अडानी समूह के मालिक गौतम अडानी
गौतम अडानी के नेतृत्व वाले अडानी समूह ने मुंबई में अपनी तीसरी बड़ी परियोजना हासिल कर ली है। धारावी पुनर्विकास और बांद्रा रिक्लेमेशन के बाद अब अडानी समूह ने गोरेगांव (पश्चिम) में मोतीलाल नगर पुनर्विकास परियोजना को अपने नाम किया है। यह परियोजना 142 एकड़ में फैली है और इसकी अनुमानित लागत 36,000 करोड़ रुपये है।
महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) ने 7 जुलाई को अडानी समूह के साथ इस परियोजना के लिए एक समझौता किया। अडानी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड (APPL) ने इस निविदा में सबसे अधिक निर्मित क्षेत्र (3.97 लाख वर्ग मीटर) की पेशकश कर लार्सन एंड टुब्रो (L&T) को पीछे छोड़ दिया। MHADA के अनुसार, यह परियोजना मोतीलाल नगर 1, 2 और 3 कॉलोनियों को आधुनिक आवासीय और वाणिज्यिक केंद्र में बदल देगी, जिसमें 3,372 पात्र आवासीय इकाइयों, 328 वाणिज्यिक इकाइयों और 1,600 स्लम टेनमेंट्स का पुनर्वास शामिल है।
इस परियोजना को महाराष्ट्र सरकार ने 'विशेष परियोजना' का दर्जा दिया है, जिसमें MHADA का पूर्ण नियंत्रण रहेगा। अडानी समूह को निर्माण और विकास एजेंसी (C&DA) के रूप में नियुक्त किया गया है। MHADA के उपाध्यक्ष और सीईओ संजीव जायसवाल ने कहा, "यह परियोजना निवासियों को आधुनिक, सुरक्षित और शानदार घर प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।" परियोजना में 1,600 वर्ग फुट के आधुनिक अपार्टमेंट्स मुफ्त में दिए जाएंगे और एक पांच एकड़ का सेंट्रल पार्क भी बनाया जाएगा।
हालांकि, इस परियोजना को लेकर कुछ विवाद भी सामने आए हैं। स्थानीय निवासियों ने पारदर्शिता की कमी की शिकायत की है। शिवसेना (UBT) के विधायक आदित्य ठाकरे ने कहा, "इस परियोजना में पारदर्शिता होनी चाहिए। यदि कोई कमी पाई गई, तो हम इसे उठाएंगे।" धारावी पुनर्विकास परियोजना की तरह, मोतीलाल नगर परियोजना पर भी विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं, जिसमें अडानी समूह को अनुचित लाभ देने का आरोप लगाया गया है।
धारावी के सवाल अपनी जगह बने हुए हैं
महाराष्ट्र सरकार ने धारावी परियोजना के समय विपक्ष के सवालों का कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। धारावी के हजारों निवासियों ने अपनी आजीविका और आवास के नुकसान के डर से विरोध प्रदर्शन किए, लेकिन उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि उनकी बस्तियों को उजाड़ने की प्रक्रिया में न तो उनकी सहमति ली गई और न ही पुनर्वास की ठोस योजना सामने रखी गई।
इसके बावजूद, महाराष्ट्र सरकार ने परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाया और अडानी समूह को इसका जिम्मा सौंप दिया। विपक्षी नेताओं, विशेष रूप से आदित्य ठाकरे ने इसे 'महाराष्ट्र की जनता के साथ धोखा' करार दिया, और कहा कि सरकार ने अडानी समूह के पक्ष में नियमों को बदला है।
मोतीलाल नगर और बांद्रा रिक्लेमेशन परियोजनाओं के साथ भी यही पैटर्न देखने को मिल रहा है। विपक्ष का आरोप है कि इन तीनों परियोजनाओं में पारदर्शिता की भारी कमी है। निविदा प्रक्रिया, शर्तों, और पुनर्वास योजनाओं की जानकारी को जनता और विपक्ष से छिपाया गया है। शिवसेना (UBT) और कांग्रेस ने दावा किया है कि अडानी समूह को लाभ पहुंचाने के लिए MHADA और अन्य सरकारी निकायों ने निविदा नियमों में ढील दी।
मोतीलाल नगर परियोजना में भी स्थानीय निवासियों ने पारदर्शिता की मांग की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला। विपक्ष का कहना है कि ये परियोजनाएं मुंबई की जनता के हितों के बजाय कॉरपोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही हैं।
इन विवादों ने महाराष्ट्र की राजनीति को और गरमा दिया है। विपक्षी दलों ने मांग की है कि सभी तीन परियोजनाओं की निविदा प्रक्रिया की स्वतंत्र जांच हो और पुनर्वास योजनाओं को सार्वजनिक किया जाए। दूसरी ओर, महाराष्ट्र सरकार और अडानी समूह का कहना है कि ये परियोजनाएं मुंबई को विश्वस्तरीय शहर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
सरकार का दावा है कि पुनर्वास योजनाओं में सभी पात्र निवासियों को आधुनिक आवास और सुविधाएं दी जाएंगी। हालांकि, धारावी के अनुभव को देखते हुए, जनता और विपक्ष का सरकार पर भरोसा कम होता दिख रहा है। जब तक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की जाती, तब तक इन परियोजनाओं पर विवाद थमने की संभावना कम है।