सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग को फटकार लगाते हुए 31 जनवरी तक स्थानीय निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया। जानें पूरी जानकारी और कोर्ट की सख़्त टिप्पणियां।
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव में अब और देरी नहीं चलेगी। देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को फटकार लगाई है। इसने 31 जनवरी 2026 तक सभी जिला परिषदों, पंचायत समितियों और नगर निगमों के चुनाव कराने का सख़्त निर्देश दिया है। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि इसके बाद कोई और विस्तार नहीं दिया जाएगा। यह फैसला अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण विवाद के कारण 2022 से ठप पड़े चुनावों को पटरी पर लाने की दिशा में अहम क़दम है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान राज्य चुनाव आयोग यानी एसईसी की धीमी कार्रवाई पर नाराज़गी जताई। बेंच ने कहा कि हम देख रहे हैं कि एसईसी इस कोर्ट के निर्देशों का निर्धारित समयसीमा में पालन करने में विफल रहा है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, 'जिला परिषदों, पंचायत समितियों और सभी नगर पालिकाओं सहित सभी स्थानीय निकायों के चुनाव 31 जनवरी 2026 तक पूरे करा लिए जाएँ। राज्य-राज्य चुनाव आयोग को आगे कोई विस्तार नहीं दिया जाएगा। यदि किसी अन्य रसद सहायता की ज़रूरत हो तो 31 अक्टूबर से पहले आवेदन पेश किया जाना चाहिए। उसके बाद किसी भी प्रार्थना पर विचार नहीं किया जाएगा।' कोर्ट ने मार्च 2026 में निर्धारित बोर्ड परीक्षाओं को चुनाव टालने का बहाना बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि ये परीक्षाएं जनवरी तक के चुनावों को प्रभावित नहीं कर सकतीं।
एसईसी ने समयसीमा का पालन नहीं किया
यह मामला 2022 से चला आ रहा है, जब ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 'ट्रिपल टेस्ट' यानी जनसंख्या डेटा संग्रह, आरक्षण अनुपात निर्धारण और 50 प्रतिशत सीमा का पालन लागू करने का आदेश दिया था। जुलाई 2022 में बंठिया आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को मंजूरी दी, लेकिन चुनावों को स्थगित रखा।
मई 2025 में एक अंतरिम आदेश में कोर्ट ने एसईसी को चार सप्ताह में चुनाव अधिसूचना जारी करने और चार महीनों में प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया था। लेकिन एसईसी ने समयसीमा का पालन नहीं किया, जिसके चलते कोर्ट ने अब अंतिम समय सीमा तय की है।
कोर्ट का निर्देश
कोर्ट ने परिसीमन यानी वार्डों के पुनर्गठन की प्रक्रिया को 31 अक्टूबर 2025 तक पूरा करने का आदेश दिया। बेंच ने साफ़ किया कि परिसीमन में कोई देरी चुनाव स्थगित करने का आधार नहीं बनेगी। इसके अलावा, एसईसी को ज़रूरी कर्मचारियों का विवरण दो सप्ताह में राज्य के मुख्य सचिव को सौंपने का निर्देश दिया गया। मुख्य सचिव को अन्य विभागों के सचिवों के साथ मिलकर चार सप्ताह में कर्मचारी उपलब्ध कराने होंगे।
यदि कोई लॉजिस्टिक सहायता चाहिए तो एसईसी को 31 अक्टूबर से पहले कोर्ट से संपर्क करने की छूट दी गई। चुनाव बंठिया आयोग की सिफारिशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के परिणाम के अधीन रहेंगे। एसईसी ने पर्याप्त इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम की कमी का हवाला दिया था। कोर्ट ने 30 नवंबर 2025 तक ईवीएम की व्यवस्था करने और अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया।
कोर्ट का रुख
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, 'संवैधानिक जनादेश है कि जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को समय-समय पर चुनावों के माध्यम से सुनिश्चित किया जाए। निर्वाचित निकायों का कार्यकाल निश्चित है, इसलिए ओबीसी आरक्षण में संशोधन के मुद्दों को बाद में देखा जा सकता है। लेकिन महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों को टालने का कोई कारण नहीं है।' कोर्ट ने 2022 से पहले की ओबीसी आरक्षण व्यवस्था (बंठिया आयोग की रिपोर्ट से पहले) के आधार पर चुनाव कराने का निर्देश दिया।
एसईसी के बहाने
एसईसी ने बोर्ड परीक्षाओं के कारण स्कूल परिसरों की अनुपलब्धता, कर्मचारियों की कमी और ईवीएम की अनुपलब्धता जैसे कारणों का हवाला दिया। लेकिन कोर्ट ने इन्हें खारिज करते हुए कहा कि मार्च 2026 की बोर्ड परीक्षाएं जनवरी तक के चुनावों को प्रभावित नहीं कर सकतीं। कोर्ट ने एसईसी की निष्क्रियता को खेदजनक बताया और त्वरित कार्रवाई की मांग की।
27 हज़ार वार्डों का चुनाव रुका
महाराष्ट्र में 27 हज़ार से अधिक वार्डों के लिए चुनाव 2017 के बाद से रुके हैं, जिससे स्थानीय प्रशासन प्रशासकों के हाथों में है। यह लोकतांत्रिक जवाबदेही को कमजोर करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल महाराष्ट्र बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी नजीर बनेगा, जहां इसी तरह की देरी देखी जा रही है। जानकारों का कहना है कि यह फैसला ग्रामीण और शहरी लोकतंत्र को मजबूत करेगा, लेकिन एसईसी की समयसीमा का पालन करने की क्षमता पर सवाल बने हुए हैं।
यह मामला राजनीतिक रूप से भी गर्म है, क्योंकि 2024 के विधानसभा चुनावों के बाद महायुति सरकार पर विपक्ष लगातार हमलावर है। स्थानीय निकायों में मजबूती अगले विधानसभा चुनावों के लिए अहम होगी। तो सवाल है कि क्या एसईसी इस बार कोर्ट की समयसीमा का पालन कर पाएगा, या नई चुनौतियां सामने आएंगी?