संविधान सदन में राहुल गांधी ने पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की चुप्पी को लेकर सनसनीखेज सवाल उठाए। जानें उन्होंने किस पर निशाना साधा।
राहुल गांधी ने पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की चुप्पी पर उठाए सवाल
उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद से जगदीप धनखड़ आख़िर कहाँ हैं? लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अब यही सवाल पूछ लिया है। उन्होंने संविधान सदन के सेंट्रल हॉल में एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व उपराष्ट्रपति की चुप्पी और उनके इस्तीफे को लेकर सनसनीखेज बयान दिया। राहुल गांधी ने अपने भाषण में देश के मौजूदा राजनीतिक माहौल पर गहरी चिंता जताते हुए सवाल उठाया कि भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति आखिर क्यों चुप हैं और सार्वजनिक रूप से एक शब्द भी बोलने से क्यों कतरा रहे हैं।
विपक्षी दलों ने बुधवार को अपने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को संविधान सदन के केंद्रीय कक्ष में आमंत्रित किया। कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा, 'भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति आखिर छुपे हुए क्यों हैं? क्यों ऐसी नौबत आ गई कि वो बाहर आ कर एक शब्द भी नहीं बोल सकते? सोचिए, हम कैसे समय में जी रहे हैं।' उनके इस बयान ने सेंट्रल हॉल में मौजूद नेताओं और पत्रकारों के बीच हलचल मचा दी। उन्होंने आगे कहा, 'देश के उपराष्ट्रपति क्यों चले गए? क्या भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति ऐसी स्थिति में हैं कि वह एक शब्द भी नहीं बोल पा रहे हैं? अचानक एक व्यक्ति, जो राज्यसभा में खुलकर बोलता था, चुप हो गया है, बिल्कुल चुप।'
राहुल गांधी ने क्या कहा?
उपराष्ट्रपति के इस्तीफे का ज़िक्र करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि जिस दिन उपराष्ट्रपति ने इस्तीफा दिया उस दिन उनके पास केसी वेणुगोपाल का फोन आया। राहुल ने कहा, 'वेणुगोपाल ने मुझे फोन कर कहा कि आपको पता है उपराष्ट्रपति पद से हट गए। उनके इस्तीफ़े के पीछे एक वजह है। शायद आप लोगों में से कुछ को पता हो और कुछ को नहीं भी हो। वह छुपे हुए हैं...।'
कांग्रेस नेता ने अपने भाषण में पूर्व उपराष्ट्रपति के अचानक इस्तीफे और उनकी चुप्पी को देश में बढ़ते 'भय के माहौल' से जोड़ा। उन्होंने दावा किया कि यह स्थिति देश में लोकतंत्र की स्थिति पर सवाल खड़े करती है। उन्होंने कहा, 'हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहाँ लोग अपनी बात कहने से डर रहे हैं। एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति, जो पहले खुलकर अपनी राय रखता था, आज पूरी तरह खामोश है। यह लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक़ संकेत है।'
राहुल ने बिना किसी का नाम लिए संकेत दिया कि पूर्व उपराष्ट्रपति की चुप्पी के पीछे सत्तारूढ़ दल का दबाव हो सकता है। उन्होंने कहा, 'जो लोग संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं उन्हें अपनी आवाज़ उठानी चाहिए। अगर संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी चुप रहेंगे, तो आम जनता की आवाज कौन सुनेगा?' उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह समय देश के नागरिकों के लिए यह सोचने का है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं।
संविधान और लोकतंत्र पर जोर
राहुल गांधी ने अपने भाषण में संविधान के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह भारत की आत्मा है और इसे बचाने की ज़िम्मेदारी हर नागरिक की है। उन्होंने कहा, 'संविधान सिर्फ एक किताब नहीं है, यह हमारे देश की आत्मा है। यह हमें एकजुट रखता है, यह हमें आजादी देता है, और यह हमें बराबरी का हक देता है। लेकिन आज इसे कमजोर करने की साजिश हो रही है।'
राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ ताकतें संविधान को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं।
भाजपा पर निशाना
राहुल गांधी ने अपने भाषण में बीजेपी और आरएसएस पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कुछ लोग संविधान को भारतीय नहीं मानते हैं और इसे बदलने की बात करते हैं। उन्होंने सावरकर के एक पुराने बयान का जिक्र करते हुए कहा, 'सावरकर ने कहा था कि संविधान में कुछ भी भारतीय नहीं है और भारत को मनुस्मृति से चलना चाहिए। क्या भाजपा और आरएसएस इस विचार से सहमत हैं?' राहुल ने यह सवाल उठाकर सत्तारूढ़ दल को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की।
राहुल गांधी का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति के इस्तीफे को लेकर कई तरह की अटकलें लग रही हैं। हालांकि, राहुल ने किसी का नाम साफ़ तौर पर नहीं लिया, लेकिन माना जा रहा है कि उनका इशारा पूर्व उपराष्ट्रपति की ओर था, जिन्होंने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा दिया था। इस इस्तीफे के कारणों को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, जिससे राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है।
राहुल गांधी ने अपने भाषण में यह भी कहा कि यह केवल एक व्यक्ति की चुप्पी का सवाल नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के लोकतांत्रिक ढाँचे पर सवाल उठाता है। उन्होंने कहा, 'जब संवैधानिक संस्थाएँ दबाव में काम करने लगती हैं, जब लोग अपनी बात कहने से डरने लगते हैं, तो यह लोकतंत्र की हार है।'
राहुल गांधी का यह भाषण न केवल पूर्व उपराष्ट्रपति की चुप्पी पर सवाल उठाता है, बल्कि देश में लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों की स्थिति पर भी गहरी बहस छेड़ता है। उनके बयान ने एक बार फिर संविधान को केंद्र में लाकर यह सवाल उठाया कि क्या भारत का लोकतांत्रिक ढांचा वाकई सुरक्षित है।