पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन और करण थापर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर के लिए पहले से ही आलोचना झेल रही असम की हिमंत बिस्व सरमा की पुलिस ने अब पत्रकार अभिसार शर्मा के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है। इन पर भी राजद्रोह का आरोप लगाया गया है। अभिसार ने इन आरोपों पर कहा है कि उनको असम सरकार की आलोचना और 'मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा की साम्प्रदायिक राजनीति का ज़िक्र' करने के लिए निशाना बनाया गया है। 

असम की गुवाहाटी पुलिस की यह कार्रवाई एक स्थानीय निवासी की शिकायत के आधार पर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि अभिसार शर्मा ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो अपलोड किया था, जिसमें असम और केंद्र सरकार का उपहास उड़ाया गया। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार शिकायत में कहा गया है कि इसके साथ ही मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा पर सांप्रदायिक राजनीति करने और हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया। इस FIR में भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 यानी राजद्रोह, 196 यानी विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना और 197 यानी राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक बयान के तहत मामला दर्ज किया गया है।

एफ़आईआर में आरोप क्या?

23 वर्षीय आलोक बरुआ नाम के एक स्थानीय शिकायतकर्ता ने गुवाहाटी क्राइम ब्रांच में शिकायत दी थी। शिकायत के अनुसार, अभिसार शर्मा ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो अपलोड किया था, जिसमें असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया गया। वीडियो में शर्मा ने 'राम राज्य' के सिद्धांत का मजाक उड़ाया और दावा किया कि सरकार केवल 'हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण' पर टिकी है। शिकायतकर्ता ने इसे सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने और राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने वाला बताया।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पुष्टि की है कि यह मामला क्राइम ब्रांच, पानबाजार, गुवाहाटी में दर्ज किया गया है। हालाँकि, पुलिस ने अभी तक इस मामले में विस्तृत जानकारी साझा नहीं की है।

अभिसार शर्मा क्या बोले?

एफ़आईआर का मामला सामने आने के बाद अभिसार शर्मा ने एक बयान जारी कर कहा, 'मेरे ख़िलाफ़ असम पुलिस की FIR पूरी तरह बेमानी है। इसका जवाब दिया जाएगा वैधानिक तौर पर! मेरे शो में मैंने असम के जज के बयान का ज़िक्र किया था जिसमें उन्होंने महाबल सीमेंट को असम सरकार द्वारा 3000 बीघा ज़मीन दिए जाने का ज़िक्र किया था और अलोचना की  थी। मैंने तथ्यों के साथ मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा की साम्प्रदायिक राजनीति का जिक्र किया था...जो उनके अपने बयानों पर आधारित है।'
सोशल मीडिया पर पत्रकारों और अन्य यूज़रों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। वरिष्ठ पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने लिखा है कि यह सरकार की धमकी के अलावा कुछ नहीं है। अजीत अंजुम ने लिखा है, 'दरअसल असम के मुख्यमंत्री अब देश के पत्रकारों को संदेश देना चाहते हैं कि अगर किसी पत्रकार ने उनकी सरकार के खिलाफ मुंह खोला तो उसे सलाखों के पीछे जाना पड़ सकता है। उनके साथ बीजेपी का पूरा इको सिस्टम है। सिर पर शाह का हाथ है इसलिए अभिसार, सिद्धार्थ वरदराजन और करण थापर जैसे पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह की धाराएं लगाकर मुकदमा दर्ज किया गया है।'
डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन ने कहा है कि यह पत्रकार अभिसार शर्मा के खिलाफ गुवाहाटी क्राइम ब्रांच द्वारा 21 अगस्त 2025 को दर्ज की गई एफआईआर की कड़ी निंदा करता है।
अशोक कुमार पांडेय ने लिखा है, 'कमाल है! अभिसार शर्मा पर असम में FIR हुई है, इसके पहले सिद्धार्थ वरदराजन और करण थापर पर हो चुकी है। सरकारें कुछ भी करें, पूरी छूट है लेकिन कोई सवाल उठा दे तो जेल में डालने की तैयारी! ग़ज़ब लोकतंत्र है भाई।'

वरदराजन, थापर के ख़िलाफ़ पिछली FIR

इससे पहले 12 अगस्त 2025 को गुवाहाटी पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 'द वायर' के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और सलाहकार संपादक करण थापर के खिलाफ एक FIR दर्ज की थी। यह FIR भी धारा 152 सहित BNS की कई धाराओं के तहत दर्ज की गई थी। इसमें राजद्रोह, विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना, राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक बयान और आपराधिक साजिश जैसे आरोप शामिल थे।
यह FIR एक भारतीय जनता पार्टी नेता की शिकायत पर आधारित थी, जो 'द वायर' द्वारा 28 जून 2025 को प्रकाशित एक लेख से संबंधित थी। यह लेख भारत के इंडोनेशिया में रक्षा अटैच, कैप्टन (भारतीय नौसेना) शिव कुमार की एक प्रस्तुति पर आधारित था। 

असम में वरदराजन, करण थापर पर राजद्रोह का केस, प्रेस की आज़ादी पर हमला

वरदराजन को 14 अगस्त और थापर को 18 अगस्त को समन प्राप्त हुआ, जिसमें उन्हें 22 अगस्त को गुवाहाटी के पानबाजार में क्राइम ब्रांच कार्यालय में पेश होने के लिए कहा गया। समन में कहा गया, 'यह पता चला है कि आपके खिलाफ जांच के लिए उचित आधार हैं, ताकि तथ्यों और परिस्थितियों का पता लगाया जा सके।' हालांकि, आरोप लगाया गया है कि समन के साथ FIR की प्रति या अपराध का विवरण नहीं दिया गया, जो कानूनी रूप से अनिवार्य है। समन में यह भी चेतावनी दी गई कि अनुपालन न करने पर गिरफ्तारी हो सकती है।

'प्रेस की आज़ादी दबाने का प्रयास'

इस कार्रवाई की प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन वुमन प्रेस कॉर्प्स, और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया जैसे पत्रकार संगठनों ने तीखी आलोचना की है। इन संगठनों ने इसे पत्रकारों के खिलाफ 'बदले की कार्रवाई' और स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने का प्रयास बताया। इन संगठनों ने बयान में कहा कि यह दो महीनों में 'द वायर' के खिलाफ दूसरी FIR है। उन्होंने धारा 152 को 'दमनकारी' और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया।
EGI ने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ बार-बार FIR दर्ज करना और आपराधिक संहिता की कई धाराओं का उपयोग करना स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने का एक तरीका है। इसने कहा, 'यह प्रक्रिया ही सजा बन जाती है, क्योंकि नोटिस, समन, और लंबी कानूनी प्रक्रियाओं का जवाब देना पत्रकारों के लिए कठिन होता है।" EGI ने धारा 152 को पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (राजद्रोह) का नया रूप बताया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में निलंबित कर दिया था।

उल्लेखनीय है कि 12 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने 'द वायर' और इसके पत्रकारों को मॉरिगांव में 11 जुलाई को दर्ज एक अन्य FIR में किसी भी 'जबरन कार्रवाई' से अंतरिम संरक्षण दिया था। इस मामले में भी धारा 152 और अन्य धाराओं का उपयोग किया गया था। 

अभिसार शर्मा, सिद्धार्थ वरदराजन, और करण थापर के खिलाफ दर्ज FIR ने असम में प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए हैं। प्रेस संगठनों और पत्रकारों का मानना है कि धारा 152 का उपयोग पत्रकारिता को दबाने और सरकार की आलोचना करने वालों को चुप कराने के लिए किया जा रहा है।