बीजेपी की ही सहयोगी पार्टी जेडीयू के सांसद गिरधारी यादव ने SIR प्रक्रिया को 'तुगलकी फरमान' क्यों बताया और चुनाव आयोग की आलोचना क्यों की? जानिए पूरा विवाद।
जेडीयू सांसद गिरधारी यादव
बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू के सांसद गिरधारी यादव ने मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन यानी SIR और चुनाव आयोग की खिंचाई की है। उन्होंने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया को 'तुगलकी फरमान' करार दिया है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को बिहार की जमीन की हकीकत, इतिहास और भूगोल की कोई समझ नहीं है।
बांका से जेडीयू सांसद गिरधारी यादव ने यह बयान बुधवार को संसद के बाहर एएनआई से बातचीत के दौरान दिया। उन्होंने कहा कि एसआईआर की प्रक्रिया अव्यवहारिक है और इसे जबरदस्ती लागू किया गया है। उन्होंने बताया कि उन्हें खुद अपने दस्तावेज जुटाने में 10 दिन लग गए। उन्होंने कहा, 'मेरा बेटा अमेरिका में रहता है, वह एक महीने में दस्तखत कैसे करेगा? बिहार में मानसून का समय है, किसान खेतों में काम कर रहे हैं। ऐसे में लोग दस्तावेज कहां से लाएंगे?' यादव ने कहा कि इस प्रक्रिया के लिए कम से कम छह महीने का समय दिया जाना चाहिए था।
सांसद ने चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, 'चुनाव आयोग को कोई व्यावहारिक ज्ञान नहीं है। उसे न बिहार का इतिहास पता है, न भूगोल।' उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह उनका निजी विचार है, भले ही उनकी पार्टी एसआईआर का समर्थन कर रही हो। उन्होंने कहा, 'अगर मैं सच नहीं बोल सकता, तो सांसद बना ही क्यों?'
SIR पर विपक्ष का भी हंगामा
गिरधारी यादव का यह बयान उस समय आया है जब विपक्षी दल एसआईआर को लेकर लगातार विरोध कर रहे हैं। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को 'दिखावा' करार दिया और इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाए।
कांग्रेस ने एसआईआर को 'वोटरों के अधिकार छीनने की साजिश' बताया है। बुधवार को संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के हंगामे के कारण कार्यवाही कुछ ही मिनटों में स्थगित कर दी गई।
क्या है SIR और विवाद क्यों?
चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन की घोषणा की थी। इसका मकसद विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को साफ करना और फर्जी वोटरों को हटाना है। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में शुरू की गई है और इससे लाखों वैध वोटरों के नाम हटाए जा सकते हैं। खासकर गरीब, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों के लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं। एआईएमआईएम ने भी इसे 'तुगलकी फरमान' बताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया बीजेपी के इशारे पर हो रही है।
जेडीयू सांसद का यह बयान इसलिए भी अहम है, क्योंकि उनकी पार्टी एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वह एसआईआर का समर्थन कर रही है। यादव के बयान ने पार्टी के भीतर असहजता पैदा कर दी है। हालाँकि, उन्होंने साफ़ किया कि यह उनका निजी विचार है और उन्होंने इस बारे में पार्टी नेतृत्व से कोई चर्चा नहीं की।
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर खूब चर्चा हो रही है। एक यूजर ने लिखा, 'अगर जेडीयू का सांसद ही SIR को तुगलकी फरमान कह रहा है, तो यह प्रक्रिया कितनी अव्यवहारिक होगी!' कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह प्रक्रिया वोटरों को परेशान करने की साजिश है।
चुनाव आयोग का कहना है कि एसआईआर मतदाता सूची को सटीक बनाने के लिए ज़रूरी है। इसने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया को मतदाता सूची को पारदर्शी, निष्पक्ष और सटीक बनाने के उद्देश्य से शुरू किया है। आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया का मुख्य लक्ष्य फर्जी मतदाताओं को हटाना और मतदाता सूची को अपडेट करना है ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जा सकें। विपक्ष का कहना है कि एक महीने का समय बहुत कम है और बिहार जैसे गरीब राज्य में, जहां लाखों लोग प्रवासी मजदूर हैं, उनके लिए दस्तावेज जुटाना मुश्किल है।
एसआईआर को लेकर बिहार में सियासी माहौल गर्म है। विपक्ष इसे संसद और सड़क पर उठाने की तैयारी में है। दूसरी ओर, जेडीयू सांसद का बयान एनडीए के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यावहारिक नहीं बनाया गया तो यह बिहार में लोकतंत्र और मतदाता अधिकारों पर सवाल उठा सकता है। गिरधारी यादव का बयान बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। क्या यह वाकई मतदाता सूची को साफ़ करने का प्रयास है या इसके पीछे कोई और मंशा है?