Adani US Bribery Case: भारत-अमेरिका संबंधों में बढ़ते तनाव के बीच अडानी समूह की अमेरिका में रिश्वत मामले को खत्म कराने की कोशिश फिलहाल रुक गई है। अमेरिका के ब्लूमबर्ग मीडिया हाउस ने इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।
मुकेश अंबानी (बाएं) और गौतम अडानी (दाएं)
भारतीय अरबपति गौतम अडानी और उनके समूह के खिलाफ अमेरिकी धोखाधड़ी के आरोपों को सुलझाने की कोशिश अटक गई है। इससे अडानी ग्रुप की विस्तार योजनाओं पर रेगुलेटर का दबाव बढ़ गया है। ब्लूमबर्ग ने सूत्रों के हवाले से खबर देते हुए कहा कि यह रुकावट अमेरिका और भारत के बीच तनावपूर्ण संबंधों के कारण हुई है। इसी तरह मुकेश अंबानी पर रूस से सस्ता तेल खरीदने का आरोप है। अमेरिका इस मामले में अंबानी पर भी शिकंजा कस रहा है। हालांकि अंबानी के सस्ता तेल खरीदने से भारत की जनता को कोई फायदा नहीं हुआ। तेल की कीमतें कभी कम हुई ही नहीं। पेट्रोल-डीजल के रेट एक बड़ा स्कैम साबित हो रहे हैं। विपक्ष ने इस मामले को बार-बार उठाया है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, अडानी पर अमेरिकी न्याय विभाग में अटॉर्नी ने नवंबर 2024 में 250 मिलियन डॉलर (लगभग 2,100 करोड़ रुपये) के रिश्वत घोटाले का आरोप लगाया था। इसमें अडानी और उनके सहयोगियों पर भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देकर सोलर पावर प्रोजेक्ट्स के ठेके हासिल करने का इल्जाम है। इसमें अमेरिकी निवेशकों को भी धोखा दिया गया। इस मामले ने भारत के सबसे प्रभावशाली उद्योगपति को गहरा झटका दिया, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाते हैं।
सूत्रों ने बताया कि अडानी पक्ष ने मई 2025 में ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों से मुलाकात की थी, जिसमें अमेरिकी रिश्वत मामलों को खारिज कराने की कोशिश की गई। हालांकि, सितंबर आते-आते यह प्रयास रुक गया है। विशेषज्ञों का मानना है इसमें कूटनीतिक बाधाएं प्रमुख हैं, खासकर जब अमेरिका-भारत संबंध डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अस्थिर हो गए हैं। हालांकि दोनों देश फिर से संबंध सुधारने में जुट गए हैं।
अडानी रिश्वत पूरा मामला क्या है
नवंबर 2024 में, अमेरिका के न्याय विभाग (Department of Justice, DOJ) तथा प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (SEC) ने अडानी और अन्य सहयोगियों पर आरोप लगाए कि उन्होंने लगभग $265 मिलियन की रिश्वत (“bribery scheme”) दी थी। ताकि भारत में सोलर पावर कॉन्ट्रैक्ट्स और सरकारी ऊर्जा आपूर्ति के ठेकों को हासिल किया जा सके। आरोप यह भी है कि अडानी समूह ने अमेरिकी निवेशकों को इस मामले की जानकारी छुपाई थी — अर्थात्, कंपनी ने यह दावा किया कि सब कुछ वैधानिक है, जबकि आंतरिक तौर पर रिश्वत और धोखाधड़ी की गतिविधियाँ चल रही थीं।अडानी समूह का बयान
एपी के मुताबिक गौतम अडानी ने कहा है कि अडानी समूह “क्लास-वर्ल्ड-रेगुलेटरी काम्प्लायंस” (world-class regulatory compliance) के प्रति प्रतिबद्ध है। रॉयटर्स के मुताबिक कंपनी के वित्त प्रमुख (CFO), जगेशिंदर सिंह ने कहा कि आरोप पूरी तरह गलत हैं और समूह कानूनी तरीके से अपनी सफाई देगा। अडानी ने यह भी कहा कि अभी तक कोई व्यक्ति या समूह से FCPA उल्लंघन के लिए उसे दोषी नहीं ठहराया गया है।
मोदी सरकार का स्टैंड
भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि उन्हें अभी तक अमेरिका की ओर से किसी तरह का आधिकारिक अनुरोध नहीं मिला है जो इस मामले में भारत को शामिल करता हो। सरकार ने मामले को निजी, कानूनी विवाद बताया है। यानी निजी कंपनियों/व्यक्तियों और अमेरिकी न्याय विभाग के बीच का मामला। सरकार ने यह भी कहा है कि यदि कोई अनुरोध मिलेगा, तो स्थापित कानूनी प्रक्रियाएँ अपनाई जाएँगी।
अमेरिकी न्याय विभाग में अडानी रिश्वत मामले की स्थिति
ब्लूमबर्ग और एपी की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी न्याय विभाग में अमेरिकी सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि रिश्वत मामला अभी भी सक्रिय हैं, और वार्ताएँ (negotiations) जो चली थीं, उनमें से कुछ को “रोक” दिया गया है। विशेषकर भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव आने की वजह मुख्य है। SEC ने स्टॉक मार्केट या बांड बाजार से अडानी के दावों की पुष्टि करने की कोशिश की है, और अडानी/उनके प्रतिनिधियों को कानूनी तथ्यों के अनुरूप जवाब देने की नोटिस भेजने की प्रक्रिया में है।
अडानी रिश्वत मामले में आगे का रास्ता क्या है
अगर अमेरिका सरकार/न्याय विभाग/रेगुलेटर बातचीत फिर से शुरू करना चाहेंगे, तो भारत-अमेरिका रिश्तों में सुधार की स्थिति यही मूर्त आधार होगा। अडानी समूह कानूनी बचाव तैयार कर रहा है, जिसमें न्यायालयों में जवाब देना और दस्तावेजी साक्ष्यों की समीक्षा शामिल हैं। यदि SEC ने अभी तक कानूनी नोटिस न भेजे हों, तो संभव है कि अगला कदम सेवा (service) प्रक्रिया को पूरा करना होगा, संभवतः भारत के न्यायपालिका के समन्वय से। राजनयिक चैनलों से इस मामले के संबंध में अधिक पारदर्शिता और बात-चीत की संभावना बनी है, विशेषकर यदि दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश हित बढ़ने चाहिए।
मुकेश अंबानी के रिलायंस समूह पर भी अमेरिकी शिकंजा
मुकेश अंबानी की कंपनी Reliance Industries विशेषकर उसकी जामनगर रिफाइनरी और दूसरे निजी रिफाइनर जैसे Nayara Energy आदि रूस से क्रूड ऑयल खरीद रहे हैं। रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों (sanctions), युद्ध की वजह से कीमत की कटौतियों कारण सस्ता हो गया है। रिफाइनर इस सस्ते रूसी क्रूड को रिफाइन कर पेट्रोल, डीज़ल आदि तैयार उत्पाद बनाते हैं, और कुछ हिस्से को यूरोप समेत अन्य देशों को एक्सपोर्ट करते हैं। अमेरिका का आरोप है कि इस तरह की खरीद और रिफाइनिंग से भारत के निजी रिफाइनर “भारी मुनाफा” उठा रहे हैं। यह पैसा रूस को मिल रहा है, जिसका इस्तेमाल यूक्रेन युद्ध में हो रहा है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले महीने, बढ़ते तनाव के बीच, नीता मुकेश अंबानी सांस्कृतिक केंद्र ने न्यूयॉर्क में एक नाट्य प्रदर्शन स्थगित कर दिया था।
अडानी-अंबानी मामलों का भारत-अमेरिका संबंधों पर असर
अडानी और अंबानी से जुड़े ताज़ा मामले भारत-अमेरिका संबंधों में नई मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। अडानी पर अमेरिका में चल रही रिश्वत और धोखाधड़ी की जांच, तथा इस मामले को सुलझाने के लिए हुई बातचीत का रुक जाना, वॉशिंगटन के कानूनी और राजनैतिक दबाव को बताता है। इससे यह संदेश जाता है कि अमेरिका अब भारत के सबसे बड़े कॉरपोरेट समूहों के मामलों में सीधे दखल देने को तैयार है, खासकर तब जब वे अमेरिकी निवेशकों या वैश्विक बाज़ार को प्रभावित कर सकते हैं। इससे भारत के कारोबारी माहौल पर सवाल उठते हैं और विदेशी निवेशकों में सावधानी बढ़ती है।
दूसरी ओर, अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज पर अमेरिका का बढ़ता दबाव रूसी तेल से जुड़े व्यापार और उससे अर्जित मुनाफे को लेकर भारत के ऊर्जा नीति विकल्पों पर भी असर डाल सकता है। अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाना और सार्वजनिक आलोचना करना यह संकेत है कि भू-राजनीतिक मुद्दे अब भारत के निजी उद्योग पर भी असर डाल रहे हैं। दोनों मामलों का संयुक्त प्रभाव यह हो सकता है कि भारत को अपने व्यापारिक और ऊर्जा संबंधों में संतुलन साधने के लिए अधिक रणनीतिक और पारदर्शी नीति अपनानी पड़े। यदि भारत इन मामलों को आंतरिक सुधार और राजनयिक संवाद से हल करता है, तो यह संबंधों को स्थिर कर सकता है; अन्यथा तनाव बढ़ने का खतरा है।