भाजपा-जेडीएस समर्थक प्रदर्शनकारियों का तर्क इस बार अलग है। उनका कहना है कि तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ा जा रहा है, जबकि कर्नाटक में कावेरी बेसिन के जलाशयों में भंडारण का स्तर बहुत कम है। कावेरी बेंगलुरु शहर के लिए पेयजल और राज्य के मांड्या क्षेत्र में खेती की सिंचाई का मुख्य स्रोत है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) गठित करने का आदेश दिया था। यह प्राधिकरण सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू किए जाने के मामले में निगरानी रखता है। यह प्राधिकरण केंद्र सरकार के तहत काम करता है। यह प्राधिकरण दोनों राज्यों के बीच विवाद को सुलझाने का काम करता है। यानी कावेरी जल को रेगुलेट करने का काम केंद्र का प्राधिकरण करता है। लेकिन आंदोलनकारियों की सारी शिकायत कर्नाटक सरकार से है।
कर्नाटक और तमिलनाडु में राजनीतिक दलों का तर्क यह है कि 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में केवल सामान्य मानसून वर्ष के लिए जल-बंटवारे के मानदंडों को बताया गया है न कि संकट वाले वर्ष के लिए। जैसा अभी कम बारिश की वजह से हो रहा है। इस बार सामान्य से 30 फीसदी कम बारिश हुई है।
यहां यह बताना जरूरी है कि कर्नाटक में जब कांग्रेस होती है तो विपक्षी दल यह मुद्दा ज्यादा उछालते हैं। 2016 में, जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में थी, तब बेंगलुरु में तमिलनाडु को कावेरी का पानी छोड़े जाने को लेकर विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई थी। पुलिस फायरिंग में दो लोगों की मौत हो गई। इससे पहले 1991 में भी कावेरी मुद्दे पर हिंसा भड़क उठी थी। उस समय कर्नाटक में लगभग 23 लोगों की मौत हो गई थी। उस समय राज्य में कांग्रेस के एस. बंगारप्पा की सरकार थी।