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। हालाँकि फ़िलहाल मुख़्तार अब्बास नक़वी झारखंड से राज्यसभा में हैं। पार्टी बिहार में पटना साहिब सीट से रवि शंकर प्रसाद को लोकसभा चुनाव लड़ा रही है जो कि राज्यसभा में पहले से हैं। साल 2004 में पार्टी ने अरुण जेटली और स्मृति ईरानी को राज्यसभा सदस्य होने के बावजूद लोकसभा का चुनाव लड़ाया था। पार्टी सूत्रों के मुताबिक़ मुख़्तार अब्बास नक़वी साल 2014 में रामपुर से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन तब उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी रहे अमित शाह ने नक़वी को चुनाव लड़ने से साफ़ मना कर दिया था। 

साल 2014 में बीजेपी का सहयोगा अपना दल 3 सीट माँग रहा था। इनमें से एक सीट पर वह एक मुसलिम उम्मीदवार करना चाहता था। सूत्रों के अनुसार, अमित शाह ने उसे यह कहते हुए साफ़ मना कर दिया था कि यूपी में हमें एक भी मुसलिम उम्मीदवार नहीं चाहिए। न तो बीजेपी का और न ही किसी सहयोगी दल का।

इस बार बीजेपी का चर्चित मुसलिम चेहरा नहीं 

पिछले 20 साल में हुए 5 लोकसभा चुनाव में यह पहला मौक़ा है जब बीजेपी के टिकट पर कोई चर्चित चेहरा चुनाव मैदान में नहीं है। 1998 में बीजेपी ने तीन मुसलिम उम्मीदवार दिए थे। यूपी में रामपुर से मुख़्तार अब्बास नक़वी, बिहार में किशनगंज से सैयद शाहनवाज़ हुसैन और पश्चिम बंगाल की मालदा सीट पर मुज़फ़्फ़र ख़ान। तब मुख़्तार अब्बास नक़वी रामपुर से चुनाव जीतने में सफल रहे और वाजपेयी सरकार में मंत्री भी बने। साल 1999 में शाहनवाज़ हुसैन और मुख़्तार अब्बास नक़वी दो चर्चित मुसलिम चेहरे बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। तब मुख़्तार अब्बास नक़वी हार गए थे। शाहनवाज़ हुसैन जीते और एनडीए सरकार में मंत्री बने। वाजपेयी सरकार में सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री होने का श्रेय भी से शाहनवाज़ हुसैन को जाता है।

साल 2004 में भी बीजेपी के टिकट पर शाहनवाज़ हुसैन बिहार के किशनगंज सीट से चुनाव लड़े थे और उत्तर प्रदेश में रामपुर से मुख़्तार अब्बास नक़वी और कैसरगंज सीट पर आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को चुनाव मैदान में उतारा था। तीनों ही चुनाव हार गए थे।

मोदी-शाह का दौर

इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ़ से कोई भी चर्चित चेहरा चुनाव मैदान में नहीं उतारे जाने से बीजेपी के ही मुसलिम नेताओं में निराशा है। वे दबी ज़ुबान में कहते हैं कि अटल-आडवाणी के दौर में मुसलिम नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया जाता था लेकिन मोदी और अमित शाह के दौर में पार्टी जानबूझकर मुसलमानों को न सिर्फ़ नज़रअंदाज़ कर रही है बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहती है कि लोकसभा में वह पूरी तरह मुसलिम मुक्त रहे।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
यूसुफ़ अंसारी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

चुनाव 2019 से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें