सरकार ने 10 एजेंसियों को यह हक़ दे दिया है कि वे शक के आधार पर बिना किसी की अनुमति लिए किसी का कंप्यूटर ट्रैक कर वहाँ पड़ी फ़ाइलें देख सकती हैं।
सरकार ने 10 एजेंसियों को यह हक़ दे दिया है कि वे शक के आधार पर बिना किसी की अनुमति लिए किसी का कंप्यूटर ट्रैक कर वहाँ पड़ी फ़ाइलें देख सकती हैं। इन एजंसियों में प्रवर्तन निदेशालय, इंटेलिजेंस ब्यूरो, इनकम टैक्स विभाग आदि हैं।
सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर इन एजेंसियों से कहा है कि यदि किसी नागिरक बारे में शक हो कि वह राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल है या उसकी किसी गतिविधि से देश को नुक़सान हो सकता है तो वह उसके कंप्यूटर को ट्रैक करे। इसके लिए उन्हें किसी से इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।
इसके तहत ये एजेंसियां किसी भी आदमी के कंप्यूटर को ट्रैक कर सकती हैं और वहाँ पड़ी फ़ाइल देख सकती हैं।
इसे निजता का उल्लंघन माना जा रहा है। यह भी समझा जा रहा है कि सरकार में बैठे लोग इसका ग़लत इस्तेमाल कर सकते हैं और विरोधियों को निशाना बनाया जा सकता है। ख़ास कर लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र इसे विरोधियों की जासूसी के काम में इस्तेमाल किया जा सकता है।
पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने इसकी आलोचना करते हुए कहा है कि यदि कोई मेरे कंप्यूटर में ताकझाँक कर रहा है तो यह तानाशाही है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुसलमीन-इत्तिहाद (एआईएमआईएम) के नेता असदउद्दीन ओवैसी ने इस पर सरकार का ज़बरदस्त विरोध किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा मोदी पर तंज किया है और कहा है कि यही तो है ‘घर-घर मोदी’।
सरकार के इस आदेश का विरोध होना तय है। पहले भी सरकार पर विरोध के स्वर को दबाने और मीडिया पर दबाव बनाने के आरोप लगते रहे हैं।
सरकार की सफ़ाई
सरकार ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। गृह मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि किसी भी एजेंसी को किसी के कंप्यूटर में घुसने से पहले गृह मंत्रालय की मंज़ूरी लेनी होगी। उसने यह भी साफ़ किया है कि यह आदेश साल 2009 के क़ानून के अनुसार ही जारी किया गया है, उसमें पहले के प्रावधान ही है, कोई नया प्रावधान नहीं जोड़ा गया है। सरकार ने यह भी कहा है कि पहले से मौजूद टेलीग्राफ़ एक्ट में भी ये प्रावधान हैं।