चुनाव आयोग (ECI) सोमवार 6 अक्टूबर को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान करेगा। जबकि सुप्रीम कोर्ट 7 अक्टूबर को विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर सुनवाई करने वाला है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट कल मंगलवार को SIR पर कोई निर्देश दे पाएगाः
बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) प्रक्रिया पर खासा विवाद है। 6 अक्टूबर 2025 को शाम 4 बजे ईसीआईचुनाव तारीखों की घोषणा करने वाला है। ऐसे में कई सवाल उठे हैं: क्या लाखों नामों की डिलीशन पर अंतिम फैसला हो चुका है? क्या सुप्रीम कोर्ट की 29 अगस्त 2025 की चेतावनी व्यर्थ हो गई? क्या यह प्रक्रिया वोट चोरी का जरिया बनी? लेकिन इन सवालों का जवाब आए बिना शाम को चुनाव की तारीखों का पता चल जाएगा।
बिहार में एसआईआर: प्रक्रिया और विवाद
ईसीआई ने 24 जून 2025 को बिहार में एसआईआर का आदेश दिया था। इसका मकसद मृत, ट्रांसफर या डुप्लिकेट नामों को हटाना था। जनवरी 2025 की संक्षिप्त पुनरीक्षण सूची में 7.89 करोड़ मतदाता थे। एसआईआर के बाद ड्राफ्ट सूची (1 अगस्त 2025) में 7.24 करोड़ नाम बचे, यानी 65 लाख नाम डिलीट हुए। अंतिम सूची (30 सितंबर 2025) में 7.42 करोड़ नाम हैं यानी 21.53 लाख नए जोड़े गए, लेकिन कुल डिलीशन 68.5 लाख हो गई। इस तरह मतदाता सूची से 68 लाख नाम बाहर हो गए हैं।
ईसीआई का दावा है कि यह "22 साल का शुद्धिकरण" है, लेकिन विपक्ष (आरजेडी, कांग्रेस, इंडिया गठबंधन) इसे "वोट चोरी" बता रहा है। आंकड़ों से पता चलता है कि डिलीट नामों में 60% महिलाएं हैं, जो प्रवासी श्रमिकों और गरीब तबकों पर सीधी चोट है। बिहार में 75 लाख लोग अन्य राज्यों में प्रवासित हैं, और दस्तावेजों (जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट आदि) की कमी से लाखों वास्तविक मतदाता बाहर हो चुके हैं। एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने कहा कि एसआईआर ने "लाखों को मनमाने ढंग से वोट से वंचित किया", जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (अभिव्यक्ति) और 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: चेतावनी, आदेश और लंबित सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर को "मतदाता-अनुकूल" कहा था, लेकिन "मास एक्सक्लूजन" यानी बड़े पैमाने पर नाम हटाने (डिलीट) करने पर फौरन हस्तक्षेप की चेतावनी दी थी। जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाला बागची की बेंच ने 29 जुलाई 2025 और 29 अगस्त 2025 को याचिकाकर्ताओं (एडीआर, पीयूसीएल, योगेंद्र यादव, आरजेडी सांसद मनोज झा) की आपत्तियों को सुना। कोर्ट ने कहा: "ईसीआई संवैधानिक संस्था है, लेकिन अवैधता साबित होने पर हम हस्तक्षेप करेंगे।" अंतरिम आदेश में कोर्ट ने ईसीआई को निर्देश दिया: 65 लाख डिलीट नामों की सूची (कारण सहित) जिला-स्तरीय वेबसाइटों पर अपलोड करें। आधार को 12वें वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार करें। सूची सर्चेबल (ईपीआईसी नंबर से) हो और पंचायत कार्यालयों में प्रदर्शित हो।
ईसीआई ने 56 घंटों में सूची अपलोड की, लेकिन क्लेम्स/ऑब्जेक्शन विंडो (1 सितंबर तक) में केवल 23,557 शिकायतें आईं, जिनमें से 741 निपटाई गईं। विपक्ष का आरोप है कि राजनीतिक दलों को समय कम मिला। 15 सितंबर 2025 को कोर्ट ने ईसीआई को फिर चेताया कि अगर बड़े पैमाने पर नाम गायब हुए तो पूरी एसआईआर प्रक्रिया रद्द हो सकती है। अब सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई 7 अक्टूबर 2025 को यानी कल है, लेकिन चुनाव आयोग 6 अक्टूबर की शाम को तारीखों का ऐलान करने जा रहा है।
- सवाल उठता है: क्या कोर्ट का वादा "तमाशा" बन गया?
चुनाव आयोग का जिद्दीपना देखिए
चुनाव आयोग ने 4 और 5 अक्टूबर को बिहार में तैयारियों की समीक्षा की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में ईसीआई ने एसआईआर को "सफल" बताया। लेकिन विपक्ष और वैकल्पिक मीडिया के सवालों (डिलीशन, समयबद्धता) को टाल दिय़ा। आरजेडी ने कहा: "ईसीआई धृतराष्ट्र बनी हुई है।" कांग्रेस ने आरोप लगाया कि 89 लाख शिकायतें खारिज की गईं। ईसीआई ने दावा किया कि क्लेम्स कम होने से प्रक्रिया पारदर्शी है, लेकिन आलोचक कहते हैं कि चुनाव आयोग का जागरूकता अभियान कमजोर था। इस तरह बिहार में पूरी चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठ गए हैं।
2020 चुनावों में जीत-हार कई सीटों पर 12,000 वोटों के अंतर से हुई थी। अब एसआईआर के दौरान हर विधानसभा सीट से 10-10 नाम उड़ा दिए गए हैं। 65 लाख डिलीशन (कुल मतदाताओं का 8%) से नतीजें प्रभावित हो सकते हैं। विपक्ष का का कहना है कि एसआईआर ने गरीब/प्रवासी/महिलाओं को निशाना बनाया, जो एनडीए विरोधी हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की 7 अक्टूबर सुनवाई से पहले चुनाव आयोग का तारीख घोषित करना शक को बढ़ा रहा। अगर कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया तो "चुनाव आयोग की कथित निष्पक्षता की क्या धज्जियां नहीं उड़ेंगी।"
चुनाव कराने से वोट चोरी के दाग नहीं धुल जाएंगे
6 अक्टूबर को तारीखों की घोषणा से वोट चोरी और एसआईआर के दाग नहीं धुलेंगे। सुप्रीम कोर्ट से 7 अक्टूबर को कड़े फैसले की जरूरत है। अन्यथा बिहार चुनाव "वोट चोरी" के साये में होंगे। ईसीआई की मनमानी से भारतीय लोकतंत्र कमजोर होगा। सुप्रीम कोर्ट की किसी से न सही तो कम से कम जनता से जवाबदेही तो बनती है। जनता सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर है। वो सुप्रीम कोर्ट से जवाब जरूर मांगेगी।