शिक्षा मंत्रालय ने सीबीएसई, केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालयों को 16 सितंबर से 2 अक्टूबर 2025 तक 'चलो जीते हैं' फिल्म दिखाने का निर्देश दिया है। यह फिल्म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बचपन की घटनाओं से प्रेरित है। मंत्रालय की ओर बताया गया है कि इसका मक़सद बच्चों को अच्छे मूल्य, जैसे दूसरों की मदद करना और जिम्मेदारी निभाना, सिखाना है। 

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 11 सितंबर को मंत्रालय ने एक पत्र में कहा कि यह फ़िल्म बच्चों को अच्छे चरित्र, सेवा, और जिम्मेदारी के बारे में सोचने में मदद करेगी। यह उन्हें सहानुभूति, सही सोच, और प्रेरणा देगी। यह निर्देश 'प्रेरणा' नामक एक खास कार्यक्रम का हिस्सा है, जो गुजरात के वडनगर में 1888 में बने स्कूल से चलता है। यहीं से पीएम मोदी ने अपनी पढ़ाई शुरू की थी।
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प्रेरणा कार्यक्रम 9 मूल्यों पर आधारित है: गर्व और विनम्रता, हिम्मत और साहस, मेहनत और समर्पण, ईमानदारी और पवित्रता, दया और सेवा, नई सोच और जिज्ञासा, एकता और विविधता, श्रद्धा और विश्वास, आजादी और कर्तव्य। इस कार्यक्रम में कहानियां, खेल, और ऑडियो-विजुअल तरीकों से बच्चों को सिखाया जाता है। फिल्म दिखाना भी इसका हिस्सा है, जो बच्चों को अच्छे मूल्यों और भावनाओं को समझने में मदद करता है।

'चलो जीते हैं' फिल्म के बारे में

'चलो जीते हैं' एक 32 मिनट की हिंदी फिल्म है, जो 2018 में रिलीज हुई थी। इसे मंगेश हडावले ने बनाया और आनंद एल राय व महावीर जैन ने प्रस्तुत किया। यह फिल्म स्वामी विवेकानंद के विचार 'जो दूसरों के लिए जीते हैं, वही सचमुच जीते हैं' पर आधारित है। 

अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार विज्ञप्ति में कहा गया है, 'यह कहानी युवा नारू की है, जो स्वामी विवेकानंद के विचारों से बेहद प्रभावित है और उनके विचारों को समझने की कोशिश करता है तथा अपनी छोटी सी दुनिया में कुछ बदलाव लाने की कोशिश करता है। इस पहल से, निस्वार्थता और सेवा का यह शाश्वत संदेश नई पीढ़ी तक प्रभावशाली तरीके से पहुंचेगा।'
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मंत्रालय की विज्ञप्ति में फिल्म का यूट्यूब लिंक दिया गया और कहा गया कि 66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में इसे 'परिवार मूल्यों पर सर्वश्रेष्ठ नॉन-फीचर फिल्म' का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था, 'और युवाओं को प्रेरित करने की क्षमता के लिए इसकी सराहना की गई है।' इसमें कहा गया, 'प्रेरणा कार्यक्रम में इस फिल्म ने प्रतिभागियों पर गहरा प्रभाव डाला है, जिन्होंने इसके संदेश को आत्मसात कर लिया है और अपने व्यवहार व कार्यों में इसे दिखाया है।'

स्कूलों और सिनेमाघरों में प्रदर्शन

यह निर्देश सीबीएसई के 31,000 से ज्यादा स्कूलों, 1,256 केंद्रीय विद्यालयों (13.56 लाख छात्रों के साथ), और 661 नवोदय विद्यालयों के लिए है। साथ ही 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक यह फिल्म देशभर के सिनेमाघरों में फिर से दिखाई जा रही है। यह 'चलो जीते हैं: सेवा का सम्मान' अभियान का हिस्सा है, जो स्वामी विवेकानंद के सेवा और आत्मनिर्भरता के संदेश को फैलाने का प्रयास है।


पीएम मोदी के 75वें जन्मदिन के ठीक पहले आए इस निर्देश से राजनीतिक बहस शुरू हो गई है। कांग्रेस ने इसे 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिन और स्वच्छता अभियान से जोड़कर गलत बताया। सोशल मीडिया पर भी इसे 'प्रचार' बताया जा रहा है।
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वहीं, भाजपा ने इसे बच्चों के लिए प्रेरणादायक बताया। पार्टी ने कहा, 'यह फिल्म स्वामी विवेकानंद के विचारों पर है और बच्चों को अच्छा संदेश देती है। इसे राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए।' कुछ शिक्षकों का कहना है कि फिल्म अच्छी है, लेकिन इसे अनिवार्य करने से स्कूलों पर बोझ बढ़ सकता है। कुछ ने इसे वैकल्पिक करने की मांग की है।

शिक्षा मंत्रालय का यह निर्देश बच्चों में अच्छे मूल्यों को बढ़ाने का प्रयास है। 'चलो जीते हैं' फिल्म के जरिए दया, सेवा, और जिम्मेदारी जैसे गुण सिखाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इसकी टाइमिंग ने विवाद पैदा कर दिया है।