ऊपर की तसवीर देखिए। देखने भर से ही सिहरन पैदा हो गई न! सफ़ाई कर्मी गंदगी में डूब जाते हैं। नीचे उतरते ही साँसें अटक जाती हैं। और कई बार तो जान ही चली जाती है। उत्तरी दिल्ली के तिमारपुर में भी ऐसा ही हुआ। 37 साल के किशन सीवर लाइन साफ़ करने के लिए अंदर गए। साथ थीं सिर्फ़ साँसें। न तो फ़ेस मास्क, साँस लेने के उपकरण और न ही वर्दी या अन्य सुरक्षा के उपकरण। बस एक कुदाल काम करने के लिए दिया गया था। किशन को 400 रुपये मिलते। कुछ ही देर में सीवर लाइने से वह लापता हो गए। लापता क्या हुए, सात घंटे बाद अंदर से लाश निकली।
सीवर में मरती इंसानियत, क्या सफ़ाई कर्मियों की जान सस्ती?
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- 21 Jan, 2019
उत्तरी दिल्ली के तिमारपुर में एक और सफ़ाई कर्मी की मौत हो गई। बिना सुरक्षा उपाय के ही सफ़ाई कर्मियों को गंदगी में डूबना पड़ता है। नीचे उतरते ही साँसें अटक जाती हैं। और कई बार तो जान ही चली जाती है।

ऐसी लाशें निकलती रही हैं। मीडिया में ख़बरें आती हैं और चली जाती हैं। यदि दिल्ली के मोती नगर में चार सफ़ाई कर्मचारियों की एक साथ मौत हो जाती है तो थोड़ा-सा शोरगुल हो जाता है। मरने वालों की सही संख्या कितनी है, मंत्री से लेकर अफ़सर तक नहीं बता सकते हैं। क्योंकि ऐसी मौतों की गिनती तक के लिए अभी तक कोई ठोस काम तक नहीं हुआ है, इसके कारण या बचाव के उपाय के लिए नीति बनाने की तो बात ही दूर है। पिछले दो वर्षों में, शहर में सीवर, सेप्टिक टैंक और वर्षा जल संचयन गड्ढों की सफ़ाई करते समय 22 लोगों की मौत हो चुकी है।