राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता दत्तात्रेय होसबाले के खिलाफ बेंगलुरु के शेषाद्रिपुरम पुलिस स्टेशन में रविवार को शिकायत दर्ज कराई गई। आरोप लगाया गया है कि होसबाले ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना से "समाजवाद" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों को हटाने की मांग करके "असंवैधानिक, भड़काऊ और विभाजनकारी" टिप्पणियां की हैं। यह संविधान के मूल्यों पर हमला और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ उकसावे का काम है।
यह शिकायत इंडियन यूथ कांग्रेस की कर्नाटक कानूनी प्रकोष्ठ के सदस्यों ने दर्ज कराई है। शिकायतकर्ता यूथ कांग्रेस के प्रतिनिधि श्रीधर एमएम ने कहा, "मैं यह शिकायत भारत के संविधान की पवित्रता को बनाए रखने और सार्वजनिक व्यवस्था तथा संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में दर्ज करा रहा हूं।" उन्होंने आगे कहा, "ये टिप्पणियां केवल वैचारिक नहीं हैं, बल्कि जानबूझकर की गईं, उकसाने वाली और खतरनाक हैं।"
शिकायत में कहा गया है कि होसबाले का भाषण भारतीय न्याय संहिता के कई प्रावधानों का उल्लंघन करता है और यह "धार्मिक समुदायों को हाशिए पर धकेलने और अशांति को बढ़ावा देने का प्रयास" है। शिकायतकर्ता ने जोर देकर कहा कि "ये संरक्षित राजनीतिक अभिव्यक्ति नहीं हैं, बल्कि संवैधानिक उलटफेर के लिए उकसावे का काम है, जो दंडनीय अपराधों की श्रेणी में आता है।"
होसबाले ने पिछले सप्ताह दिल्ली में एक कार्यक्रम में इस विवाद को जन्म दिया था। उन्होंने कहा, "आपातकाल के दौरान संविधान में दो शब्द, धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद, जोड़े गए थे, जो मूल प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थे। बाद में इन शब्दों को हटाया नहीं गया। क्या इन्हें रहना चाहिए या नहीं, इस पर बहस होनी चाहिए। ये दो शब्द डॉ. आंबेडकर के संविधान में नहीं थे। आपातकाल में देश में संसद, अधिकार और न्यायपालिका काम नहीं कर रही थी, फिर भी ये शब्द जोड़े गए।" ये बदलाव 1976 में पारित विवादास्पद 42वें संशोधन के तहत किए गए थे।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने होसबाले के इस भाषण का हवाला देते हुए उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है। शिकायत में कहा गया, "संवैधानिक मूल्यों को सार्वजनिक रूप से कमजोर करने के ऐसे प्रयासों को अत्यंत गंभीरता और तत्परता से लिया जाना चाहिए। यह स्पष्ट संदेश देना जरूरी है कि कोई भी संविधान से ऊपर नहीं है।"
पुलिस ने शिकायत प्राप्त होने की पुष्टि की है, लेकिन समाचार प्रकाशन के समय तक कोई FIR दर्ज नहीं की गई थी। देश के कई संगठन और राजनीतिक दल होसबाले की इस टिप्पणी का विरोध कर रहे हैं। विश्लेषकों ने भी संविधान से इन दो शब्दों को हटाने का विरोध किया है। इसके लिए तमाम ऐतिहासिक कारण भी बताए गए हैं।