बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर को 'चुनाव चोरी' क़रार दिया जा रहा है तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग किसी भी दबाव में आकर मृतकों, स्थायी रूप से पलायन कर चुके लोगों या एक से अधिक स्थानों पर मतदाता के रूप में पंजीकृत व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं कर सकता। तो सवाल है कि क्या सच में एसआईआर से यही काम हो रहा है या फिर विपक्ष के आरोपों के अनुसार वैध मतदाताओं के नाम हटाए जाने की साज़िश है?

इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर चुनाव आयोग ने क्या कहा है। बिहार में चल रहे एसआईआर अभियान के तहत घर-घर जाकर की गई जाँच में अब तक 52 लाख से अधिक मतदाता अपने पते पर मौजूद नहीं पाए गए, जबकि 18 लाख मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है। इसके अलावा, 7 लाख मतदाता ऐसे हैं जो दो स्थानों पर पंजीकृत हैं और 1 लाख मतदाताओं का कोई पता नहीं चल सका। सीईसी ने सवाल उठाया, 'क्या चुनाव आयोग को ऐसे मतदाताओं को सूची में बनाए रखना चाहिए? क्या यह संविधान के खिलाफ नहीं है?'
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विपक्षी दलों की आपत्ति

विपक्षी दलों ने इस अभियान को सत्तारूढ़ एनडीए के पक्ष में एक साज़िश क़रार देते हुए आरोप लगाया है कि इससे करोड़ों पात्र मतदाताओं का नाम सूची से हटाया जा सकता है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इसे लोकतंत्र की हत्या तक करार दिया है। जवाब में ज्ञानेश कुमार ने कहा, 'पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से तैयार की जा रही सही मतदाता सूची निष्पक्ष चुनावों की आधारशिला है। क्या हमें नकली मतदाताओं को वोट डालने की अनुमति देनी चाहिए?'

ज्ञानेश कुमार ने जोर देकर कहा कि अयोग्य मतदाताओं को वोट देने देना संविधान के ख़िलाफ़ होगा। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों और नागरिकों से इस मुद्दे पर राजनीतिक विचारधाराओं से ऊपर उठकर विचार करने की अपील की।

वोटर लिस्ट में धांधली के सबूत: राहुल

इस बीच, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दावा किया है कि उनके पास कर्नाटक में वोटर लिस्ट में धांधली के 100% पुख्ता सबूत हैं। राहुल ने कर्नाटक की एक लोकसभा सीट पर 45-65 साल की उम्र के हजारों नए वोटरों के जोड़े जाने और योग्य वोटरों के नाम हटाए जाने का दावा किया है। उन्होंने इसे वोट चोरी का हिस्सा बताया और कहा कि उनके पास 100% सबूत हैं। विपक्ष का कहना है कि बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के ज़रिए सत्तारूढ़ बीजेपी के पक्ष में वोटर लिस्ट में हेरफेर किया जा रहा है। वे यह भी आरोप लगाते हैं कि महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच 39 लाख नए वोटर जोड़े गए जो असामान्य है।

विपक्ष का दावा है कि एसआईआर प्रक्रिया में दलित, अल्पसंख्यक और गरीब समुदायों के वोटरों को निशाना बनाया जा रहा है। आयोग ने इस पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया, जिससे संदेह और गहरा हो रहा है।

राहुल गांधी और विपक्ष ने डिजिटल वोटर लिस्ट और मतदान केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज की जाँच की मांग की है, लेकिन आयोग ने गोपनीयता का हवाला देकर इनकार कर दिया। यह रुख आयोग की विश्वसनीयता को कमजोर करता है।

वोटरों की संख्या में चौंकाने वाला बदलाव क्यों?

महाराष्ट्र में पांच महीनों में 39 लाख वोटरों की बढ़ोतरी और बिहार में 52 लाख वोटरों का नहीं मिलना सामान्य नहीं लगता। अगर यह तकनीकी त्रुटि है तो आयोग को इसे साफ़ करना चाहिए। विपक्ष का यह आरोप कि दलित और अल्पसंख्यक वोटरों को जानबूझकर हटाया जा रहा है, गंभीर है। अगर यह सच है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। विपक्ष की मांग कि डिजिटल वोटर लिस्ट और सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक किए जाएँ, जायज है। अगर आयोग की प्रक्रिया साफ है तो उसे इस जांच से बचना नहीं चाहिए। हाल ही में टीएमसी ने आरोप लगाया था कि एक ही मतदाता पहचान पत्र संख्या पर एक से अधिक मतदाता पाए गए हैं। हालाँकि तब चुनाव आयोग ने इसे तकनीकी गड़बड़ी की आशंका जताई थी और कहा था कि इन्हें कम्प्यूटरीकृत करने के बाद ऐसी गड़बड़ियाँ सही हो जाएंगी।
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कर्नाटक और बिहार में असामान्य आँकड़े?

मतदाता सूची को अपडेट करना ज़रूरी है। 2009 और 2014 के आँकड़े बताते हैं कि चुनावी सालों में वोटरों की संख्या में बढ़ोतरी सामान्य है। लेकिन कर्नाटक और बिहार में असामान्य आँकड़े सवाल खड़े करते हैं। क्या यह तकनीकी त्रुटि है या सुनियोजित हेरफेर? इसका जवाब बिना स्वतंत्र जांच के नहीं मिल सकता।

आयोग का गोपनीयता का हवाला देना तब कमजोर पड़ता है, जब उस पर इतने गंभीर आरोप लग रहे हों। कहा जा रहा है कि अगर आयोग वाकई निष्पक्ष है, तो उसे डिजिटल वोटर लिस्ट की तुलना और सीसीटीवी फुटेज की जांच की अनुमति देनी चाहिए। विपक्ष का यह आरोप कि आयोग सत्तारूढ़ दल के दबाव में काम कर रहा है, गंभीर है। लेकिन इसके लिए ठोस सबूतों की ज़रूरत है। 
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चुनाव आयोग की जवाबदेही

चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसका काम निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करना है। लेकिन हाल के वर्षों में खासकर 2019 और 2024 के चुनावों के बाद आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं।

चुनाव आयोग का यह तर्क कि मृत और पलायन कर चुके लोगों के नाम मतदाता सूची में नहीं रहने चाहिए, सही है। लेकिन SIR प्रक्रिया की पारदर्शिता और इसके कार्यान्वयन पर सवाल उठना जायज है। राहुल गांधी के "100% सबूत" के दावे ने इस विवाद को और गंभीर बना दिया है।