अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया घोषणा ने दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि अमेरिका पाकिस्तान में तेल की खोज में मदद करेगा, और यह भी कि शायद एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेचे। यह बयान न केवल क्षेत्रीय समीकरणों को प्रभावित कर सकता है, बल्कि भारत-अमेरिका संबंधों पर भी सवाल उठाता है। ख़ासतौर पर जब भारत पूरी कोशिश कर रहा है कि पाकिस्तान को आतंकवाद की नर्सरी के रूप में दुनिया के सामने पेश करे। तो क्या यह भारत की विदेशनीति की नाकामी है कि पाकिस्तान को दुनिया के सबसे ताक़तवर देश का समर्थन हासिल हो रहा है?

तेल क्या है?

पेट्रोल, डीजल, एलपीजी, किरोसिन, और प्लास्टिक- ये सभी चीजें आज हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं। ये सभी पेट्रोलियम पदार्थ हैं, जिनका मूल स्रोत है क्रूड ऑयल यानी कच्चा तेल। यह एक प्राकृतिक तरल पदार्थ है, जो लाखों-करोड़ों साल पहले समुद्रों और झीलों में रहने वाले छोटे-छोटे जीवों और पौधों के अवशेषों से बनता है। ये अवशेष समुद्र की तलहटी में दब जाते हैं, जहां मिट्टी और चट्टानों का दबाव, गर्मी, और समय इन्हें तेल और प्राकृतिक गैस में बदल देता है।

तेल बनने की प्रक्रिया

  • छोटे जीव और पौधे मरकर समुद्र की तलहटी में जमा होते हैं।
  • मिट्टी और चट्टानों की परतें इन पर दबाव डालती हैं।
  • लाखों सालों में, ऑक्सीजन की कमी, गर्मी, और दबाव से ये कार्बनिक पदार्थ तेल और गैस में बदल जाते हैं।
  • यह तेल चट्टानों की छोटी-छोटी दरारों में जमा हो जाता है, जिसे भंडार कहते हैं।
प्राचीन काल में तेल का रिसाव प्राकृतिक रूप से देखा गया था, लेकिन इसका व्यावसायिक उत्पादन 19वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ। इसने औद्योगिक क्रांति को गति दी, परिवहन को तेज किया, और मोटरकारों का युग शुरू किया। लेकिन एक क्षेत्र ऐसा था, जिसकी किस्मत तेल ने रातोंरात बदल दी। यह था रेगिस्तान के मारे अरब का इलाक़ा।
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अरब देशों में तेल की खोज और बदलाव

1900 के दशक की शुरुआत में सऊदी अरब, कुवैत, और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे देश आर्थिक रूप से बेहद कमजोर थे। उनकी अर्थव्यवस्था खजूर, मछली पकड़ने, और छोटे-मोटे व्यापार पर टिकी थी। सऊदी अरब में लोग मिट्टी और खजूर की पत्तियों से बने घरों में रहते थे, और कुवैत में पानी बकरी की खाल में लाकर बांटा जाता था। सड़कें, बंदरगाह, और बिजली जैसी सुविधाएं न के बराबर थीं।

तेल की खोज और प्रभाव

सऊदी अरब: 1938 में धम्माम में तेल की खोज हुई। इसकी कमाई से सड़कें, स्कूल, अस्पताल, और आधुनिक शहर बने। आज सऊदी अरब दुनिया की शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।

कुवैत: 1946 में तेल उत्पादन शुरू हुआ। इससे गहरे पानी के बंदरगाह और बिजली संयंत्र बने।

UAE: दुबई और अबू धाबी, जो पहले छोटे गांव थे, अब दुनिया के सबसे आधुनिक शहर हैं। दुबई का बुर्ज खलीफा और अबू धाबी के विशाल बंदरगाह इसका उदाहरण हैं।

इन देशों में राजशाही ने तेल की कमाई को सामाजिक कल्याण में लगाया, जिससे लोकतंत्र की मांग कम रही। हालांकि, कुछ देशों में तेल की समृद्धि ने भ्रष्टाचार और अस्थिरता को भी बढ़ाया, जैसे यमन और सीरिया।

पाकिस्तान में तेल

पाकिस्तान कभी भारत का हिस्सा ही था। उसकी भूगर्भीय संरचनाएं भारत जैसी हैं। फिर भी, यह अपनी तेल जरूरतों का केवल 20% पैदा करता है, बाकी 80% आयात करता है। तेल और गैस के भंडार मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में मिले हैं:
  • सिंध: थारपारकर, बदिन, और हैदराबाद।
  • पंजाब: पोटोहर पठार (धूलियन, जॉयमीर) में छोटे भंडार।
  • बलूचिस्तान: सुई और उच में गैस के साथ कुछ तेल।
  • अपतटीय क्षेत्र: कराची के पास केकरा-1 ब्लॉक में बड़े भंडार की संभावना।
हाल ही में केकरा-1 ब्लॉक में तेल और गैस के बड़े भंडार की बात कही जा रही है, जिसे कुछ अनुमान दुनिया का चौथा सबसे बड़ा भंडार मानते हैं। 2016 के एक अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान के पास 9 अरब बैरल तेल और 105 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस हो सकती है। हालांकि, यह अनुमान सिद्ध नहीं है। अभी पाकिस्तान का रोजाना उत्पादन 90,000 बैरल है, जो उसकी जरूरत का केवल 20% पूरा करता है।

प्रयास और चुनौतियां

  • 2019 में ExxonMobil ने केकरा-1 में ड्रिलिंग शुरू की, लेकिन तकनीकी और वित्तीय समस्याओं के कारण यह रुकी।
  • कई विदेशी कंपनियां, जैसे ENI, पाकिस्तान से निकल चुकी हैं, जिससे प्रगति धीमी है।
  • पाकिस्तान में लगभग 350 सक्रिय तेल और गैस कुएं हैं।
केकरा-1 जैसे भंडारों की खोज से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बूस्ट मिल सकता है, लेकिन इसके लिए उन्नत तकनीक और निवेश चाहिए। बिना सही नीतियों के, तेल की कमाई भ्रष्टाचार और अस्थिरता को बढ़ा सकती है, जैसा कुछ अरब देशों में हुआ। ट्रंप की घोषणा से अमेरिकी तकनीक और निवेश मिलने की संभावना बढ़ी है, जो पाकिस्तान के लिए गेम-चेंजर हो सकता है।

भारत को चिढ़ाने की रणनीति?

2025 में डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया साइट ‘ट्रुथ सोशल’ पर ऐलान किया कि अमेरिका और पाकिस्तान तेल के विशाल भंडार विकसित करने के लिए मिलकर काम करेंगे। उन्होंने कहा, “हम तेल कंपनी चुनने की प्रक्रिया में हैं। कौन जानता है, शायद पाकिस्तान एक दिन भारत को तेल बेचे!” यह बयान भारत के लिए एक कड़ा संदेश माना जा रहा है।

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क्यों कहा ट्रंप ने ऐसा?

भारत पर दबाव: ट्रंप ने भारत के रूस से तेल और हथियार (जैसे S-400 मिसाइल सिस्टम) खरीदने की आलोचना की है। यह बयान भारत को अमेरिका की शर्तों पर व्यापार सौदे के लिए दबाव बनाने की रणनीति हो सकता है।

चीन को काउंटर: पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के तहत चीन का भारी निवेश है। अमेरिकी निवेश से चीन का प्रभाव कम हो सकता है।

क्षेत्रीय प्रभाव: यह अमेरिका के लिए दक्षिण एशिया में प्रभाव बढ़ाने और तेल कंपनियों के लिए बिजनेस का मौका है।

भारत पर असर

भारत और पाकिस्तान के ऐतिहासिक तनाव को देखते हुए, भारत का पाकिस्तान से तेल खरीदना अव्यवहारिक है। यह बयान भारत को चिढ़ाने और क्षेत्रीय तनाव बढ़ाने का प्रयास हो सकता है। साथ ही, 2025 में भारत पर 25% टैरिफ ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर दबाव बढ़ाया है।

CPEC और अमेरिकी निवेश

पाकिस्तान में CPEC के तहत चीन ने अरबों डॉलर (लगभग 62 बिलियन USD) का निवेश किया है, जिसमें सड़कें, बंदरगाह, और बुनियादी ढांचा शामिल हैं। अगर अमेरिका तेल खोज में निवेश करता है, तो:
  • यह ऊर्जा क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़ाएगा, जिससे चीन का प्रभाव कम हो सकता है।
  • CPEC के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और तेल खोज का सीधा टकराव नहीं है, लेकिन क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।

भारत को घेरने की कोशिश?

क्या ट्रंप की यह घोषणा भारत को घेरने की रणनीति है? कई संकेत इसे सही ठहराते हैं:
  • रूस के साथ संबंध: भारत का रूस से तेल और हथियार खरीदना अमेरिका को पसंद नहीं।
  • टैरिफ युद्ध: भारत पर 25% टैरिफ इसका हिस्सा है।
  • पाकिस्तान को समर्थन: तेल खोज में मदद देकर ट्रंप भारत के पड़ोस में नया समीकरण बना सकते हैं।
हालांकि, अमेरिका भारत को क्वाड और F-35 विमान सौदे जैसे रणनीतिक सहयोगों के जरिए अहम साझेदार भी मानता है। यह एक जटिल भू-राजनीतिक खेल है।

मोदी-ट्रंप संबंध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच दोस्ती की कई मिसालें हैं:

हाउडी मोदी (2019): ह्यूस्टन में 50,000 लोगों के सामने ट्रंप ने मोदी की तारीफ की। भारतीय-अमेरिकी समुदाय और BJP समर्थकों की भीड़ के बीच ख़ुद पीएम मोदी ने नारा लगाया था- “अबकी बार ट्रंप सरकार।”

नमस्ते ट्रंप (2020): अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में ट्रंप का भव्य स्वागत हुआ, तब भी जब दुनिया में कोविड-19 के कारण हवाई यात्राएं रुक रही थीं।

लेकिन 2025 में ट्रंप के बयानों और टैरिफ ने भारत को परेशान किया है। हाल ही में एक अमेरिकी सांसदों का दल भारत आया, जिसका नेतृत्व सीनेटर मार्को रुबियो ने किया। इसमें टेड क्रूज, माइक वाल्ट्ज, और मैक्सिन वाटर्स शामिल थे। इस दौरे में रक्षा और व्यापार पर चर्चा हुई, लेकिन ट्रंप की घोषणाओं ने इसे जटिल बना दिया।

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भारत की विदेश नीति पर सवाल

विपक्ष, खासकर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, ने ट्रंप की घोषणाओं को भारत की विदेश नीति की नाकामी बताया है। राहुल ने कहा कि मोदी सरकार चीन और पाकिस्तान को अलग रखने में नाकाम रही जो विदेश नीति की सबसे बड़ी असफलता है। तो क्या अमेरिका भी इस “त्रिगुण” में शामिल हो गया है?

हाल की घटनाएं

  • 9 मई 2025 को IMF ने पाकिस्तान को 1 बिलियन USD की सहायता दी, जो 3 बिलियन USD के Extended Fund Facility (EFF) का हिस्सा था।
  • 3 जून 2025 को ADB ने पाकिस्तान के लिए 800 मिलियन USD का पैकेज मंजूर किया।
  • पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद रोधी समिति का उपाध्यक्ष बनाया गया।
भारत ने बार-बार कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देता है, विशेष रूप से पहलगाम में हुए हमलों के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया। लेकिन वैश्विक मंचों पर भारत की बात नहीं सुनी गई। कई देशों में भारत ने प्रतिनिधिमंडल भेजे, लेकिन ट्रंप का पाकिस्तान के साथ खड़ा होना भारत की कूटनीति के लिए झटका है।

ट्रंप की घोषणा ने पाकिस्तान में तेल की संभावनाओं को सुर्खियों में ला दिया है। अगर केकरा-1 जैसे भंडार सिद्ध हुए, तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बूस्ट मिल सकता है, जैसा अरब देशों में हुआ। लेकिन इसके लिए तकनीक, निवेश, और सही नीतियां जरूरी हैं। ट्रंप का यह बयान भारत को चिढ़ाने, रूस से उसके संबंधों पर दबाव बनाने और चीन को काउंटर करने की रणनीति हो सकता है। साथ ही, यह भारत की विदेश नीति के लिए एक चुनौती है।