बिहार में विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision - SIR) के तहत मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। चुनाव आयोग ने दावा किया है कि 7 जुलाई तक बिहार के 7.90 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाताओं में से 36.47% ने गणना फॉर्म जमा कर दिए हैं। हालांकि, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने इस दावे को चुनौती दी है। उन्होंने चुनाव आयोग से मांग की है कि वह उन मतदाताओं की सूची सार्वजनिक करे, जिन्होंने कथित तौर पर फॉर्म जमा किए हैं।
योगेंद्र यादव ने अपनी आशंका व्यक्त करते हुए कहा कि चुनाव आयोग का यह आदेश लगभग 2.5 करोड़ मतदाताओं के मताधिकार को छीन सकता है। उनका तर्क है कि आयोग का आदेश उसके ही एक मूल सिद्धांत के खिलाफ है, जिसमें कहा गया है कि मतदाता सूची से किसी का नाम हटाने का आधार उनकी पात्रता को साबित करने में असमर्थता नहीं होनी चाहिए।
यादव का कहना है कि आयोग का यह आदेश इस सिद्धांत का उल्लंघन करता है, और इसे किसी भी आंकड़े (जैसे कितने लोगों ने फॉर्म भरा) से खारिज नहीं किया जा सकता। उनका मुख्य मुद्दा यह है कि क्या मतदाता आयोग द्वारा मांगे गए 11 दस्तावेजों की शर्त को पूरा कर पाएंगे या नहीं।
11 दस्तावेजों की अनिवार्यता और आधिकारिक आंकड़े
उन्होंने कहा कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जनगणना के अनुसार, बिहार के 65.58% ग्रामीण परिवारों के पास जमीन नहीं है, जिससे भूमि-संबंधी दस्तावेज उनके लिए अप्राप्य हैं। इसके अलावा, आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेजों को स्वीकार न करने का निर्णय भी विवाद का कारण बना है।
चुनाव आयोग का एक ही राग
योगेंद्र यादव के मुद्दे का खंडन भी नहीं कर रहा आयोग
हालांकि, आयोग ने योगेंद्र यादव की मांग, यानी जमा किए गए फॉर्मों की सूची सार्वजनिक करने, पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इसके अलावा, आयोग ने उन आधिकारिक आंकड़ों का कोई खंडन नहीं किया, जिनके आधार पर यादव ने 2.5 करोड़ मतदाताओं के मताधिकार छिनने की आशंका जताई है।
राजनीतिक विवाद और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
योगेंद्र यादव की सलाह
योगेंद्र यादव ने जब मंगलवार सुबह चुनाव आयोग को एक्स पर चुनौती दी थी तो सोशल मीडिया पर उनकी बात को व्यापक समर्थन मिला था। योगेंद्र यादव ने चुनाव आयोग से निष्पक्षता और पारदर्शिता की मांग करते हुए कहा, "यह केवल आंकड़ों का खेल नहीं है। यह बिहार के गरीब, प्रवासी मजदूरों, और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के मताधिकार की रक्षा का सवाल है।" उन्होंने आयोग को एक नया तथ्य-जांचकर्ता (फैक्टचेकर) नियुक्त करने की सलाह दी, जो इस प्रक्रिया की निष्पक्षता को सुनिश्चित कर सके।
रवीश कुमार की टिप्पणी
याचिकाओं में क्या कहा गया है
आरजेडी, कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को वोटबंदी करार देते हुए इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। उनका कहना है कि बिहार की 20% से अधिक मतदाता आबादी इस प्रक्रिया के कारण मताधिकार से वंचित हो सकती है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि भारत सरकार के आँकड़ों के अनुसार, केवल 2-3% लोग ही इन 11 दस्तावेजों में से किसी एक को रखते हैं, जिसका मतलब है कि करोड़ों मतदाता इस प्रक्रिया से प्रभावित हो सकते हैं।