इज़रायली कंपनी एनएसओ ग्रुप के विवादास्पद स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल 2019 में 51 देशों में व्हाट्सएप का इस्तेमाल करने वाले 1,223 लोगों को टारगेट करने के लिए किया गया था। जिसमें 100 भारतीय इस हैकिंग सॉफ़्टवेयर के इस्तेमाल से प्रभावित हुए थे। दुनियाभर में पेगासस का शिकार बने लोगों की यह दूसरी सबसे बड़ी संख्या है, जैसा कि अमेरिका के अदालती दस्तावेजों से पता चला है।

पेगासस एक ऐसा जासूसी सॉफ्टवेयर है, जो किसी भी मोबाइल फोन में बिना इस्तेमाल करने वाले की जानकारी के घुस सकता है। यह फोन के मैसेज, कॉल, ईमेल, लोकेशन और यहां तक कि कैमरा व माइक्रोफोन तक को कंट्रोल कर सकता है। इज़रायल की कंपनी एनएसओ ग्रुप ने इसे बनाया और दावा किया कि यह सॉफ्टवेयर केवल सरकारों और कानूनी जांच एजेंसियों को बेचा जाता है, ताकि अपराध और आतंकवाद से लड़ा जा सके। लेकिन हकीकत यह है कि इसका दुरुपयोग कई देशों में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और नेताओं की जासूसी के लिए किया गया। भारत में भी इसका इस्तेमाल इन्हीं लोगों पर हुआ।

यह मुकदमा अक्टूबर 2019 में शुरू हुआ और इसके दस्तावेजों ने पेगासस के दुनियाभर में दुरुपयोग की परतें खोल दीं। अदालत में सामने आए सबूतों के अनुसार, भारत में पत्रकारों, नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के फोन को निशाना बनाया गया। यह पहली बार नहीं था जब भारत में पेगासस का नाम सुर्खियों में आया था। इससे पहले 2021 में, एक ग्लोबल जांच में खुलासा हुआ था कि भारत में 300 से अधिक फोन नंबरों को पेगासस के जरिए निशाना बनाया गया था, जिनमें दो केंद्रीय मंत्री, तीन विपक्षी नेता, एक संवैधानिक अधिकारी और कई पत्रकार शामिल थे।

हालांकि, एनएसओ ग्रुप ने हमेशा यह दावा किया कि इसके दुरुपयोग के लिए वह जिम्मेदार नहीं है। लेकिन व्हाट्सएप ने अदालत में यह साबित करने की कोशिश की कि एनएसओ ग्रुप का अपने ग्राहकों (यानी उन देशों या उसकी जांच एजेंसियों) के ऑपरेशंस पर काफी नियंत्रण था। उदाहरण के लिए, ग्राहक को केवल टारगेट का फोन नंबर डालना होता था और “इंस्टॉल” बटन दबाना होता था, बाकी काम पेगासस और एनएसओ की तकनीक खुद कर लेती थी। कितना वीभत्स है यह सब। क्या आप कुछ सोचने पर मजबूर नहीं हो रहे हैं कि 2019 में भारत में किस पार्टी की सरकार थी। क्या आप ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स समेत तमाम जांच एजेंसियों के दुरुपयोग की कहानियां भूल गए।

भारत में इस मामले ने कई सवाल आज भी खड़े हुए हैं।

क्या भारत सरकार या उसकी एजेंसियों ने पेगासस खरीदा था?

अगर हां, तो इसे किसके खिलाफ इस्तेमाल किया गया?

अगर नहीं, तो भारत में इसका इस्तेमाल किसने किया?

इन सवालों का जवाब अभी तक स्पष्ट नहीं है।

2021 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी के आरोपों की जांच के लिए एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति बनाई थी।

लेकिन अगस्त 2022 में, इस समिति ने कहा कि उसे जांचे गए फोनों में पेगासस के उपयोग का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला। हालांकि, समिति ने यह भी नोट किया कि केंद्र सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया।

भारत में, इस मामले ने गोपनीयता और निगरानी के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर सरकारें ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल अपने ही नागरिकों के खिलाफ करेंगी, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। दूसरी ओर, कुछ लोग मानते हैं कि आतंकवाद और अपराध से निपटने के लिए ऐसी तकनीकों की जरूरत है, बशर्ते उनका उपयोग पारदर्शी और कानूनी तरीके से हो।

भारत में, जहां डिजिटल तकनीक तेजी से बढ़ रही है। पेगासस जैसे सॉफ्टवेयर का दुरुपयोग रोकने के लिए मजबूत कानून नहीं है। साथ ही, यहां के लोग अपनी डिजिटल गोपनीयता के लिए इतने जागरूक भी नहीं हैं। हाल ही में भारत में जिस तरह से कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां हुईं और उन पर प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश तक के आरोप लगे। उस केस में पत्रकार, वकील, कवि, लेखक आरोपी बनाए गए। वो केस आज भी चल रहा है। उस केस में यह आरोप सामने आया कि एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के लैपटॉप में मैलवेयर के जरिए जासूसी सॉफ्टवेयर डाला गया और उसके जरिए फर्जी पत्र प्लांट किया गया। जिसमें तमाम धमकियां दी गईं और बाद में उसी को आरोपी बनाया गया।

पेगासस जासूसी कांड ने भारत और दुनिया को यह सोचने पर मजबूर किया है कि इसका इस्तेमाल किस दिशा में हो रहा है। यह एक चेतावनी है कि बिना सख्त कानून और सरकार की जवाबदेही के, यह तकनीक सरकार को निरंकुश बना सकती है। भारत में इस मामले की जांच भले ही पूरी न हो सकी हो, लेकिन यह सवाल अब भी जिंदा है कि हमारी गोपनीयता की रक्षा कौन करेगा? मोदी सरकार से यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि आखिर भारत में लोगों की प्राइवेसी को इस तरह दांव पर क्यों लगाया गया।

यह कहानी 2019 में उस समय सामने आई, जब दुनिया की सबसे लोकप्रिय मैसेजिंग ऐप व्हाट्सएप ने एनएसओ ग्रुप के खिलाफ अमेरिका की एक अदालत में मुकदमा दायर किया। व्हाट्सएप ने आरोप लगाया कि एनएसओ ग्रुप ने उसके प्लेटफॉर्म में मौजूद एक खामी (वॉल्नरेबिलिटी) का फायदा उठाकर 51 देशों में 1,223 लोगों के फोन में पेगासस सॉफ्टवेयर डाला। इनमें से 100 लोग भारत से थे, जो मेक्सिको (456 लोग) के बाद दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा था। व्हाट्सएप ने दावा किया कि इस जासूसी का शिकार भारत के पत्रकार, वकील, नेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता बने।

अदालती दस्तावेजों ने भारत में पेगासस के व्यापक इस्तेमाल की ओर इशारा किया। यह सॉफ्टवेयर इतना खतरनाक है कि इसे बिना किसी यूजर की सहमति के फोन में इंस्टॉल किया जा सकता है। व्हाट्सएप ने दावा किया कि एनएसओ ग्रुप ने इसके सर्वर का इस्तेमाल करके मैलवेयर को फोन में भेजा, जिससे यूजर्स की निजी जानकारी चुराई गई। भारत में जिन 100 लोगों को निशाना बनाया गया, उनमें कई ऐसे थे जो समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह खुलासा न केवल गोपनीयता के उल्लंघन का मामला है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या सरकारें अपने ही नागरिकों की जासूसी कर रही हैं? क्योंकि पेगासस को बनाने वाली कंपनी ने हलफनामा दिया है कि उसने इसे सरकारों और कानूनी जांच एजेंसियों को बेचा है। यानी इसका मतलब यह हुआ कि भारत में या तो सरकार ने या फिर जांच एजेंसियों ने सरकार के इशारे पर उसके विरोधियों को इसके जरिए निशाना बनाया। 

पेगासस का इस्तेमाल सिर्फ भारत तक सीमित नहीं था। अदालती दस्तावेजों के अनुसार, मेक्सिको में 456 लोग, बहरीन में 82, मोरक्को में 69, पाकिस्तान में 58, इंडोनेशिया में 54 और इज़रायल में 51 लोग इसके शिकार बने। यह आंकड़ा दिखाता है कि विकासशील देशों में इस सॉफ्टवेयर का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ। लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर देश की सरकार अपने ही नागरिकों को निशाना बनाए। कुछ मामलों में, विदेशी सरकारें भी दूसरे देशों के नागरिकों की जासूसी कर सकती हैं।

व्हाट्सएप और एनएसओ ग्रुप के बीच चल रहा मुकदमा एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है। दिसंबर 2024 में, अमेरिकी अदालत ने एनएसओ ग्रुप को व्हाट्सएप यूजर्स के फोन में जासूसी करने का दोषी ठहराया। अब मार्च 2025 में, कैलिफोर्निया के ओकलैंड में होने वाली सुनवाई में यह तय होगा कि एनएसओ ग्रुप को व्हाट्सएप को कितना हर्जाना देना होगा। यह फैसला न केवल एनएसओ ग्रुप के लिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर जासूसी सॉफ्टवेयर के दुरुपयोग को रोकने के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

पेगासस कांड ने तकनीकी दुनिया में कई सबक दिए हैं। पहला, यह कि कोई भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। दूसरा, सरकारों और निजी कंपनियों के बीच सांठगांठ गोपनीयता के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। तीसरा, इस तरह के मामलों की जांच में पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है।