प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्ष के नेता राहुल गांधी और भारत के मुख्य न्यायाधीश की बैठक में CBI निदेशक के चयन में आख़िर क्या दिक्कत है कि सहमति नहीं बन सकी? जानिए इस गतिरोध के कारण, पैनल की भूमिका और इसके संभावित राजनीतिक निहितार्थ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के बीच सोमवार शाम को हुई उच्च-स्तरीय बैठक में केंद्रीय जाँच ब्यूरो सीबीआई के अगले निदेशक की नियुक्ति पर कोई सहमति नहीं बन पाई। इस बैठक का उद्देश्य वर्तमान सीबीआई निदेशक प्रवीण सूद का उत्तराधिकारी चुनना था। इनका दो साल का निश्चित कार्यकाल 25 मई 2025 को समाप्त हो रहा है। सीबीआई निदेशक की नियुक्ति एक तीन सदस्यीय समिति द्वारा की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं। सोमवार को समिति ने बैठक की, लेकिन इसमें सहमति नहीं बन पाई। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि सहमति नहीं बनने के कारण सरकार सूद के कार्यकाल को एक साल के लिए बढ़ाने पर विचार कर रही है।
सोमवार को हुई बैठक में तीन वरिष्ठ भारतीय पुलिस सेवा अधिकारियों के नामों पर चर्चा हुई थी, लेकिन सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि राहुल गांधी ने चयन प्रक्रिया पर आपत्ति जताई। राहुल गांधी ने मांग की कि अल्पसंख्यक समुदायों या महिला अधिकारियों को शॉर्टलिस्ट में शामिल किया जाए, जैसा कि 2023 में तत्कालीन विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने प्रवीण सूद की नियुक्ति के दौरान किया था। इसके अलावा, कुछ मीडिया रिपोर्टों ने यह भी संकेत दिया कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और केंद्र सरकार द्वारा पहले से तय नामों को आगे बढ़ाने की प्रवृत्ति पर भी सवाल उठाए गए। 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त हो रहे मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कथित तौर पर इस मामले में तटस्थ रुख अपनाया। उनकी यह स्थिति अहम है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में पारदर्शिता और निष्पक्षता की वकालत की है। बैठक में सहमति न बनने के कारण समिति ने कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया, और अब अगली बैठक 15 मई 2025 को जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष होने की संभावना है।
प्रवीण सूद 1986 बैच के कर्नाटक कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं। उनको 14 मई 2023 को सीबीआई निदेशक नियुक्त किया गया था। उनकी नियुक्ति पर बड़ा विवाद हुआ था।
उनकी नियुक्ति उस समय विवादास्पद रही थी, क्योंकि कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने सूद को 'भाजपा का एजेंट' और 'नालायक' क़रार देते हुए उन पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाया था। इसके बावजूद सूद ने अपने कार्यकाल में सीबीआई की 58 शाखाओं का दौरा कर रिकॉर्ड बनाया और क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम और इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को मज़बूत करने में योगदान दिया।
सूद का कार्यकाल 25 मई 2025 को समाप्त हो रहा है, और नियमों के अनुसार, केंद्र सरकार सीबीआई निदेशक के कार्यकाल को अधिकतम पांच साल तक बढ़ा सकती है। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि सरकार सूद के कार्यकाल को एक साल के लिए बढ़ाने पर विचार कर रही है, क्योंकि नई नियुक्ति पर सहमति बनाना समय ले सकता है। यह पहली बार नहीं होगा जब किसी सीबीआई निदेशक का कार्यकाल बढ़ाया गया हो; पूर्व निदेशक आलोक वर्मा और ऋषि कुमार शुक्ला के कार्यकाल भी बढ़ाए गए थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में इस तरह के विस्तार को लेकर एक याचिका लंबित है, जो सरकार के लिए कानूनी चुनौती पेश कर सकती है।
इस बैठक में सहमति नहीं बनना विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच गहरे अविश्वास को दिखाता है। राहुल गांधी की आपत्तियाँ चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाती हैं।
प्रवीण सूद के कार्यकाल को बढ़ाने का निर्णय विवादास्पद हो सकता है, खासकर कर्नाटक में, जहां कांग्रेस सत्ता में है और सूद के खिलाफ पहले से ही नाराजगी रही है। सूद की नियुक्ति के समय अधीर रंजन चौधरी ने यह तर्क दिया था कि सूद केंद्र सरकार में डीजी के लिए एम्पैनल्ड नहीं थे, और उनकी नियुक्ति सामान्य प्रक्रिया से हटकर थी। इस बार भी, अगर सूद का कार्यकाल बढ़ाया जाता है, तो विपक्ष इसे सरकार की 'मनमानी' के रूप में प्रचारित कर सकता है।