देश के 111 से अधिक रिटायर्ड आईएएस, आईएफएस, आईपीएस अफसरों ने एक खुले पत्र में भारत सरकार की ग़ज़ा (फिलिस्तीन) की निन्दा की है। उन्होंने मोदी सरकार की इस बात के लिए निन्दा की है कि ग़ज़ा संकट के प्रति उसकी प्रतिक्रिया "कमजोर, अस्पष्ट और निराशाजनक" है। रिटायर्ड नौकरशाहों ने ग़ज़ा में इसराइल की सैन्य कार्रवाइयों को "नरसंहार" कहा है और भारत की विदेश नीति में नैतिकता की कमी पर सवाल उठाता है।
पत्र में कहा गया है कि ग़ज़ा में पिछले 22 महीनों से चल रही हिंसा में 60,000 से अधिक लोग मारे गए हैं। इनमें 18,430 बच्चे शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञों और मानवाधिकार संगठनों ने भी इसे नरसंहार के रूप में मान्यता दी है। पत्र में इसराइल के रक्षा बलों द्वारा किए गए हमलों को वॉर क्राइम और मानवता के खिलाफ अपराध बताया गया है।
रिटायर्ड नौकरशाहों ने भारत की उस नीति पर निराशा जताई, जिसमें वह एक तरफ फिलिस्तीन का समर्थन करने का दावा करता है। दूसरी तरफ इसराइल को हथियारों और सैन्य उपकरणों की सप्लाई करता है। पत्र में कहा गया है, "भारत ने अपनी स्थापना के समय से ही फिलिस्तीनी लोगों का न्यायपूर्ण समर्थन किया है, लेकिन वर्तमान सरकार इसराइल को रॉकेट, विस्फोटक और घातक ड्रोन निर्यात करके नरसंहार में सहायता कर रही है।"
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पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में जिक्र किया है कि नवंबर 2024 में एक ऐतिहासिक फैसले में, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए। मई 2024 में, आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन ने आधिकारिक तौर पर फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता दे दी। अमेरिका के प्रमुख सहयोगी ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया सहित कई पश्चिमी सरकारों ने इज़राइल के प्रति अपने पूर्ण समर्थन को वापस ले लिया है, और धमकी दी है कि अगर इसराइल ने अपना रुख नहीं बदला तो वे आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता दे देंगे। पूर्व नौकरशाहों ने ये तथ्य इसलिए बताए हैं ताकि भारत सरकार इससे सबक ले सके।
पत्र में जिक्र है कि महात्मा गांधी ने कहा था कि फिलिस्तीन अरबों का है और "अरबों पर यहूदियों को थोपना गलत और अमानवीय है।" पूर्व नौकरशाहों ने सरकार से मांग की है कि वह ग़ज़ा में फौरन युद्धविराम, सभी बंधकों और कैदियों की रिहाई, और मानवीय सहायता की अबाधित सप्लाई के लिए सक्रिय कदम उठाए।
पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में कई प्रमुख पूर्व नौकरशाह शामिल हैं, जिन्होंने भारत की विदेश नीति को नैतिकता और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप बनाने की अपील की है। उन्होंने कहा, "हमारी चुप्पी और निष्क्रियता इस नरसंहार में हमें भी शामिल करती है।" इन पूर्व नौकरशाहों में कवि अशोक वाजपेयी, शिवशंकर मेनन, एएस दुलत, नजीब जंग, हर्ष मांदर, जूलियो रिबेरो, अनीता अग्निहोत्री, जेएल बजाज, नूतन गुहा बिस्वास समेत अनगिनत नाम हैं।